शनिवार, 24 सितंबर 2011

तेरी ख्वाहिश ही अब मेरी शहंशाही की ग़ुरबत है

हज़रत मूसा , नख्ल-ए-तूर के सामने, वृक्ष  में  प्रकट  ईश्वरीय-प्रकाश  के   दर्शन
से  परमानंदित
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तेरे नज़दीक आ पाता हूँ, अक्सर, मैं इन्हीं के साथ.
मुझे रातों की रानाई से , इस खातिर, मुहब्बत है.
खलाओं की खलिश में ख्वाहिशों की खैरियत मत पूछ,
तेरी ख्वाहिश ही अब मेरी शहंशाही की ग़ुरबत है.

I love the lustre of lonely nights ,
Since, with it, I come closer to You. 
O GOD ,  My desire to get Your affinity
is powerty of My Emperorship, now. 


जिस वृक्ष के सामने हज़रत मूसा को  ईश्वरीय  प्रकाश का दर्शन हुआ था  उसे 
  नख्ल-ए-तूर   कहा जाता है ..

ग़ुरबत = दरिद्रता 
खलिश = चुभन .

Aravind Pandey 

2 टिप्‍पणियां:

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