शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

कब तलक जीतोगे तुम , हारेगा जब हिन्दोस्तां





कब तलक जीतोगे तुम , हारेगा जब हिन्दोस्तां,
अब वतन की जीत की भी फ़िक्र होनी चाहिए .

दिव्य भारत भूमि की जिस कोख ने हमको जना,
कुछ करो - उस कोख की तो लाज बचनी चाहिए ।

जिस ज़मीं का जल, रगों में खून बन कर बह रहा ,
उस ज़मी की, खाक में, इज्ज़त न मिलनी चाहिए ।

जो वतन की रहजनी के ख़ुद ही जिम्मेदार हैं ,
उनके ऊपर सुर्ख आँखें, अब तो, तननी चाहिए ।

जो शहीदों की शहादत का करें सौदा कभी,
उनके आगे अब कभी आँखें न झुकनी चाहिए ।

आज जो खामोश हैं वो कल भरेंगें सिसकियाँ ,
इसलिए, हर शख्स की बाहें फडकनी चाहिए।

बात जो हिंदुत्व की , इस्लाम की , करते बड़ी 
उनके पाखंडी जेहन की पोल खुलनी चाहिए ।

शक्ल इंसानी , मगर दिल है किसी शैतान का 
उन रुखों की असलियत, दुनिया को दिखनी चाहिए ।

बह गया पौरुष सभी देवों का फ़िर से एक बार ,
अब , ज़मीं पर फ़िर कोई दुर्गा उतरनी चाहिए ।
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मुझे याद आ रहा है कारगिल युद्ध --जब कारगिल
के कातिलों को , देशभक्त होने का दावा करने वालों 
ने , बहत्तर घंटे तक , भाग जाने का खुला
रास्ता देकर , कारगिल के पाँच सौ से अधिक
शहीदों की शहादत का अपमान किया था --

मुझे याद आ रहा है वह दिन, जब एक
अरब की जनसंख्या वाल्रे इस देश के
रहनुमाओं ने कंधार , जाकर देश पर हमला
कराने और करने वालो को मुक्त किया था ।

वही लोग दाउद को सौपने की मांग कर रहे हैं ।
मगर , क्याये नेता इस बात की गारंटी देंगें
कि ये फ़िर दाउद को लाहौर या कंदहार
जाकर नही छोड़ आयेंगे ? 

ये लोग शायद ख़ुद के बारे में ज़्यादा
सोच रहे है कि कौन सी राजनीति करे
कि हम भारत के लोग , इनसे वह सवाल
करना भूल जाय
जो अभी एकस्वर से कर रहे हैं ।

इसलिए शायद इन्हें यह सद्बुद्धि आए कि ये लोग
वह सब करने से बचेंगें जो करने की
इनकी आदत रही है ।
शहीद हेमंत करकरे की पत्नी और शहीद संदीप
उन्नीकृष्णन के पिताने देश से कहा था 
कि अपनी कुर्सी के लिए देश के मूल्यों 
की ह्त्या करने वालों को अगर दंड नही दे सकते
तो उनसे न मिलकर, ये बता सकते हैं कि आप
किसी शहीद को सम्मानित करने के योग्य नही ।
 तो आइये एक नए भारत
निर्माणके लिए कुछ नया चिंतन करे ।
नया सृजन करें ।
शुद्ध और सशक्त विचारों से एक नया रास्ता बनाए ।

---- अरविंद पाण्डेय


शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

अतः , आज शिव-शक्ति समन्वय, मानव को करना है..




यह संसृति, सुव्यक्त  रूप है उस निगूढ़ सत्ता    का 
जो प्रत्येक परमाणु -खंड में प्रतिपल व्याप  रही  है 
करना  है नर  को अन्वेषण , दर्शन  उस सत्ता  का.
इसी हेतु, प्रति व्यक्ति विश्व के तल पर व्यक्त हुआ है 

निखिल जगत के सूक्ष्म-तत्व का पर्यालोकन करके
मानव को निज का विशुद्ध शिव-रूप प्राप्त करना है  
है विज्ञान सहायक इसमें ,पर  उसमें भी त्रुटि है.
नव विज्ञान शिवत्व-रहित है, ईर्ष्या-द्वेष सहित है 

शिव के अपमानित होने पर शक्ति नष्ट करती है .
निज शरीर को तथा अनादर-कर्ता निज स्रष्टा को.
शक्ति-नाश से शंकर भी प्रलयंकर बन जाता है .
अतः आज शिव-शक्ति समन्वय, मानव को करना है .


शक्ति प्राप्तकर नर यदि उसको शिव-मंडित करता है 
तभी बन सकेगा वह सबसे श्रेष्ठ बुद्धि के बल से.
पुरुष-कामना पूर्ण करेगी प्रकृति सदा स्वेच्छा से.
अखिल विश्व में मानवता का जय- निनाद बिखरेगा ..
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यह स्तुति मैंने १९८० में लिखी थी किशोरावस्था में ..
शिव का अर्थ कल्याण और शक्ति का अर्थ ऊर्जा..
भारत, ऊर्जा और आत्मा - दोनों को सत्य और चेतन मानता है ..
और इसीलिये शिव-शक्ति के समन्वय और उनके विवाह का पर्व मनाते हैं हम ..
विज्ञान द्वारा ऊर्जा अर्थात शक्ति का विवाह शिव अर्थात कल्याण के साथ न किये जाने के कारण परमाणु बम का जन्म हुआ ..
परमाणु में  निहित अनंत ऊर्जा मानव कल्याण के लिए प्रयुक्त होनी थी परन्तु विज्ञान ने उसका प्रयोग मानव नरसंहार के लिए किया ..
यह विज्ञान के इतिहास का सर्वाधिक कलुषित अध्याय है ..

जगत्पिता  शिव और जगन्माता पार्वती के विवाह - दिवस महाशिवरात्रि  का संकल्प -- 
 '' अतः , आज शिव शक्ति समन्वय मानव को करना है '' 



ब्लॉग में पूरी कविता पढ़ें और ब्लॉग में अपनी टिप्पणी भी लिखने का कष्ट करें .
----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

मैं भारत हूँ, मैं भा - रत हूँ , मैं प्रतिभा - रत ...



 १.
 मैं भारत हूँ, वसुधा   की प्रज्ञा का प्रकाश .
मैं ज्ञान-यज्ञ  की भूमि,प्रणव का पुरोडाश .

परमर्षि भरत ,राजर्षि  भरत  मेरे सुपुत्र .
जिनके चरित्र का स्मरण,चित्त करता पवित्र .

मैं  भरत  नाम के  दो  पुत्रों से, हूँ भारत .
मैं भारत हूँ, मैं  भा- रत  हूँ , मैं प्रतिभा - रत


2
मैं युद्धभूमि के मध्य,  ज्ञान का दाता हूँ .
मैं महानाश के क्षण का सृजन-विधाता हूँ.

मैं अग्निकुंड से शशिमुख - रमणी प्रकट करूं
मैं शशि-शीतल भ्रूमध्य-विन्दु से अग्नि झरूँ .

मैं घटाकाश का महाकाश में विलय करू..
मैं भारत हूँ , नव-सृजन हेतु मैं  प्रलय करूं...

क्रमशः 
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आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं..
आपके लिए मैंने ये कविता लिखी है
..
महाशक्ति बन रहे अपने पड़ोसी
के साथ नियति द्वारा ली जाने वाली परीक्षा निकट भविष्य में ही होनी है..

आइए हम सभी उसकी भी तैयारी करें.

कल मेरे प्रिय मित्र आमोद  जी ने मुझे मेरे जन्म दिन के अवसर पर
एक सुन्दर सुनहरी कलम का दान किया..

वैसे मैं जन्म दिन पर ईश्वर का विशेष ध्यान  करता हूँ  ..
कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं करता..
और  मैं उपहार के रूप में या अन्य किसी भी रूप में कभी कोई वस्तु स्वीकार नहीं करता क्योकि
मुझे अखंड विश्वास है कि ली हुई वस्तु अनिवार्य रूप से दाता को देनी पड़ती है..

किन्तु कलम और वह भी भारत-भक्त आमोद जी के द्वारा प्राप्त -- मैं अस्वीकार न कर सका ..
ये ऋण चुकाने का भावी दायित्व मैंने स्वीकार किया ..

उसी कलम से यह कविता मैंने लिखी..
''मैं भारत हूँ, मैं  भा- रत  हूँ , मैं प्रतिभा - रत''

मुझे यह संक्षिप्त लेखन अति प्रिय लगा ..
आपको कैसा लगा --कृपया ब्लॉग पर टिप्पणी लिखना न भूलियेगा ..

----अरविंद पाण्डेय