परावाणी : The Eternal Poetry
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शुक्रवार, 15 मार्च 2013
जय जय जय जयति परावाणी
जो वाणी, परिनिष्ठित ऋत में ,
वह वाणी, सिद्ध परावाणी !
क्षण क्षण जो क्षरण-शील कण है,
वह अक्षर करे, परावाणी !
बिखरी वैखरी विकल जो है ,
वह वाणी अविरत है आकुल ,
वीणा सी जो झंकार करे ,
जय जय जय जयति परावाणी
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
सोमवार, 4 मार्च 2013
वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ...
थक चुके हों गर कदम,फिर भी तुझे चलना ही है.
हो बहुत गहरा अन्धेरा,शब को, पर, ढलना ही है.
वक़्त के पहिये के नीचे पिस रही हर शय यहाँ.
आज जो सरताज,कल मुफलिस उसे बनना ही है.
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
बुधवार, 27 फ़रवरी 2013
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.
हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.
अरविंद पाण्डेय
www.biharbhakti.com
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