रविवार, 11 अप्रैल 2010

आज शाम वक्त मेरे साथ था . ..





आज शाम वक्त मेरे साथ था . 

मैं अपने मित्र तनुसागर के स्टूडियो ''अंतरा '' गया और एक गीत अपनी आवाज़ मे रिकार्ड कराया जिसकी इच्छा मुझे वर्षों से थी..
मेरे साथ मेरे मित्र आमोद जी भी थे जिन्होंने रिकार्डिंग मे सहयोग किया..
तनुसागर ने अपनी रिकार्डिंग और मिक्सिंग प्रतिभा का ऐसा प्रयोग इस गीत मे किया कि मुझे अब इसे सुनते हुए लग रहा है कि मैंने इस गीत को गाकर अपने आतंरिक सौन्दर्य से इसे कुछ और भी मोहक बनाया है..
यह मेरा अनुभव है आप का अनुभव क्या होगा - मुझे नहीं पता ..
यह गीत शर्मीली फिल्म का है .
शशि कपूर ने इस गीत को गाते हुए जितने सुन्दर सम्मोहक दृश्यों का सृजन अपने अभिनय से किया था वैसे सुन्दर सम्मोहक दृश्य का सृजन आज का कोई भी अभिनेता नहीं कर सकता ..
'' कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का.
कल रुके ना रुके डोला बहार का.
चार पल मिले जो आज,प्यार मे गुजार दे.
खिलते हैं गुल यहाँ ,खिल के बिखरने को..........''
आप इसे ज़रूर सुने.. और बताये कैसा लगा आपको ..






----अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ये जिस्म है लिबास,इस लिबास से क्या इश्क


ये  जिस्म  है लिबास , इस लिबास से क्या इश्क .
ये आज साफ़ है तो कल हो जाएगा खराब.
जो इसको पहनता है वो है रूहे   - कायनात ,
मुझको तो मुहब्बत , बस उसी रूह से हुई.. 


----अरविंद पाण्डेय

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

कृष्ण हाथ उसके बिकते,संसार गया जो हार .



कामशून्य ही पा सकता है परमात्मा का प्यार.
कृष्ण हाथ उसके बिकते संसार गया जो हार 
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समः शत्रौ च मित्रे च ,तथा मानापमानयो:
शीतोष्णसुखदु:खेषु, समः संगविवर्जितः 

गीता के द्वादश अध्याय मे श्री भगवान ने उन गुणों का व्याख्यान किया है जिन गुणों के कारण वे स्वयं किसी मनुष्य से प्रेम करने लगते हैं..हम सभी श्री भगवान से प्रेम करने की चेष्टा करते हैं किन्तु इस बात पर बहुत कम लोगो का ध्यान जाता है कि वे कौन से गुण हैं जिनके कारण श्री भगवान् किसी से प्रेम करते हैं.

इस श्लोक मे श्री भगवान कहते कि जो व्यक्ति शत्रु और मित्र - दोनों मे समान दृष्टि रखता है ..जो मान और अपमान - दोनों स्थितियों मे समान रहता है अर्थात चित्त के स्तर पर अविचल रहता है .. सुख और दुःख तथा प्रतिकूल और अनुकूल - दोनों परिस्थितियों मे मन की तटस्थता बनाए रखते हुए भौतिक अर्थात विनाशवान पदार्थों के प्रति राग-मुक्त रहता है वह उन्हें प्रिय है.. 

इस अध्याय मे श्री भगवान द्वारा वर्णित गुणों से संपन्न व्यक्ति का एक विशिष्ट नामकरण श्री भगवान ने स्वयं द्वितीय अध्याय मे किया है .. वह नाम है - स्थितप्रग्य.. जिसका मूल लक्षण है काम शून्यता की स्थिति ..

----अरविंद पाण्डेय