महापुरुष प्रतिमा सम्मान और सुरक्षा अधिनियम :
प्रतिमाओं की स्थापना के संबंध में सनातन धर्म में एक विशेष प्रक्रिया विहित की गई है. सभी जानते हैं कि जब हम किसी देवता या देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं तो उसमें शास्त्रीय विधि के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. उसके लिए गर्भगृह का निर्माण होता है.प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसे जीवंत माना जाता है. सजीव माना जाता है.
देव प्रतिमा के सम्मान की दृष्टि से उन्हें स्नान कराने के लिए, उन्हें भोग लगाने के लिए, उनकी आरती के लिए एक पुजारी की विधिवत नियुक्ति की जाती रही है.
भारत, यूनान, रोम और मिश्र तथा यूरोप के अन्य देशों की तरह नहीं है जहां किसी भी देवता या महापुरुष की प्रतिमा चौराहों पर या अन्य पार्को में स्थापित कर दी जाए.
यूरोप और अन्य देशों के अनुकरण में भारत में भी महापुरुषों की प्रतिमाएं चौराहों पर और अन्य स्थलों पर स्थापित करने की एक परंपरा तो प्रारंभ हुई किंतु उन प्रतिमाओं की दैनिक देखभाल, स्वच्छता आदि कार्य के लिए अथवा उनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया.
अब आवश्यकता है कि इस तरह का कानून बनाया जाए कि यदि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी सार्वजनिक स्थल पर किसी महापुरुष की प्रतिमा स्थापित करे तो उस प्रतिमा की देखभाल के लिए, उस प्रतिमा को निरंतर स्वच्छ बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति भी करे और प्रतिमा की सुरक्षा का भी उपाय करे तभी ऐसी प्रतिमाएं स्थापित किए जाने की अनुमति सरकार द्वारा दी जानी चाहिए.
यदि कोई इन शर्तों को पूरा नहीं करता है कोई तो उसे प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए
बिहार के चंपारण जिले में जहां बैरिस्टर गांधी 1917 में आए थे और अपने अद्भुत, अप्रतिम, अभूतपूर्व सत्याग्रह के प्रयोग का प्रारंभ किया था और उसके सफल प्रयोग के बाद बैरिस्टर गांधी संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी कहे जाने लगे थे, उसी चंपारण के मोतिहारी जिले में दो जगहों पर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ अपमानजनक व्यवहार कुछ अपराधियों द्वारा किया गया.
यह एक प्रस्तर मूर्ति को अपमानित करने की घटना नहीं है बल्कि अत्यंत गंभीर आपराधिक घटना है.
पुलिस तत्परता पूर्वक इन मामलों में अनुसंधान भी कर रही है किंतु अब महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक हो गया है क्योंकि महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ आंबेडकर आदि की प्रतिमाएं सार्वजनिक स्थलों पर लगाई जाती हैं और इन प्रतिमाओं के अपमान के बाद लोक व्यवस्था तथा विधि व्यवस्था भंग होने की संभावना भी बलवती होती है. इस अप्रिय स्थिति से मुक्ति के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक है.
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳