मंगलवार, 12 जुलाई 2011

कल चन्द्र-निमंत्रण पर पहुंचा मैं चन्द्र-लोक.



कल  चन्द्र-निमंत्रण  पर पहुंचा मैं चन्द्र-लोक.
कण कण आनंदित वहां,किसी में नहीं शोक.
फिर रात हुई ,  देखा नभ में थी उदित धरा.
हलके नीले आलोक-सलिल से गगन भरा.

प्रातः जब पृथ्वी पर आनंदित मैं उतरा.
मानव के नीले कर्मो से थी भरी धरा.



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छे ढंग से निमंत्रण को परिभाषित करती सुंदर सी कविता .....

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  2. मानव के नीले कर्मो से थी भरी धरा.

    इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझा |
    नीले कर्मो से क्या अर्थ हुआ ..?
    बाकी तो कोई दिवा स्वप्न सा देखा लगता है ...
    बहुत सुंदर कविता ...

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  3. धन्यवाद .. कविता का छोटा अंश ही ब्लॉग में देता हूँ..पूरा अंश नहीं.वह आगामी पुस्तक के लिए संग्रहीत कर रहा ..

    नीले कर्म : अर्थात मनुष्य के कुत्सित कर्मो के कारम धरती का सौन्दर्य नष्ट हो रहा..

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  4. एक प्रश्न सा दे रही है आपकी रचना ...श्वेत वस्त्र धारण की हुई माँ शारदा की आराधना कर ...काश इस नील को हम श्वेत में बदल सकें .....!!
    गुरु पूर्णिमा पर प्रभु नमन ..
    http://anupamassukrity.blogspot.com/2011/07/my-performancesinging-ganesh-vandana-in.html

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