तुम सो जाओ
कि वक्त की सर्दी में
सिकुड़ती हुई मेरी किस्मत भी
अब सोने को है ।
तुम सो जाओ
कि कुहासे के धुंध से ढके हुए
तुम्हारी यादों के फूल
तुषार के आंसुओं में
अब रोने को हैं ।
तुम सो जाओ
कि ख़ुद की ही खूबसूरती से
बेपनाह माहताब
स्याह बादलों की परछाईं में
ख़ुद से ही ख़ुद को डुबोने को है ।
तुम सो जाओ
कि कहकशा की खामोश गहराई में
पिघलकर बेजार बहती हुई
सितारों की मायूस रोशनी भी
अब अपना नूरानी वजूद
खोने को है ।
तुम सो जाओ
कि तुम्हारी साँसों से सरककर बिखरी हुई
महक से प्रफुल्लित
दिलकश सवेरा
अभी बहुत देर से होने को है ।
तुम सो जाओ ...
तुम सो जाओ .....
----अरविंद पाण्डेय