हमारा संविधान ईश्वरवादी_है :
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..... संविधान की तीसरी अनुसूची में
संघ और राज्यों के मंत्रियों के शपथ का प्रारूप दिया गया है जिसका प्रारम्भ होता है --
" मैं , अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ " -- इसका अर्थ क्या हुआ ?
.... इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारी संविधान सभा
तथा
संविधान निर्मात्री समिति को
ईश्वर के अस्तित्व में अखण्डविश्वास था
क्योंकि संविधान निर्माता किसी ऐसी सत्ता के नाम पर मंत्रियों को शपथ लेने का प्रावधान नहीं कर सकते थे जिसका अस्तित्व ही न हो या जिसके अस्तित्व पर उन्हें अखंड विश्वास न हो...
..... इसलिए भारत में ईश्वर एक आध्यात्मिक सत्य तो है ही, संवैधानिक सत्य भी है जिसके नाम पर शपथ लेकर केंद्र और राज्य के मंत्रिमंडल के सदस्य कर्तव्य निर्वहन करते हैं और करते रहेगें....
..... और इसलिए, भारत में कोई भी स्वयं को सहस्रबाहु ईश्वर के समकक्ष न समझे क्योंकि ईश्वर एक संवैधानिक सत्ता है जिसके नाम पर शपथ लेकर देश का राजकार्य संचालित होता है...
रविवार, 27 मई 2018
भारत का संविधान ईश्वर वादी है
शनिवार, 22 अक्तूबर 2016
शाहे-इंक़लाब अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान
शाहे-इंक़लाब अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान साहब को
जन्मदिन मुबारक़ 💐💐💐
गद्दार के धोखे से गिरफ्तार जब हुए.
मज़हब के बहाने से पुलिस ने थे यूँ कहे-
"दोगे जो गवाही तुम साथियों के बर खिलाफ.
सरकार से कहेंगे कि वो कर दे तुम्हें माफ़."
अशफ़ाक़ ने कहा-सुनो अंग्रेज़ के कप्तान.
मेरी तो है सरकार ये अज़ीज़ हिंदुस्तान.
तख्ते पे फांसियों के हम चढ़ेंगे यूँ पुरजोश.
अंग्रेज़ सल्तनत के उड़ाएंगे वहीं होश.
कह कर यूँ तुम चले गए ऐ शाहे-इंक़लाब.
तुम मादरे वतन के लाडले थे लाजवाब.
तुमसे ही तो रहेगी हिंदुस्तान की पहचान .
लाखों सलाम तुमको ऐ अशफ़ाक़ुल्ला खान.
-- अरविन्द पांडेय .
रविवार, 16 अक्तूबर 2016
अभिव्यक्ति की आज़ादी
उन्हें चाहिए अभिव्यक्ति की आज़ादी,
क्योंकि चाहिए उन्हें मुल्क़ की बरबादी.
अभिव्यक्ति की आज़ादी जब पा जाएंगे,
हर #विद्यालय को #युद्धालय में बदलेगें.
रावण, महिषासुर को फूल चढाएगें.
राष्ट्रगान की जगह गीत यह गाएंगे -
"अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा हैं,
तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं."
मगर सुनों अब जाग उठा है हिंदुस्तान.
जाग उठा क़ानून और सोया सुल्तान.
-- अरविन्द पांडेय .
गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016
अपने ही शस्त्रों से आहत
जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
अपने ही शस्त्रों से आहत, रुधिर-विरूपित वेष.
विवश हुआ पश्चिम भी, अब दे रहा शान्ति-उपदेश.
जब तक था आतंकित पूरब, तब तक थे निश्चिन्त.
अब यूरोप और अमरीका भी हैं परम सचिन्त.
जिन देशों के हथियारों से भरा विश्व - बाज़ार .
अचरज,वे ही आज कर रहे व्याकुल शांति-प्रचार.
आज बनी रणभूमि हमारी धरा धन्य रमणीय.
नहीं मार्ग अब शेष, युद्ध लघु ही अब है वरणीय.
युद्ध आज आवश्यक है अपने ही कुविचारों से .
बच सकते हो बचो चित्त में फैले अंगारों से .
धधकेगी युद्धाग्नि निकट,फिर होगा कौन तटस्थ.
पूर्व और पश्चिम दोनों होंगे आहत , अस्वस्थ .
-- अरविन्द पांडेय
फ़्रांस में हुए आतंकावादी हमले का सन्दर्भ