१.
मैं अंग्रेजो के दीप्त-दर्प का संहारक .
मैं भगत सिंह हूँ, भारत माता का बालक.
यदि कायरता , हिंसा दोनों ही हों समक्ष.
तब, गांधी जी ने हिंसा का था लिया पक्ष.
मैंने तो उनके ही मत का अनुसरण किया.
कायरता का कर त्याग, शौर्य का वरण किया.
२.
नेहरू जी ने रावी - तट से सन्देश दिया--
''अंग्रेजों को भारत ने अब तक सहन किया.
अब मौन ,सिर्फ मानवता का अपराध नहीं.
ईश्वर के प्रति भी है भीषण अपराध यही.''
इस तरह, सभी थे चाह रहे- वे क्रान्ति करें.
पर, नहीं चाह थी वे शहीद की तरह मरें.
३.
हमने शहीद होने का था संकल्प लिया.
मन में गोरों के अन्यायों को याद किया.
जालियांवाला का रक्त-कुंड, लाजपत राय.
शोषित भारत के घर घर की जो साँय साँय .
हांथों में हानि-रहित बम,पर,दुश्मन दुर्मद.
बहरों से करने बहस , गए हम सब संसद .
४.
प्रज्ञा थी सबकी ''दास कैपिटल'' से समृद्ध.
था हृदय तथागत के वचनों से स्वयं-सिद्ध.
सुखदेव,राजगुरु मैंने स्वयं लिया निर्णय.
हम एक बार कर चुके शत्रुओं का संक्षय.
अब दुनिया से कहना है-''देख लिया तुमने.
अपराध किया अंग्रेजों ने या फिर हमने.''
क्रमशः....
आज अमर शहीद भगत सिंह की जन्म तिथि २७ सितम्बर है..वे होते तो क्या कहते , मैं वही कहने की कोशिश कर रहा इस कविता में..आगे भी इसका अंश प्रस्तुत होगा.
आज इतना ही..
----अरविंद पाण्डेय