परावाणी : The Eternal Poetry
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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012
हर एक गम जो मिला वो मुझे तराश गया.
वासुदेवः सर्वं !
हर एक गम जो मिला वो मुझे तराश गया.
मिलीं जो ठोकरें उनसे भी मिला इल्म नया.
बहुत सी कोशिशें हुईं मुझे हराने की,
करम खुदा का, कि शैतान मुझसे हार गया.
सभी मित्रों का स्वागत और नमस्कार...
© अरविंद पाण्डेय
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,.
प्रीस्ट वैलेंटाइन का मृत्यु-दिवस !
मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,
खुल कर जो खड़े होते क्लाडिअस के तुम खिलाफ.
ज़ालिम हो सल्तनत तो ज़रा जोर से कहो.
छुप छुप के इन्कलाब कोई इन्कलाब है.
© अरविंद पाण्डेय
सभी मित्रों का स्वागत और नमस्कार ..
मैं प्रीस्ट वैलेंटाइन द्वारा क्लादिअस के मानवता-विरोधी क़ानून का छुप कर उल्लंघन किये जाने को नापसंद करता हूँ.. उन्हें गांधी जी की तरह खुल कर सिविल नाफरमानी -- सविनय अवज्ञा करनी चाहिए थी..
अरविंद पाण्डेय
बुधवार, 8 फ़रवरी 2012
तू ही तू बस रहा है दिल के आशियाने में
वासुदेवः सर्वं
हुए हैं रहनुमा बहुत से इस ज़माने में,
सजे हैं शेर नाज़नीं कई , अफसाने में.
मगर तू राह भी,मंजिल भी, रहनुमा भी है .
तू ही तू बस रहा है दिल के आशियाने में.
अरविंद पण्डेय
रविवार, 5 फ़रवरी 2012
फिरदौस की महकी फिजा जैसी.
वासुदेवः सर्वं
तेरे तन पर तो बस परियां ही परियां उड़ रही है.
तू अब तो हो गई फिरदौस की महकी फिजा जैसी.
ज़मीन-ओ-ख़ाक पर तेरा उतरना है बहुत मुश्किल,
ये कैसा हुआ ये फासला कैसे , हुई ये इब्तदा कैसी.
© अरविंद पाण्डेय
बुधवार, 1 फ़रवरी 2012
रोशन चिरागों को बचाता हूँ...
कभी खुद मैं ही बन कर आँधियां दीपक बुझाता हूँ.
कभी फानूस बन, रोशन चिरागों को बचाता हूँ.
अंधेरा भी कभी बनकर सुलाता हूँ जहाँ को मैं,
मैं ही बन रोशनी सूरज की,गुलशन को सजाता हूँ.
© अरविंद पाण्डेय
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