शेक्सपीयर की मिरांडा
तुम्हें निहारने को खिल के हंस रहे हैं गुल .
गुलों के दिल का कुछ ख़याल तो करना होगा.
मेरे लिए न सही, मैं तो यूँ ही कहता हूँ.
तुम्हें इनके ही लिए अब यहाँ आना होगा.
सुबह यहाँ भी तो मदहोश हवा बहती है.
सुबह यहाँ भी शम्स आसमां पे खिलता है.
यहाँ भी रात, सितारों से इश्क करती है.
यहाँ भी शाम से शर्मा के चाँद मिलता है.
तुम्हारे दिल सा समंदर यहाँ लहराता है.
तुम्हारे हुस्न सी हसीं यहाँ फिजाएं हैं.
तुम्हारी ज़ुल्फ़ सा महका हुआ चमन भी है.
तुम्हीं सी शोख यहाँ रुत की कुछ अदाएं हैं.
--- अरविंद पाण्डेय
beautiful sir..:)
जवाब देंहटाएंMost beautiful poem ......
जवाब देंहटाएंA beautiful poem with well selected words .
जवाब देंहटाएंAsha
आत्मीय कविता, एक एक पंक्ति कुछ कहती है, सुन्दर रचना के लिए आपका आभार.
जवाब देंहटाएंbahut sunder..
जवाब देंहटाएंIt's very well composed with very meaningful theme that is worth reading times & again with full of appreciation.Thanks a lot for sharing it with me.
जवाब देंहटाएंPortrayal of a stunning fantasy ...Gorgeous Poem.
जवाब देंहटाएंCharan Sparsh ..:-))