गुरुवार, 20 सितंबर 2012

अब अपनों से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे..




बहुत  कर लिया बंद, अब ज़रा भारत खोलो.
कहा खड़े हो  दुनिया  में अब खुद  को  तोलो.
बाजारों   में  कब्ज़ा  है  जापान ,  चीन   का.
कितनी  दौलत  वहाँ  जा  रही ,यह तो बोलो.


एक  वक़्त  था  जब  यूनानी, रोमन सारे.
खूब   खरीदा  करते  थे  सामान   हमारे.
वही  सुनहरी  सदी आज फिर कोई दे दे-
अब  अपनों  से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे.

-- अरविंद पाण्डेय 




रविवार, 12 अगस्त 2012

रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र !


रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र 
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समस्या भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण की है: कुछ सूत्र हैं जो उन्हें आंदोलन के रूप में शुरू करना चाहिए जो भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण के पक्षधर हैं..

१.सभी नागरिक संकल्प लें कि वे हानि उठायेगे किन्तु अपना काम साधने के लिए रिश्वत नहीं देगे..

२.विद्यालयों में विशेषरूप से दून स्कूल और अन्य तथाकथित अच्छे विद्यालयों में '' रिश्वत न लेने के फायदे '' विषय पर पाठ्यक्रम शुरू किया जाय.

३.स्कूलों में डोनेशन देकर प्रवेश देने के कार्य को रिश्वत का अपराध घोषित करने के लिए क़ानून बनाया जाय.

४.स्कूलों में उपहार लेने और देने की सीमा भी निर्धारित की जाय जिससे उपहार आदि के आधार पर स्टेटस का मूल्यांकन होना बंद हो.

५.एक १० करोड या ऊपर के साबित भ्रष्टाचार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान हो..जिससे २००० रुपये की रिश्वत और २०० करोड की रिश्वत में फर्क हो सके...
                  आप सहमत हैं ..यदि हाँ तो अभी --- राजनीति के मोह से बचकर ये सब कीजिये ..
                     वरना जीतने के लिए '' व्यावहारिक '' Practical होना पडेगा फिर क्या होगा उन सपनों का जिन्हें बाँटते हुए यहाँ तक की मंजिल तय की है.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं 


हैं सौम्य,शुद्ध,सुप्रसन्न दश दिशाएँ दीपित.
योगी के चित्त-सदृश निर्मल आकाश अमित .
नक्षत्र,ग्रह,उपग्रह,तारक-गण हैं  प्रमुदित.
धरती के ग्राम,नगर,वन-प्रांतर हैं हर्षित.

कल कल निनादमय तटिनी हो होकर उच्छल.
तट का आलिंगन कर, प्रसन्न होती अविरल.
मधुरिम-सुगंध-परिपूर्ण पवन कर रहा गान.
वन में प्रफुल्ल,पुष्पित वृक्षावलि का वितान.

है स्वतः प्रज्ज्वलित, अग्निहोत्र की अग्नि प्रखर.
जो क्रूर कंस के अनाचार से थी अज्वल .
नक्षत्र रोहिणी, भाद्र-कृष्ण-अष्टमी  दिव्य.
है महाकाल के कृष्ण-नमन से निशा भव्य.

कण कण में व्यापक परब्रह्म,सात्वत,विराट.
स्वरराट, स्वयंभू ,स्वप्रकाश,शाश्वत,स्वराट.
देव-स्वरुप देवकी-गर्भ से प्रकट हुए .
दानव-विदलित मानवता के प्रति अभय लिए.

नभ-सदृश वर्ण,मधुरस्मित,अलकावलि कुंचित.
वक्षस्थल है विद्युन्मय स्वर्णिम-रेखांकित.
कौस्तुभ-संदीपित कंठ ,चतुर्भुज ,चतुर्व्यूह .
कटि पर मधुरिम-गुंजित चंचल किंकिणि-समूह.

स्वर्णिम-पीताम्बर-श्रृंगारित था उच्च स्कंध .
चरणों  में सजती  थी पायल ज्यों वेद-छंद.
नयनों से थी बह रही प्रेम की दिव्य-धार.
साकार हो उठा था अब निर्गुण, निराकार.

अक्षर, अनंत श्री कृष्ण सांत में व्यक्त हुए.
वसुदेव, देवकी,देख उन्हें अनुरक्त हुए.
थी देह पुलक-परिपूर्ण,ह्रदय प्रार्थना-पूर्ण.
स्तुति, पूर्ण-तत्त्व की करती थी वाणी अपूर्ण.



----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

गांधी बनना आसान नहीं.

गांधी  बनना  आसान  नहीं
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पहले   गांधी   से   प्रेम   हुआ .
अनशन-साधन  का खेल  हुआ.

जब मिला ज्ञान -यह नहीं खेल.
अनशन, सत्ता   का  नहीं मेल.

तब भाव हृदय के  छलक  उठे .
कुछ   पा  जाने को ललक उठे.

जिसके   विरुद्ध  से  लगते थे.
जिस पर अपशब्द निकलते थे.

उसको  ही तो  बस  पाना  था.
उस  घर  में ही बस जाना था.

जनता  करती थी बस पुकार 
कर दो,कर दो कुछ चमत्कार.

भ्रष्टाचारी  से   मिले मुक्ति.
अब करो तुम्हीं कुछ प्रखर युक्ति.

सपना  तो  सुन्दर  दिखलाया.
कुछ  पाल - जाल से भरमाया.

अनशन से प्राण अशक्त हुआ.
शीतल जब कुछ कुछ रक्त हुआ.

तब, कहा ह्रदय ने नहीं , नहीं.
गांधी  का  मार्ग  वरेण्य नहीं.

जिस पथ से मिलता सिंहासन.
वह पथ कुछ और, नहीं अनशन.

फिर तो अनशन-व्रत टूट गया.
वह  ''मार''  इन्हें भी लूट गया .

गांधी  बनना  आसान  नहीं.
यह धैर्य-हीन का  काम नहीं.

जिसमें  ज़ज्बे की  आंधी  है 
समझो  उसमें  ही  गांधी  है.



सोमवार, 30 जुलाई 2012

ज्ञानिनामपि चेतान्सि देवी भगवती हि सा ..


श्रीकृष्णार्पणमस्तु  

करते  थे जो शीश झुकाकर चरणों में अभिवादन.
आज उन्हीं से  मांग रहे तुम सत्ता  हेतु समर्थन.
अमृत-पंथ के पथिक ! तुम्हें जाना था अम्बर पार.
किन्तु  'मार' से विजित देख तुमको हंसता संसार.

जिस निषिद्ध फल का प्रचार जब में तुमको करना था.
किसे ज्ञात था स्वयं तुम्हें भी,खाकर फल, गिरना था.


ज्ञान-संपन्न ऋषियों के भी चित्त को भगवती बलात ही मोह की ओर प्रवृत्त करती हैं.. आश्चर्य नहीं हो रहा मुझे कि अभी कुछ ही समय पूर्व जिसके चरणों में शीश झुकाकर शक्तिशाली लोग शिक्षा ग्रहण करते थे , वही उनसे समर्थन के लिए भिक्षाटन कर रहा. 


© अरविंद पाण्डेय



शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

राजा भैया के माथे पर....


ॐ आमीन :
चन्दा मामा चमक रहे हैं.
जूही  जैसा  महक रहे हैं.
राजा  भैया  के माथे  पर,
मोती  जैसा  दमक रहे हैं. 

© अरविंद पाण्डेय


शनिवार, 21 जुलाई 2012

हुई है चाँद की तस्दीक


इसी  रमजान  में  इक  रोज़  किसी  रोज़े  में .
मेरे  रज्जाक !  तेरी  रहमतों  की  बारिश हो.
हुई है चाँद की तस्दीक, अब तो इस दिल में,
जो हो ख्वाहिश,तेरे दीदार की बस ख्वाहिश हो.

Aravind Pandey 

www.biharbhakti.com


मंगलवार, 17 जुलाई 2012

श्री केशव अभिरूप हरे !

श्री केशव अभिरूप हरे !

चिति-स्वरुप श्री श्री राधा के 
चारु चित्त को मुदित करें . 

नील-कमल मुख पर स्वर्णिम-मुख 
श्री राधा की कान्ति झरे. 

महारास के रस-रहस्य में 
मानस यह संतरण करे.


सोमवार, 16 जुलाई 2012

Sabke Paalan Haar Aravind Pandey Presents Shiv Bhajan



आज पवित्र श्रावण की दूसरी सोमवारी को भगवान् सदाशिव को मेरे स्वर में , मेरे अपने ही शब्दों में अर्पित भजन :
यहाँ मैंने  ''मेरा'' शब्द का प्रयोग किया ,,  किन्तु मेरा कुछ भी नहीं,, सब कुछ उन्हीं का है..
आप सभी शिव-भक्त भी इस भजन में वर्णित भगवान् के गुणों का रसास्वादन करें.. 
1.
शिव  ही  इस  संसार  में   सबके    पालनहार .
शिव को तू मत भूलना,हर पल शिव को पुकार.
2.
शिव शिव जप ले रे मना,शिव का कर गुणगान.
तू भी शिव हो जाएगा, शिव  का  कर  ले ध्यान.
3.
शिव की शरण जो आए.
काल छुए ना उसको वो तो,
अजर-अमर हो जाए,

शिव ने जो पिया था हालाहल ,
अमृत बनकर बरसा पल पल,

नाम जपे जो शिव का उसका भव-बंधन कट जाए.
शिव की शरण जो आए.
4.
सुख हो दुःख हो यश अपयश हो मान हो या अपमान.
झूठा  सारा  खेल  है जग़ का, कर  ले शिव का ध्यान.

सब कुछ कर दे शिव को अरपन माया-मोह बिसार. 
मेरे  शिव  हैं  दीनदयाल .मेरे   शिव  हैं दीनदयाल.
5.
शिव की जोत से जगमग करते सूरज चन्दा तारे .
शिव की शरण में कट जाते हैं भव के बंधन सारे.

शिव का ध्यान लगाते चलो. 
प्रेम   की  गंगा  बहाते चलो.

जोत से जोत  जगाते   चलो 
प्रेम  की  गंगा  बहाते  चलो.


Written and Sung and Dedicated to Lord Shiv by Aravind Pandey .
( IPS 1988 Bihar Cadre )

रविवार, 15 जुलाई 2012

गुवाहाटी में हम भारत के लोग

गुवाहाटी की घटना से यह संकेत मिलता है कि इस देश में प्रत्येक संस्था , प्रत्येक वर्ग यह मानता है कि अपने सामने घटित होते हुए अपराध में हस्तक्षेप करने या पुलिस को तत्काल सूचना देने या ऐसे अपराधी को गिरफ्तार करके पुलिस के हवाले करने की जिम्मेदारी आम नागरिको की नहीं है ..

मगर क़ानून ऐसा नहीं कहता.. 

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ३७ : किसी पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट की मांग पर, प्रत्येक नागरिक, किसी अपराधी की गिरफ्तारी में उसकी मदद करने के लिए कानूनन बाध्य है. 

धारा ३९ : कुछ अपराधों के घटित होने या उस अपराध की योजना की जानकारी मिलने पर प्रत्येक नागरिक पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना देने के लिए कानूनन बाध्य है..जिसमें लोक-प्रशांति भंग करने का अपराध भी आता है जो गुवाहाटी की घटना में हुआ...

४३ (१ ) कोई भी नागरिक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जो उस नागरिक के सामने कोई गैर ज़मानातीय और संज्ञेय अपराध कर रहा हो और ऐसी गिरफ्तारी के बाद उसे पुलिस को सौंप सकता है..

गुवाहाटी की घटना के साक्षी और घटना का फिल्मांकन करते हुए वहा उपस्थित लोग, उपर्युक्त कानूनी प्रावधानों का पालन न करने के कारण स्वयं भी आरोपित की श्रेणी में आते हैं . 

और पुलिस की भूमिका की जांच तो होनी ही चाहिए कि घटना के समय वहाँ के क्षेत्रीय पदाधिकारी कहाँ थे और क्या कर रहे थे..

जर्मनी सहित अनेक देशों में ऐसा क़ानून है जो आप नागरिक द्वारा सक्षम रहते हुए अपराध न रोकने के आचरण को गम्भीर अपराध की श्रेणी में परिगणित करता है.. 
भारत में भी ऐसा क़ानून बनाए जाने की आवश्यकता है .. 

३ साल पहले पटना में एक लडकी के साथ दो लोगो ने सड़क पर इसी तरह का अपराध किया था और उसके बाद माननीय मुख्यमंत्री ने उस समय के आई जी , डी आई जी सहित पटना के एस पी का स्थान्तरण दूसरे दिन ही किया था..

मैंने एस पी , डी आई जी के रूप में रांची, चतरा , पलामू, खगडिया, गया, मोतिहारी , बेतिया , सहरसा ,मुजफ्फरपुर आदि जिलो में पैम्फलेट के माध्यम से जनता को प्रशिक्षित किया था कि वे भी आत्मरक्षा के अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपराधी के ऊपर हमला कर सकते हैं और ऐसा करने से उन्हें कानूनी सुरक्षा भी प्राप्त रहेगी..पुलिस द्वारा ऐसा किया जाना चाहिए जिससे आम नागरिक भी अपने कानूनी कर्तव्यों के प्रति सचेत रहें और पुलिस की सहायता निर्भय होकर कर सकें...