बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

गान्धी की मूर्तिपूजा


महापुरुष प्रतिमा सम्मान और सुरक्षा अधिनियम :
प्रतिमाओं की स्थापना के संबंध में सनातन धर्म में एक विशेष प्रक्रिया विहित की गई है. सभी जानते हैं कि जब हम किसी देवता या देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं तो उसमें शास्त्रीय विधि के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. उसके लिए गर्भगृह का निर्माण होता है.प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसे जीवंत माना जाता है. सजीव माना जाता है.
     देव प्रतिमा के सम्मान की दृष्टि से उन्हें स्नान कराने के लिए, उन्हें भोग लगाने के लिए, उनकी आरती के लिए एक पुजारी की विधिवत नियुक्ति की जाती रही है.
     भारत, यूनान, रोम और मिश्र तथा यूरोप के अन्य देशों की तरह नहीं है जहां किसी भी देवता या महापुरुष की प्रतिमा चौराहों पर या अन्य पार्को में स्थापित कर दी जाए.
     यूरोप और अन्य देशों के अनुकरण में भारत में भी महापुरुषों की प्रतिमाएं चौराहों पर और अन्य स्थलों पर स्थापित करने की एक परंपरा तो प्रारंभ हुई किंतु उन प्रतिमाओं की दैनिक देखभाल, स्वच्छता आदि कार्य के लिए अथवा उनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया.
     अब आवश्यकता है कि इस तरह का कानून बनाया जाए कि यदि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी सार्वजनिक स्थल पर किसी महापुरुष की प्रतिमा स्थापित करे तो उस प्रतिमा की देखभाल के लिए, उस प्रतिमा को निरंतर स्वच्छ बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति भी करे और प्रतिमा की सुरक्षा का भी उपाय करे तभी ऐसी प्रतिमाएं स्थापित किए जाने की अनुमति सरकार द्वारा दी जानी चाहिए.
     यदि कोई इन शर्तों को पूरा नहीं करता है कोई तो उसे प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए       
      बिहार के चंपारण जिले में जहां बैरिस्टर गांधी 1917 में आए थे और अपने अद्भुत, अप्रतिम, अभूतपूर्व सत्याग्रह के प्रयोग का प्रारंभ किया था  और उसके सफल प्रयोग के बाद बैरिस्टर गांधी संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी कहे जाने लगे थे, उसी चंपारण के मोतिहारी जिले में दो जगहों पर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ अपमानजनक व्यवहार कुछ अपराधियों द्वारा किया गया.
     यह एक प्रस्तर मूर्ति को अपमानित करने की घटना नहीं है बल्कि अत्यंत गंभीर आपराधिक घटना है. 
     पुलिस तत्परता पूर्वक इन मामलों में अनुसंधान भी कर रही है किंतु अब महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक हो गया है क्योंकि महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ आंबेडकर आदि की प्रतिमाएं सार्वजनिक स्थलों पर लगाई जाती हैं और इन प्रतिमाओं के अपमान के बाद लोक व्यवस्था तथा विधि व्यवस्था भंग होने की संभावना भी बलवती होती है. इस अप्रिय स्थिति से मुक्ति के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक है.
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

पंडित दीनदयाल उपाध्याय - एक राहुग्रस्त सूर्य

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक "राष्ट्र चिंतन" और "राष्ट्र जीवन की दिशा" मैंने हाई स्कूल के विद्यार्थी के रूप में पढी थी...
    अनेक विस्मयकारी और मौलिक चिंतन से समृद्ध इन पुस्तकों में "मैं और हम" शीर्षक लेख मुझे आजतक हर सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या और उनके समाधान के अन्वेषण के समय एक सम्पूर्ण समाधान के रूप में दिखाई देता है..यह लेख शाश्वत और सार्वभौम चिंतन का एक उच्छल सागर है..इस लेख को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं... 
     1967 के संसदीय निर्वाचन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पवित्र नेतृत्व में भारतीय जनसंघ को 35 संसदीय क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई थी जो अभूतपूर्व और अप्रत्याशित मानी गयी थी किन्तु इससे यह सिद्ध हो गया था कि भारतीय जनमानस राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति से अनुप्राणित है और यदि उसकी इस प्रसुप्त राष्ट्रवादी चेतना को जागृत किया जाय तो भारतीय राष्ट्रीय चेतना का महजागरण सम्भव है..
    1967 में उनके प्रखर नेतृत्व को यह सफलता प्राप्त होती है और 1968 की फरवरी में ही उनकी अतिरहस्यमय रूप से हत्या कर दी जाती है..
    उनकी हत्या के बाद उनका शव तत्समय मुगलसराय सराय नामक रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों पर पाया गया था जब वे पटना के लिए रेलयात्रा पर थे..
    इस प्रकरण में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उन्हें उस दिन लखनऊ से दिल्ली जाना था किंतु पटना से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति ने फोन कर उन्हें पटना के किसी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया और उन्होंने लखनऊ से दिल्ली की यात्रा की जगह लखनऊ से पटना के लिए प्रस्थान किया और उनकी हत्या कर दी गयी..
     इस रहस्यमयी हत्या का अनुसंधान सीबीआई ने किया और आश्चर्यजनक रूप से सीबीआई, इस अतिमहत्वपूर्ण हत्या के षड्यंत्र पक्ष पर कोई साक्ष्य संकलित नहीं कर सकी..
    "एकात्म मानववाद" उनका एक अभूतपूर्व चिंतनपरक ग्रंथ है जिसमें उनकी एक और सार्वभौम शाश्वत चिंतन की मंदाकिनी है जिसमे स्नान करके कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक व्यक्तित्व को शुद्ध और पवित्र कर सकता है.. 
    बाद में उन्हीं के अनुयायियों द्वारा "गांधीवादी समाजवाद" शब्द द्वारा कुछ नया करने की वासना में इस एकात्म मानववाद के विचार को प्रतिस्थापित कर दिया गया.
      दीनदयाल जी की अनेक पुस्तकों में से एक अतिशय रोचक और प्रेरक पुस्तक  "सम्राट चंद्रगुप्त" भी है जो उन्होंने चुनार के किले में प्रवास करते हुए 24 घण्टे के अंदर ही लिखकर पूर्ण की थी..
     दीनदयाल जी यद्यपि भारतीय जनसंघ नामक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष थे किन्तु उनकी पुस्तकों और उनके दर्शन का अवगाहन प्रत्येक भारतीय को स्वयं को बौद्धिक रूप से समृद्ध करने हेतु किया जा सकता है... 
     आज ऐसे तपस्वी को उनके महाप्रयाण दिवस पर विनत श्रद्धांजलि 🌹
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳