रविवार, 26 अक्तूबर 2008

मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ..



जिसके दम पर दमकती रही मुंबई
जिसके बल पर बहकती रही मुंबई
जिसके जज्बे से जीती रही मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं तो हूँ ।


जिसके सुर से संवरती रही मुंबई
जिसकी धुन पर थिरकती रही मुंबई
जिसके सपनों में सजती रही मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


जिसके पैसे पे पलती रही मुंबई
जिसके चलने से चलती रही मुंबई
जिसके ढलने से ढल जायगी मुंबई
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ- काम देंगे तुम्हे
गिरने जब भी लगो - थाम लेंगे तुम्हे
शान बढ़ जाय - वो नाम देंगे तुम्हें
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ - काम आयेंगे हम
इक बरक्कत का गुलशन खिलाएंगे हम
अपने लोगो की गुरबत मिटायेंगे हम
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिससे वादा हुआ, फ़िर से तोडा गया
लाके मंझधार में फ़िर से छोडा गया
जिसके टूटे दिलों को न जोड़ा गया
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


जिसको अपनों ने फ़िर से है धोखा दिया
मज़हब-ओ-जात में बाँट के रख दिया
कुछ करेंगे - कहा था , मगर ना किया
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।


कितने अरमां से रहवर बनाया उसे
कितनी हसरत से कुर्सी दिलाया उसे
जीत की फूल - माला पिन्हाया उसे
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिसकी लाशों की सौगात भेजी गयी
जिसके अपनों की औकात परखी गयी
गैरत-ओ-शान,पर,जिसकी यूँ मिट गयी
मुंबई की सड़क पर वो मैं ही तो हूँ ।

जिसकी बोली पे सारा ज़माना फ़िदा
बिकती बाज़ार में, जिसकी नाज़-ओ-अदा
अब तो दुनिया बुलाती जिसे दे सदा
मुंबई की सड़क पर वो ही तो हूँ ।

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सृजनात्मक अहिंसक प्रतिरोध 
एकमात्र उपाय :
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मुंबई में राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को गंभीर
क्षति पहुचाने वाले राष्ट्रीय अपराध के प्रति पूरे देश में
व्यापक प्रतिक्रया और अनुक्रिया हुई है ।
सारा देश, इन घटनाओं से हतप्रभ और मर्माहत है ।
किंतु प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करने में जिस
सतर्कता की आवश्यकता है -कभी कभी उसका ध्यान
नही रखा जा रहा है ।
हम राहुल राज का उदाहरण लें ।किस विधि से हमें
मुंबई की घटनाओं पर प्रतिक्रिया करनी है - यदि यह
उस बहादुर राहुल को पता रहता तो शायद वह मुंबई
पुलिस की गोलियों से स्वर्गवासी नही होता ।
पुलिस को भी इस मामले में जिस सतर्कता से काम करना
चाहिए था , उसने नही किया -- ऐसा लोग मान 
रहे हैं । यह मामला सीधे 
तौर पर उत्तर भारतीयों और मराठी - भाइयो के बीच 
तनाव के लिए राज ठाकरे द्वारा चलाये जा रहे अभियान 
से जुडा हुआ होने के कारण और अधिक ध्यान
से देखे जाने योग्य था । मुंबई -पुलिस उसे 
पकड़ने का प्रयास कर सकती थी । 
धर्म -स्थलों में छुपे आतंक वादियों के मामलों,
स्थिति
की संवेदनशीलता की दृष्टि से ,
पुलिस अक्सर, हमले की बजाय पकड़ने का 
प्रयास करती देखी जाती रही है । 
इस समय अवैध तरीकों से व्यक्त प्रतिक्रया शायद
कोई अनुमोदित नही करेगा । क्योंकि इससे मुंबई में
रह रहे उत्तर भारतीयों पर क्षेत्रवाद पर आधारित 
हिंसा का खतरा बढ़ सकता है । 
मुंबई के माफिया गिरोह के लोग, उत्तर भारतीय
नौजवानों का दुरुपयोग अव्यवस्था फैला कर
अपने हित-साधन के लिए भी कर सकते हैं । 
सम्पूर्ण देश जानता है कि जब राष्ट्रीय - स्वाभिमान के
प्रतीकों को नमन करने का अवसर आता है तब छत्रपति
महाराज शिवा जी का नाम सर्वप्रथम लेने की इच्छा
होती है । हमारे देश में हर माता, प्रातः स्मरणीया माता 
जीजा बाई बनने की महत्वाकांक्षा रखती है ।
जब गीता के रहस्यों का बोध प्राप्त करना होता
है तब हम भारत के लोग, संत ज्ञानेश्वर और लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक की ज्ञानेश्वरी और गीता- रहस्य
की शरण लेते हैं ।
और इसीलिये हम , मराठा प्रदेश को राष्ट्र ही नही
महाराष्ट्र कहते रहे हैं । आज भी सारा देश और विश्व भी ,
जब शाँति-कामी होता है तब वह श्री कृष्ण की वंशी
की अवतार लता मंगेशकर के स्वर की शरण लेता है ।
इसलिए , राज ठाकरे और उनके राक्षसत्व का उत्तर
हमें स्थिर बुद्धि से देना होगा अन्यथा हम इनलोगों के
बिछाए जाल में फंस जायेंगे ।
इन घटनाओं के " निष्क्रिय उत्तरदायी " वे भी हैं जिनकी
अकर्मण्यता के कारण , हम बिहार के लोग, कारखानों में काम
करने , ड्राइवर, सुरक्षा - गार्ड , चपरासी , आदि की नौकरी
करने मुंबई और दूसरे राज्यों शहरों में जाने को
विवश होते हैं।
हम जानते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण
रोज़गार गारंटी अधिनियम अगर शतप्रतिशत ईमानदारी
के साथ बिहार में लागू करा दिया जाय तब मुम्बई सहित
देश के अन्य औद्योगिक राज्यों में मेहनतकशों की कमी
हो जायेगी और वे हमारे लोगों को को अधिक पैसा
और सम्मान के साथ काम के लिए आमंत्रित करेंगे ।
आज भी भोजपुरी फ़िल्म उद्योग पटना में स्थानांतरित
नही हो पाया । प्रकाश झा , मनोज तिवारी आदि ने
बिहारी- भाषा , विषयवस्तु , संस्कृति , संगीत से किन
उपलब्धियों को हासिल किया - यह सब जानते हैं ।
किंतु , इनमे से किसी ने बिहार में शूटिंग स्टूडियो
बनाने की कोई पहल नही की । 
यह भी सभी जानते
हैं कि इस समय कौन कितना ताकतवर है ।
ताकत का प्रयोग अपने निजी फायदे के लिए करने की 
होड़ है लोगों में ।
इसलिए हम इन अपराधों के " सृजनात्मक अहिंसक 
प्रतिरोध "
का आहवान करते हैं जिसके लिए 
प्रकाश झा मनोज तिवारी
जैसे लोगो से अपील की जाती है कि वे एक वर्ष के
के लिए मुंबई छोडें और फ़िल्म शूटिंग कि सारी कारर्वाई
बिहार में करे ।

हम नरेगा के क्रियान्वयन के लिए
जिम्मेदार लोगो से अपील करते हैं कि वे कम से कम
बिहारी मेहनतकशों को बिहार में ही रोज़गार की गारंटी
दे जिससे राज ठाकरो को पता लग सके कि बिहार
तैयार है उन्हें गांधीवादी तरीके से जवाब देने के लिए ।

यदि ये लोग ऐसा नही करे तो हमें समझना होगा
कि हम अपनो के कारण हारते रहे हैं .