बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

..फिर दोनों का था रखा नाम-इंदिरा और लक्ष्मी बाई.


31 अक्तूबर

ये क्या रहस्य-उन्नीस नवम्बर को दोनों ऩे जन्म लिया.
ये क्या रहस्य है-दोनों की माँ  ऩे बचपन में छोड़ दिया.
दोनों के नामों का मतलब है एक ,एक सा  जीवन  था.
वैधव्य, पुत्र की मृत्यु,देश के लिए समर्पित तन-मन था.

बचपन में एक छबीली ,  प्रियदर्शिनी  दूसरी  कहलाई.
फिर दोनों  का  था रखा नाम इंदिरा  और लक्ष्मी बाई.


1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध आधुनिक विश्व इतिहास की एक ऐसी सशक्त घटना है जिसमें भारत ने श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में यह दिखाया कि वह सामरिक स्तर भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका से मोर्चा लेने का संकल्प ले सकता है और भारत के इस पौरुष के शंखनाद में अमेरिका की पाकितान के लिए निकल रही आह दब कर रह गई .. बस यही एक घटना श्रीमती इंदिरा गांधी को विश्व इतिहास की सबसे सशक्त महिलाओं में से एक रूप में स्थापित करती है..भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि हम ऐसे व्यक्तित्वों को भी दल-गत कुदृष्टि से देखते रहे हैं.. मैंने इस कविता में उन समानताओं का उल्लेख किया है जो श्रीमती इंदिरागांधी और महारानी लक्ष्मीबाई में थीं..यहाँ तुलना नहीं की जा रही ..बस उस संयोग को बताया गया है जो विलक्षण है और भारत की इन दो स्त्री रत्नों में पाया जाता है..
-- अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

रामदूत रक्षा करो , जय जय श्री हनुमान



हरिः  ॐ तत्सत् महाभटचक्रवर्ती रामदूताय नमः

जब संकट आए कोई , हों व्याकुल मन प्राण.
शत्रु  शक्तिशाली  करे   मारक शर - संधान .
स्मरण करे एकाग्र हो , करे  बस  यही गान -
" रामदूत  रक्षा  करो ,  जय जय श्री हनुमान "

-- अरविंद पाण्डेय 



रविवार, 7 अक्टूबर 2012

शैशव के ही सन्निकट स्वर्ग हँसता है



स्वप्न और विस्मृति  है  अपना जीवन.
है  सुदूर ,  आत्मा  का  मूल - निकेतन. 
तारक सा ज्योतित नभ से यहाँ उतरता.
आकर वसुधा पर,कुछ विस्मृति में रहता.

गरिमा के जलद-सदृश हम विचरण करते.
ईश्वर   के   शाश्वत  सन्निवास में  रहते.  
शैशव के  ही सन्निकट  स्वर्ग   हँसता  है.
तब,  सार्वभौम शासक  सा शिशु सजता है.

पर,जब यह शिशु, विकसित किशोर में होता.
तब, सघन कृष्ण - छाया  परिवेष्टित  होता.
यह,  किन्तु,  किया करता प्रकाश का दर्शन.
जब   होता   है   उन्मुक्त   हर्ष  का  वर्षण.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

अब अपनों से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे..




बहुत  कर लिया बंद, अब ज़रा भारत खोलो.
कहा खड़े हो  दुनिया  में अब खुद  को  तोलो.
बाजारों   में  कब्ज़ा  है  जापान ,  चीन   का.
कितनी  दौलत  वहाँ  जा  रही ,यह तो बोलो.


एक  वक़्त  था  जब  यूनानी, रोमन सारे.
खूब   खरीदा  करते  थे  सामान   हमारे.
वही  सुनहरी  सदी आज फिर कोई दे दे-
अब  अपनों  से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे.

-- अरविंद पाण्डेय 




रविवार, 12 अगस्त 2012

रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र !


रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र 
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समस्या भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण की है: कुछ सूत्र हैं जो उन्हें आंदोलन के रूप में शुरू करना चाहिए जो भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण के पक्षधर हैं..

१.सभी नागरिक संकल्प लें कि वे हानि उठायेगे किन्तु अपना काम साधने के लिए रिश्वत नहीं देगे..

२.विद्यालयों में विशेषरूप से दून स्कूल और अन्य तथाकथित अच्छे विद्यालयों में '' रिश्वत न लेने के फायदे '' विषय पर पाठ्यक्रम शुरू किया जाय.

३.स्कूलों में डोनेशन देकर प्रवेश देने के कार्य को रिश्वत का अपराध घोषित करने के लिए क़ानून बनाया जाय.

४.स्कूलों में उपहार लेने और देने की सीमा भी निर्धारित की जाय जिससे उपहार आदि के आधार पर स्टेटस का मूल्यांकन होना बंद हो.

५.एक १० करोड या ऊपर के साबित भ्रष्टाचार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान हो..जिससे २००० रुपये की रिश्वत और २०० करोड की रिश्वत में फर्क हो सके...
                  आप सहमत हैं ..यदि हाँ तो अभी --- राजनीति के मोह से बचकर ये सब कीजिये ..
                     वरना जीतने के लिए '' व्यावहारिक '' Practical होना पडेगा फिर क्या होगा उन सपनों का जिन्हें बाँटते हुए यहाँ तक की मंजिल तय की है.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं 


हैं सौम्य,शुद्ध,सुप्रसन्न दश दिशाएँ दीपित.
योगी के चित्त-सदृश निर्मल आकाश अमित .
नक्षत्र,ग्रह,उपग्रह,तारक-गण हैं  प्रमुदित.
धरती के ग्राम,नगर,वन-प्रांतर हैं हर्षित.

कल कल निनादमय तटिनी हो होकर उच्छल.
तट का आलिंगन कर, प्रसन्न होती अविरल.
मधुरिम-सुगंध-परिपूर्ण पवन कर रहा गान.
वन में प्रफुल्ल,पुष्पित वृक्षावलि का वितान.

है स्वतः प्रज्ज्वलित, अग्निहोत्र की अग्नि प्रखर.
जो क्रूर कंस के अनाचार से थी अज्वल .
नक्षत्र रोहिणी, भाद्र-कृष्ण-अष्टमी  दिव्य.
है महाकाल के कृष्ण-नमन से निशा भव्य.

कण कण में व्यापक परब्रह्म,सात्वत,विराट.
स्वरराट, स्वयंभू ,स्वप्रकाश,शाश्वत,स्वराट.
देव-स्वरुप देवकी-गर्भ से प्रकट हुए .
दानव-विदलित मानवता के प्रति अभय लिए.

नभ-सदृश वर्ण,मधुरस्मित,अलकावलि कुंचित.
वक्षस्थल है विद्युन्मय स्वर्णिम-रेखांकित.
कौस्तुभ-संदीपित कंठ ,चतुर्भुज ,चतुर्व्यूह .
कटि पर मधुरिम-गुंजित चंचल किंकिणि-समूह.

स्वर्णिम-पीताम्बर-श्रृंगारित था उच्च स्कंध .
चरणों  में सजती  थी पायल ज्यों वेद-छंद.
नयनों से थी बह रही प्रेम की दिव्य-धार.
साकार हो उठा था अब निर्गुण, निराकार.

अक्षर, अनंत श्री कृष्ण सांत में व्यक्त हुए.
वसुदेव, देवकी,देख उन्हें अनुरक्त हुए.
थी देह पुलक-परिपूर्ण,ह्रदय प्रार्थना-पूर्ण.
स्तुति, पूर्ण-तत्त्व की करती थी वाणी अपूर्ण.



----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

गांधी बनना आसान नहीं.

गांधी  बनना  आसान  नहीं
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पहले   गांधी   से   प्रेम   हुआ .
अनशन-साधन  का खेल  हुआ.

जब मिला ज्ञान -यह नहीं खेल.
अनशन, सत्ता   का  नहीं मेल.

तब भाव हृदय के  छलक  उठे .
कुछ   पा  जाने को ललक उठे.

जिसके   विरुद्ध  से  लगते थे.
जिस पर अपशब्द निकलते थे.

उसको  ही तो  बस  पाना  था.
उस  घर  में ही बस जाना था.

जनता  करती थी बस पुकार 
कर दो,कर दो कुछ चमत्कार.

भ्रष्टाचारी  से   मिले मुक्ति.
अब करो तुम्हीं कुछ प्रखर युक्ति.

सपना  तो  सुन्दर  दिखलाया.
कुछ  पाल - जाल से भरमाया.

अनशन से प्राण अशक्त हुआ.
शीतल जब कुछ कुछ रक्त हुआ.

तब, कहा ह्रदय ने नहीं , नहीं.
गांधी  का  मार्ग  वरेण्य नहीं.

जिस पथ से मिलता सिंहासन.
वह पथ कुछ और, नहीं अनशन.

फिर तो अनशन-व्रत टूट गया.
वह  ''मार''  इन्हें भी लूट गया .

गांधी  बनना  आसान  नहीं.
यह धैर्य-हीन का  काम नहीं.

जिसमें  ज़ज्बे की  आंधी  है 
समझो  उसमें  ही  गांधी  है.



सोमवार, 30 जुलाई 2012

ज्ञानिनामपि चेतान्सि देवी भगवती हि सा ..


श्रीकृष्णार्पणमस्तु  

करते  थे जो शीश झुकाकर चरणों में अभिवादन.
आज उन्हीं से  मांग रहे तुम सत्ता  हेतु समर्थन.
अमृत-पंथ के पथिक ! तुम्हें जाना था अम्बर पार.
किन्तु  'मार' से विजित देख तुमको हंसता संसार.

जिस निषिद्ध फल का प्रचार जब में तुमको करना था.
किसे ज्ञात था स्वयं तुम्हें भी,खाकर फल, गिरना था.


ज्ञान-संपन्न ऋषियों के भी चित्त को भगवती बलात ही मोह की ओर प्रवृत्त करती हैं.. आश्चर्य नहीं हो रहा मुझे कि अभी कुछ ही समय पूर्व जिसके चरणों में शीश झुकाकर शक्तिशाली लोग शिक्षा ग्रहण करते थे , वही उनसे समर्थन के लिए भिक्षाटन कर रहा. 


© अरविंद पाण्डेय



शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

राजा भैया के माथे पर....


ॐ आमीन :
चन्दा मामा चमक रहे हैं.
जूही  जैसा  महक रहे हैं.
राजा  भैया  के माथे  पर,
मोती  जैसा  दमक रहे हैं. 

© अरविंद पाण्डेय


शनिवार, 21 जुलाई 2012

हुई है चाँद की तस्दीक


इसी  रमजान  में  इक  रोज़  किसी  रोज़े  में .
मेरे  रज्जाक !  तेरी  रहमतों  की  बारिश हो.
हुई है चाँद की तस्दीक, अब तो इस दिल में,
जो हो ख्वाहिश,तेरे दीदार की बस ख्वाहिश हो.

Aravind Pandey 

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