जिसको मेरे होठ पिएँ,
वह ही कहलाती है हाला.
जिसका हाथ थाम मैं पीता.
वह बनती साकी बाला.
खुद को ही, खुद से ही पीकर,
जिस दर मैं, मदहोश, फिरूं.
दुनिया वाले उस दर को ही
कहते हैं यह मधुशाला.
=============
ईश्वर को परम रमणीय रमणी की रूप में देखना और स्वयं को उनका प्रेमी मानते हुए मस्त रहना--यह , विश्व के समस्त दार्शनिक प्रस्थानो को फारसी शायर संतो की विलक्षण देन है..जिसे हृदयंगम करना, अमृत बन जाने के समान है..एवं, जिस पर ईश्वर की प्रेमपूर्ण कृपा होती है वही इसे हृदयंगम कर पायेगा..
----अरविंद पाण्डेय