ईश्वर ऩे है दिया सभी को,
दिव्य गगन का राज्य प्रशस्त.
किन्तु,लोग कलुषित,क्षण-भंगुर
क्षुद्र वस्तु में हैं आसक्त.
प्रतिदिन सविता सस्मित,सादर
जिसे बुलाता अम्बर में
वही मनुज है अविश्वस्त में
व्यस्त, न्यस्त आडम्बर में.
-- अरविंद पाण्डेय
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बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंअपनी विशालता को पहचानने में न जाने कितना समय लगता है लोगों को।
जवाब देंहटाएंईश्वर की बहुत ही सत्य और अच्छी वर्णन से भरी हुई कविता.....
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