जो है व्यवहार तुम्हें अप्रिय ,
वह नहीं किसी के साथ करो.
नैतिकता का बस यही सूत्र ,
प्रिय-कर्म में कभी नहीं डरो.
स्मृति में धर्म और नैतिकता की एक सार्वभौम परिभाषा दी गई है--
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावाधार्यताम.
आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत .
अर्थात-
जो है अपने प्रतिकूल करो मत वह व्यवहार किसी से.
प्रसिद्द जर्मन दार्शनिक इमानुअल कांट ने भारत द्वारा नैतिकता की उपर्युक्त परिभाषा को यथावत स्वीकार करते हुए अपना प्रथम नैतिक नियम प्रतिपादित किया था-
''उसी नियम के अनुसार चलो जिसे तुम सार्वभौम बनाने का संकल्प कर सको.''
उसने उदाहरण दिया कि तुम चोरी अपने यहाँ नहीं होने देना चाहते इसलिए दूसरे के यहाँ तुम्हारे द्वारा चोरी किया जाना तुम्हारे लिए अनैतिक है..और चूंकि,यह स्वस्थ बुद्धि के मनुष्यों की सार्वभौम इच्छा होती है इसलिए चोरी किया जाना सार्वभौम रूप से अनैतिक है.. समाज द्वारा सार्वभौम रूप से स्वीकृत नैतिक-आचरणों के सम्बन्ध में भाषण देने वाले इस नियम के अनुसार स्वयं अनैतिक आचरण कर रहे होते हैं..रजनीश से लेकर अन्य सभी स्वघोषित वैचारिक क्रांति-कारियों की यही स्थिति है..
----अरविंद पाण्डेय
व्यक्ति यदि इस सिद्धांत को धारण कर ले तो जीवन कितना सुन्दर बन जायेगा.
जवाब देंहटाएंसार्थक एंव सुन्दर रचना, आपका साधुवाद.
हे परम आदरणीय महा गुरुदेव, हम तो अच्छे कर्मो प़र ही विश्वाश करते हैं और अपने अनुसार और अच्छा करने के प्रयास में लगे रहते हैं फिर भी असफल हैं ...इसका ऊतर हमें दे !!!! कि आखिर हमने कौन सा ऐसा पाप किया हैं जिसके कारण असफलता ही हमें मिलती आ रही हैं ?????? जय हिंद !!!!!!
जवाब देंहटाएंuchch vichaar ..nice post
जवाब देंहटाएंRia
@-जो है व्यवहार तुम्हें अप्रिय ,वह नहीं किसी के साथ करो.नैतिकता का बस यही सूत्र ,प्रिय-कर्म में कभी नहीं डरो....
जवाब देंहटाएंयही करने की कोशिश करती हूँ...
सार्थक आलेख !
आभार।
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जवाब देंहटाएं@ Amod Kumar -
Just do your duties, reward is not thy concern.
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@Divya Jee, Thanks for Giving a nice comment ..लेकिन कभी कभी Reward कि भी इच्छा होती हैं ना ..Regards
जवाब देंहटाएंAmod ji ,
जवाब देंहटाएंIt's quite natural to have a desire of being awarded for something we do or perform . But then expectations bring disappointments. Hence the saying- " Neki kar dariya mein daal "
When we stop expecting from the lesser mortals of this world and we start to serve selflessly , then automatically the almighty starts showering his blessings.
Only worldly , materialistic things should not be considered as rewards.
Regards.
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परेशां = परेषाम्
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