ॐ आमीन ..
जो हारकर , छोड़ जाने की बात करते हैं.
हम तो बस उन्हें होश में आने की दुआ करते हैं.
वो खुद के घर को रोशनी से भर रहे बेशक,
मगर, औरों के घरों में तो धुंआ भरते हैं.
वो जो भी हों ,जहाँ भी हों,खुदा ही खैर करे,
हम तो हांथों में ही, सूरज को लिए फिरते हैं.
© अरविंद पाण्डेय
प्रिय मित्र ! कल प्रोफाइल में किसी ने किसी का फोटो शेअर किया और दुखित मन से लिखा कि कुछ लोग '' दबाव '' में काम न कर पाने की वजह से सिविल सेवाएं छोड़ देते हैं ,, छोड चुके हैं,, छोड़ देने वाले हैं ,, तो दो पंक्तियाँ कल निकली .. आज समय मिला तो उन दो को और सशक्त कर दिया बस.. आपके क्या विचार हैं.. आप से सच कहूँ-- इन लोगो द्वारा परिभाषित '' दबाव '' क्या होता है ,,अपने २० से अधिक वर्षों की सेवा के बाद भी मैंने नहीं देखा ,, न महसूस किया....
Aravind Pandey
सशक्त जज़्बा ...सुंदर पंक्तियाँ ...
जवाब देंहटाएंहम किरणों की अठखेली में, पूरे मन से खेल रहे,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 18 मार्च 2017 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!