बुधवार, 20 मार्च 2013

ढलेंगें हम न कभी,हमको यूँ ही चलना है




चरैवेति 
अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है

हो सुबह,रात हो या गर्म दुपहरी की तपिश
हमें हर हाल में मंजिल की ओर बढ़ना है 
ढले महताब, सितारे या शम्स ढल जाए
ढलेंगें हम न कभी,हमको यूँ ही चलना है



अरविंद पाण्डेय
 www.biharbhakti.com

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

जय जय जय जयति परावाणी




जो वाणी, परिनिष्ठित ऋत में ,
वह वाणी, सिद्ध परावाणी ! 
क्षण क्षण जो क्षरण-शील कण है,
वह  अक्षर  करे,  परावाणी !

बिखरी वैखरी विकल जो है ,
वह वाणी अविरत है आकुल ,
वीणा सी जो झंकार करे ,
जय जय जय जयति  परावाणी

अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com

सोमवार, 4 मार्च 2013

वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ...




थक चुके हों गर कदम,फिर भी तुझे चलना ही है. 
हो बहुत गहरा अन्धेरा,शब को, पर, ढलना ही है. 
वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ. 
आज जो सरताज,कल मुफलिस उसे बनना ही है. 


अरविंद पाण्डेय 
 www.biharbhakti.com

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.



हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


अरविंद पाण्डेय
 www.biharbhakti.com

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

गर, हमारे सर की तरफ,आँख उठा देखोगे,..



गर, हमारे सर की तरफ,आँख उठा देखोगे,
तो सुन लो - हाँथ भर की रस्सी के फंदे में,
तुम अपने सर को लटकता हुआ भी देखोगे. 

अरविंद पाण्डेय 
www.biharbhakti.com