मंगलवार, 23 जून 2015
Aye Nargise Mastana cover by Arvind Pandey
सोमवार, 22 जून 2015
Aashao ke Sawan Cover by Arvind Pandey
रविवार, 21 जून 2015
Dil Ko Na Mere Tadpao cover by Arvind Pandey
गुरुवार, 14 मई 2015
तांस्तथैव भजाम्यहम
ईश्वर सदा अपने ऊपर अखंड विश्वास रखने वाले की इच्छा पर ही प्रकट होते हैं............ प्रहलाद जी ने कह दिया खम्भे में भी हैं, तो वे खम्भे से ही प्रकट हो गए.....
.............. जिसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है या जो ईश्वर की सत्ता का निषेध करता है उसे विश्वास दिलाने के लिए ईश्वर प्रकट नहीं होने वाले.............
.............. जिसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है या जो ईश्वर की सत्ता का निषेध करता है उसे विश्वास दिलाने के लिए ईश्वर प्रकट नहीं होने वाले.............
बुधवार, 13 मई 2015
''साहब'' लोग थोड़ा ''सहज'' हो जाइए
ईश्वरीय-सन्देश का भयावह स्वरुप :
अपना जीवन कितना मूल्यवान लगता है ,,,,,,,,,,,,,,,,, अपना जीवन बचाने के लिए एक ही पल में कुर्सी छोड़-छोड़ कर बड़े लोग उसी तरह खुले आसमान के नीचे आ गए जैसे राजकुमार सिद्धार्थ एक ही पल में अपना साम्राज्य छोड़ कर खुले आकाश के नीचे चले गए थे......................
..................... अगर इसी तरह आम नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए भी लोग एक पल में ही कुर्सी छोड़ने को तैयार रहें तो भूदेवी भूकंप से पीड़ित ही नहीं होगीं.............
.................. मगर लोगों द्वारा, कुर्सी को पाने और उस पर बैठे रहने के लिए के लिए कुर्सी के लिए बनायी गयी सारी आचार-संहिताएँ अपने लोभ-कंप और अहंकार-कंप से उसी रहा ध्वस्त कर दी जाती हैं जैसे भूकम्पों से भूदेवी के वक्ष पर निर्मित अट्टालिकाएं ध्वस्त हो जाती हैं .............
...................... हज़ारों युवा वृक्षों को यही कुर्सी छोड़ कर भागनेवाले लोग अपने पर्यावरण-विरोधी चित्त-दोष के कारण क़त्ल कर देने का हुक्म देते है............. सारे देश में वृक्षों का क्रूर कत्ले-आम देखा जा सकता है..........
................ तो अब कुर्सी छोड़ के भागते क्यों हैं साहब ,, इसलिए कि आपका जीवन खतरे में दिख रहा था.............
...................आप ईश्वर को नहीं मानते हैं न,,, ठीक है,,,, तो ये समझिये कि प्रकृति के समक्ष आम लोगो के जीवन का भी वही मूल्य है जो आपके जीवन का है....... आम लोगो के लिए अस्पताल, स्कूल , और रहने का घर, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा तो दीजिये ............
........................अपने और आम लोगों के जीवन में इतना बड़ा फर्क न कीजिये साहब.............
............. अभी भी समय है............ वृक्षों का क्रूर कत्लेआम रोकने, पारिस्थितिकी और पर्यावरण की रक्षा आम लोगो को स्वास्थ्य, शिक्षा और सुजीवन देने के लिए कुर्सी की ताकत का प्रयोग कीजिये.............
''साहब'' लोग थोड़ा ''सहज'' हो जाइए ,,, सब ठीक हो जाएगा........
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भूकंप 2015 Earthquake
रविवार, 26 अप्रैल 2015
पृथिवी शान्तिः
भूकंप सदृश संकट में निर्भय-चित्त और अक्षत-विवेक बने रहने से आप उस संकट से बचने में और दूसरों को बचाने में सफल होंगें .......
.............. इसलिए चित्त और अभिव्यक्ति के स्तर पर निर्भय बनें रहें और स्वयं को तथा अन्य संकटग्रस्त लोगों को बचाने हेतु भौतिक, संकल्पात्मक,बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक प्रयास करते रहें ............
............. अपने निजी स्वार्थ में पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करने वाले लोगों पर इस संकट का सीधा प्रभाव नहीं पड़ रहा है वे बचकर भी निश्चिन्त न रहें............
............... उन्हें भी उनकी नियति ले जायेगी उस गर्त में जहां गिर कर वे अपने द्वारा किये गए प्राकृतिक अपराधों के प्रति पश्चात्ताप करेंगें .........
मनु हैं तो मानवता है
बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर यदि आज अपने द्वारा लिपिबद्ध भारत के संविधान का अवलोकन करें तो वे आश्चर्यान्वित रह जायेगे क्योकिं उनके द्वारा लिपिबद्ध संविधान में इतने परिवर्तन हो चुके हैं जितने परिवर्तनों की उन्होंने कभी कल्पना भी न की थी ! उन्होंने स्पष्ट कहा था कि यदि इस संविधान से देश की सभी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो यह संविधान के कारण नहीं बल्कि संविधान को लागू कराने के लिए उत्तरदायी लोगों के कारण होगा
................................उसी तरह ,महाराज मनु ने जिस संहिता का निर्माण किया था उसे मानव धर्मसूत्र के रूप में वर्तमान मनुस्मृति के लिपिबद्ध होने के हज़ारों साल पहले से जाना जाता रहा है..........किन्तु, मानव धर्मसूत्र का लिपिबद्ध संस्करण अब अप्राप्त है............
.............. वर्तमान मनुस्मृति में लिपिबद्ध अनेक प्रावधान और नियम, परवर्ती राजनीतिक-सत्ताओं द्वारा अपनी विशिष्ट शासन-नीतियों को संपोषित करने के लिए महाराज मनु के नाम पर अंतःस्थापित कर दिए गए...........
.............. जैसे डॉ. अम्बेडकर, भारत के संविधान के लिपिकार के रूप में सर्वज्ञात होने के बावजूद उन सारे संशोधनों के लिपिकार नहीं हैं जो उनके समय में संविधान में अंतर्विष्ट नहीं थे किन्तु आज हैं, इसीतरह महाराज मनु वर्तमान मनुस्मृति के उन नियमों और प्रावधानों के लिपिकार नहीं हैं जो मानव-धर्म अर्थात मानवता के विरुद्ध हैं...
..................... अपने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए मानव-अधिकार आयोग की शरण लेने वाले भी आज महाराज मनु के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर अपने द्विधाग्रस्त चित्त का प्रमाण देते हैं........... जिन मानव अधिकारों की बात लोग करते हैं वे मानव अधिकार भी महाराज मनु ने ही दिए हैं.......मनु समाप्त होंगें तो मानवता कहाँ बचेगी ..............
............... मनु हैं तो मानवता है....
................................उसी तरह ,महाराज मनु ने जिस संहिता का निर्माण किया था उसे मानव धर्मसूत्र के रूप में वर्तमान मनुस्मृति के लिपिबद्ध होने के हज़ारों साल पहले से जाना जाता रहा है..........किन्तु, मानव धर्मसूत्र का लिपिबद्ध संस्करण अब अप्राप्त है............
.............. वर्तमान मनुस्मृति में लिपिबद्ध अनेक प्रावधान और नियम, परवर्ती राजनीतिक-सत्ताओं द्वारा अपनी विशिष्ट शासन-नीतियों को संपोषित करने के लिए महाराज मनु के नाम पर अंतःस्थापित कर दिए गए...........
.............. जैसे डॉ. अम्बेडकर, भारत के संविधान के लिपिकार के रूप में सर्वज्ञात होने के बावजूद उन सारे संशोधनों के लिपिकार नहीं हैं जो उनके समय में संविधान में अंतर्विष्ट नहीं थे किन्तु आज हैं, इसीतरह महाराज मनु वर्तमान मनुस्मृति के उन नियमों और प्रावधानों के लिपिकार नहीं हैं जो मानव-धर्म अर्थात मानवता के विरुद्ध हैं...
..................... अपने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए मानव-अधिकार आयोग की शरण लेने वाले भी आज महाराज मनु के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर अपने द्विधाग्रस्त चित्त का प्रमाण देते हैं........... जिन मानव अधिकारों की बात लोग करते हैं वे मानव अधिकार भी महाराज मनु ने ही दिए हैं.......मनु समाप्त होंगें तो मानवता कहाँ बचेगी ..............
............... मनु हैं तो मानवता है....
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बुधवार, 18 मार्च 2015
ग़म है या खुशी है तू - मेरे स्वर में
मेरे स्वर में .
ग़म है या खुशी है तू -
गुरुवार, 5 मार्च 2015
हर रोज़ होगी होली , हर रोज़ दिवाली.
हर रोज़ अगर दोगे तुम साथ गरीबों का,
हर रोज़ होगी होली , हर रोज़ दिवाली.
होली की असीम शुभकामनाएं !
बुधवार, 4 मार्च 2015
धिक्कृताः धिक्कृताः धिक्कृताः
पानी भी कुछ महंगा ही है उन सब के ईमान से.
अफज़ल गुरु नाम ले रहे जो अब भी सम्मान से.
धिक्कृताः
धिक्कृताः
धिक्कृताः
अफ़ज़ल को भारत की न्याय-प्रक्रिया और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का पूर्ण और विलंबित पालन करते हुए फांसी दी गयी थी , और इसलिए,
जो लोग उसकी फांसी को अन्याय-पूर्ण या अनुचित कह रहें हैं वे वास्तव में भारत के संविधान और तदनुसार-सृजित भारत की न्याय-पालिका को अपमानित कर रहे हैं......
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