शनिवार, 2 नवंबर 2013
शुक्रवार, 9 अगस्त 2013
खिले चाँद की दीद मुबारक !
ॐ आमीन।
परमानन्द - मयी यह ईद !
शुभ हो, सब को, शशि की दीद !
सब को हो यह ईद मुबारक !
खिले चाँद की दीद मुबारक !
एक मास की ईश-भक्ति का पुण्य हुआ साकार
नील - गगन का किया काल ने शशि से शुभ श्रृंगार
शिव-ललाट की चन्द्र-रश्मि, झरती,जल बन,अम्बर से
ईद और श्रावण में देखो , सौम्य सुधा-रस छलके
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
शनिवार, 6 जुलाई 2013
वर्ण-विहीन समाज व्यवस्था
भविष्य में चीन द्वारा भारत में अवैध रूप से घुसकर बनाए गए और न हटाए गए तम्बुओं को ये लोग अकेले अकेले हटा पायेगे..???
...........आजकल फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर अनेक प्रोफाइल , पेज या ग्रुप में अपनी अपनी जाति की उत्कृष्टता , सर्वोच्चता आदि की बाते प्रस्तुत की जा रही हैं............. यह सत्य भी है कि प्रत्येक जाति या वर्ण की अपनी विशिष्टताएं होती हैं और समाज के सर्वांगीण विकास में उनका विशिष्ट उपयोग भी है ............. किन्तु, इस देश को अगर महाशक्ति बनाना है तब जाति-वाद, वर्ण-वाद समाप्त करना होगा................
...........अगर हम इतिहास और अन्य प्रमाणों के आधार पर देखें तो पायेगे कि ब्राह्मण , ब्रह्मर्षि. कायस्थ या क्षत्रिय -------- ये चार नहीं बल्कि केवल २ वर्ण हैं ........ और इसीतरह पिछड़े-वर्ग और अनुसूचित जाति-जनजातियों में परिगणित लगभग २०० जातियां वास्तव में २०० नहीं अपितु केवल २ वर्ण हैं.................इसलिए अब, हम भारत के लोग ३०० जातियों में विभाजित न होकर, अगर सिर्फ एक ''वर्ण'' बन जायं -- तो देश का हित होगा.........
..........ब्राह्मण , ब्रह्मर्षि या कायस्थ, क्षत्रिय आदि के विशिष्ट पेज और ग्रुप फेसबुक पर उपलब्ध हैं ............. जिनके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उसके लिखने वाले व्यक्तियों के अपने कुछ सामूहिक लक्ष्य हैं....
............मगर क्या वे लक्ष्य , अकेले प्राप्त हो सकेगे.....??? यदि लोकतंत्र में संख्या का अपना विशिष्ट व्यावहारिक महत्त्व रखती है तब क्या अकेले - अकेले ये तीनो स्वघोषित लक्ष्य प्राप्त कर पायेगे...??? ............ और क्या इन वर्गों के के नौजवानों की रोज़गार की समस्या का समाधान अकेले चलने से हो पायेगा...??
............. क्या इन लेखों को लिखने वालों को पता है कि उनकी अलग-अलग जनसंख्या क्या है ????
.............. और अगर एक काफिले में आ जांय तब उनकी जनसंख्या क्या होगी ...??
.......और अगर आज की व्यवस्था में जनसंख्या का कोई विशिष्ट महत्त्व है तब क्या एक काफिले में चलना श्रेयस्कर नहीं है .???
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
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