शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु.




तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु.

मृदु वसंत की शांत,सुशीतल पवन का मिले अभिनन्दन.
व्याकुलता-परिपूर्ण हृदय में अब हो ईश्वर का वंदन.
भेद, भीति ,भ्रम से विमुक्त हो सबका शिव-संकल्पित मन.
दिव्य-दीप्ति से दीपित देखे प्रतिजन, प्रतिपल ही प्रतिकण .

- अरविंद पाण्डेय

8 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद...
    आपने लिखा है -"भेद, भीति ,भ्रम से विमुक्त हो सबका शिव-संकल्पित मन", पर हमारा शिव-संकल्प हो क्या?, अब मैं यह सोचने लगा हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर पंक्तियाँ, बहुत सुंदर ........

    जवाब देंहटाएं
  4. भेद, भीति ,भ्रम से विमुक्त हो सबका शिव-संकल्पित मन...

    बहुत सुन्दर विचार...
    दार्शनिक भाव लिए है आपकी रचना की पंक्तियाँ .......

    जवाब देंहटाएं

आप यहाँ अपने विचार अंकित कर सकते हैं..
हमें प्रसन्नता होगी...