मेरी गंगा यहाँ मस्ती में बही जाती है.
बहुत हंसीन सी आवाज़ हवाओं में है,
कि ज्यों कोई परी वेदों की रिचा गाती है.
खुद अपने तन के ही करीब हुआ तो पाया.
मेरे इस गाँव की मिट्टी की महक आती है.
यहाँ रमजान की रानाइयां भी नाजिल हैं .
यहाँ नवरात्र के मन्त्रों की सदा आती है.
अहं ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है,
न जाने फिर भी क्यूँ, ये रूह कसमसाती है.
-- अरविंद पाण्डेय
यहाँ रमजान की रानाइयां भी नाजिल हैं .
यहाँ नवरात्र के मन्त्रों की सदा आती है.
अहं ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है,
न जाने फिर भी क्यूँ, ये रूह कसमसाती है.
-- अरविंद पाण्डेय