मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन .
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अलिफ़ लाम मीम 

सर्वेश्वर, बस तुम्हीं प्रणम्य.
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हर शब ही शब-ए-कद्र सी आती है मेरे पास.
अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

हिन्दू  हो, मुसल्मां  हो, ईसाई  या   यहूदी .
हर  शख्स  को  ईमान  सिखाती है मेरी ईद.

शुभ शुक्र हो, होली हो , दिवाली हो या पोंगल,
इंसान की खुशियों में ही मनती है मेरी ईद.

मज़हब मेरा इस्लाम , मुसल्मां है मेरा नाम.
हंसते हुए बच्चे में, पर,  हंसती है  मेरी  ईद.

जब दिल में दूरियां हों, मज़हबों में दुश्मनी .
फिर, अम्न का इक चाँद ले आती है मेरी ईद

तुमको भी अगर इश्क की ख्वाहिश हो मेरे दोस्त.
आना  मेरे  घर ,  तुमको  बुलाती  है मेरी ईद.

-- अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 20 अगस्त 2011

आदमी बस चल रहा है.


आदमी बस चल रहा है.

यह बिना जाने
 कि जाना है कहाँ , कैसे , किधर,

वक़्त उसका बेवजह ही ढल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

खुद उसी की आरजू ने 
आग दिल में जो लगाईं,

वह उसी दोज़ख में बेबस ,
रात दिन बस जल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

-- अरविंद पाण्डेय 

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दोज़ख = नरक  

सोमवार, 15 अगस्त 2011

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


जो लाखों लोग हिफाज़त तुम्हारी करते हैं.
कड़कती धूप, ठण्ड, शीतलहर सहते हैं.
तुम जिनके दम पे अब लेते हो दम आज़ादी का.
उन्हें भी देखना किस हाल में वो रहते हैं.

अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे,
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे.
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है.
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है.

अगर बारिश हो तो हर शख्स नाच नाच उठे .
अगर जो शाम ढले, सबके दिल में गीत उठे.
सभी बेख़ौफ़ घूमते हों रात , राहों में.
हर एक दिल हो यहाँ इश्क की पनाहों में.

हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.

हर एक शख्स में जब शायराना मस्ती हो.
हर एक शय खुद अपने आपमें जब हस्ती हो.
तभी आज़ादी का सपना मेरा पूरा होगा.
ज़रा भी कम जो मिले, लक्ष्य अधूरा होगा.

अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

 
रक्षाबंधन विजयते

स्वारथ के संसार में , देखी अद्भुत रीत.
एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

कृष्ण सुभद्रा राम का, आज करूं अभिषेक .
ब्रज की प्रेमकथा सुनी, हुए पिघल कर एक.


मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल बुलाती है.



ॐ आमीन :

नशीली सी फिजाएं देख  मुझको ,मुस्कुराती  हैं.
बहुत मीठे सुरों में  मस्त  कोयल  गीत गाती है.
बड़ा  ही  खूबसूरत  है  मेरी राहो का हर गुलशन.
मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल  बुलाती है.

अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 6 अगस्त 2011

मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.

(26 जनवरी २००५ . समादेष्टा .बिहार सैन्य पुलिस .पटना )


वन्दे मातरं ..

किसी में आरजू होगी कि चाँद पर जाए.
किसी में जुस्तजू होगी कि चाँद खुद आए.
मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.
कि जान जाय तो बस मुल्क के लिए जाए..




अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप..


श्री मैथिलीशरण गुप्त.
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3 अगस्त :

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप.
कवि बने अल्पग्य कोई आप से ही आप.


कक्षा ८ में अध्ययन के समय ही मैंने श्री मैथिलीशरण गुप्त में महाकाव्य '' साकेत '; ''पंचवटी'' चिरगांव, झांसी से मंगाया था.साकेत के प्रथम पृष्ठ पर एक प्रसिद्द छंद अंकित था-

राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है.
कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है.

उसी छंद के नीचे ही मैंने अपनी उपर्युक्त दो पंक्तियाँ अंकित कर दी थीं.मेरे पास उपलब्ध साकेत की प्रति आज मेरे सामने है और आज पुनः वह छंद मेरे समक्ष समुज्ज्वल है


अरविंद पाण्डेय