परावाणी : The Eternal Poetry
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शनिवार, 22 मार्च 2014
इस ज़मीं से कोई खुशबू ले रहा, काँटा कोई.
दो तरह के पेड़ इक काँटों भरा, इक फूल का.
इस ज़मीं से कोई खुशबू ले रहा, काँटा कोई.
दो तरह के लोग हैं दुनिया के दस्तरख्वान में,
एक लगता मिर्च सा, दूजा लज़ीज़ इफ्तार सा .
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
रविवार, 16 मार्च 2014
हमें है फिक्र कि होली में अम्नो-ओ-चैन रहे.
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं
तुम्हें हसरत है कि होली में खूब रंग मलो,
हमें है फिक्र कि होली में अम्नो-ओ-चैन रहे.
तो फिर,कुछ इस तरह से लाल किसी को करना,
कि वो गुस्से में न हो लाल, न फिर बात बढे.
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
रविवार, 2 मार्च 2014
उन प्राणों की क्या चिंता
ॐ ,,, आमीन
न जायते म्रियते वा कदाचित् ...
क्षण क्षण क्षरण-शील जीवन में,
अनासक्त होकर तन-धन में,
केवल कर्म वही श्रेयस्कर
जिससे हो सबका कल्याण.
उन प्राणों की क्या चिंता जो,
जन्म-जन्म से अविश्वस्त हैं,
तुम्हें छोड़कर निष्ठुरता से,
करते बारम्बार प्रयाण ...
अरविंद पाण्डेय www.biharbhakti.com
रविवार, 23 फ़रवरी 2014
क्या कहें
किसी को गैस है इतनी कि पेट जलता है.
किसी की रोटियाँ बननी भी आज मुश्किल हैं..
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
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