ॐ ,,, आमीन
न जायते म्रियते वा कदाचित् ...
क्षण क्षण क्षरण-शील जीवन में,
अनासक्त होकर तन-धन में,
केवल कर्म वही श्रेयस्कर
जिससे हो सबका कल्याण.
उन प्राणों की क्या चिंता जो,
जन्म-जन्म से अविश्वस्त हैं,
तुम्हें छोड़कर निष्ठुरता से,
करते बारम्बार प्रयाण ...
अरविंद पाण्डेय
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यही अमरता आनन्दित करती है।
जवाब देंहटाएंगहन एवं सुंदर अभिव्यक्ति .
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