हो देवता या हो कोई जन्नत का फ़रिश्ता.
पैदा न कर सकेगा खून-ओ-दूध का रिश्ता .
माँ ! तूने अपने खून से ही दूध बनाकर.
पाला है प्यार से खुद अपना दूध पिलाकर.
तू है कहीं जन्नत में यहाँ मै ज़मीन पर.
फिर भी तू मेरे पास है जैसे मेरे ही घर.
बांहों में यूँ लिपटाके मुझे रात को सोना.
बेशर्त मुहब्बत में हरिक पल ही भिगोना.
हर चीज़ ही पाने को मेरा जिद में वो रोना.
सब कुछ मुझे देने को तेरे चैन का खोना.
हर साँस मेरे दिल को देके जाती है खबर.
जो कुछ भी है तू, बस, तेरी माँ का ही है असर.
-- अरविंद पाण्डेय
भावपूर्ण पंक्तियाँ ... नमन हर माँ को ...
जवाब देंहटाएंआभार...
आइन्स्टीन ....
माँ की बाहों में छिपा आनन्द अनुपम।
जवाब देंहटाएंकौन माँ गदगद ना होगी इस सम्मान को पाकर ...
जवाब देंहटाएंमाँ के साथ ऐसे पुत्र को भी नमन
हृदयस्पर्शी..... सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रेम की बहुत ही सुंदर कविता हैं ... माँ तो माँ ही हैं ...
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना |माँ दिवस पर शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही बढ़िया रचना . बधाई।
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
i liked this poem very much.....
जवाब देंहटाएंहर साँस मेरे दिल को देके जाती है खबर.
जवाब देंहटाएंजो कुछ भी है तू, बस, तेरी माँ का ही है असर.
ओत-प्रोत है भावनाओं से प्रत्येक शब्द ...!
जब इतनी प्रगाढ़ आस्था हो ,भाव उज्जवल हो ही जायेंगे ...!
शुभकामनायें ...!!