रविवार, 3 मई 2009

तुम मेरे सपनों की सीमा ...



मैं तुम्हारी देह को , खुशबू बनूँ , फ़िर छू के महकूँ ,
मैं तुम्हारे ह्रदय को, संगीत बन , , छूकर के बहकूँ ,

अब यही सपना मेरी आंखों में
हर पल तैरता है ,


तुम मेरे सपनों की सीमा
पर तुम्हें क्या ये पता है


----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

आज करेंगीं मां जगदम्बा महिषासुर संहार



आज करेंगीं मां जगदम्बा महिषासुर-संहार
सुनकर ब्रह्मा ,विष्णु, रुद्र से अपनी जयजयकार


जीत लिया है स्वर्ग इन्द्र से, स्वयं इन्द्र है बना हुआ
सूर्य, अग्नि ,यम, वरुण ,रुद्र से उनके हक को छीन लिया
सारे जग में फैल रहा महिषासुर का आतंक घना
धरती क्या , आकाश और पाताल तलक परतंत्र बना

ब्रह्मा को ले साथ गए सब देव, विष्णु, शिव के आगे
पूछा कैसे महिष मरे , कैसे अपनी किस्मत जागे

आज करेंगीं मां जगदम्बा महिषासुर-संहार ...



सब देवों से प्रकट हुआ तब , उस पल भारी तेज वहाँ
कुछ पल में ही गरज उठीं जगदम्ब भवानी तभी वहाँ
दिया विष्णु ने चक्र , रुद्र ने शूल किया अर्पण उनको
शंख वरुण ने ,वज्र इन्द्र ने , ब्रह्मा ने माला उनको
क्षीर-सिन्धु ने पायल ,कुंडल , चूडामणि है दान किया
सिंह हिमालय ने सागर ने कमल फूल से मां किया

आज करेंगीं मां जगदम्बा महिषासुर संहार ....


अट्टहास जब किया अम्ब ने दैत्यों की सेना भागी
जीवन-दीप बुझे दैत्यों के , देवों की किस्मत जागी
चंडी नें चक्षुर , चामर असिलोमा का वध किया वहीं
सारे देव और ऋषि-गण भी करते थे स्तुति खड़े वहीं
देख गरजता महिषासुर को,बोलीं मां जगदम्बा यूँ :
बस कुछ पल तू और गरज ले, तब तक मैं मधु पीती हूँ

इतना कह कर , भगवती जगदम्बा , अपनें वाहन सिंह के स्कंध से उछल पड़ीं और उस महिष-रूपधारी महादैत्य के ऊपर चढ़ गयीं । इसके बाद , उन्होंने उसके कंठ पर अपने शूल से प्रहार किया । तब महिष का मस्तक कट गया और उस कटी हुई गर्दन से वह महादैत्य बाहर निकालने लगा । तब देवी ने विशाल कृपाण निकाली और उसका मस्तक काट गिराया । इसके बाद दैत्यों की विशाल सेना हाहाकार करती हुई भाग गयी । सभी देवता अति प्रसन्न हुए और श्री जगदम्बा की स्तुति करने लगे ।

आज करेंगीं मां जगदम्बा महिषासुर-संहार ....
सुनकर ब्रह्मा ,विष्णु, रुद्र से अपनी जयजयकार ..
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यह गीत मेरे द्वारा २००३ में लिखा और संगीतबद्ध किया गया था और वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा इसे रिकॉर्ड कराकर बाज़ार में प्रस्तुत किया गया था । यह गीत नंदिता के स्वर में है जिसका साथ मैंने भी दिया है । ESNIPS
पर यह गीत उपलब्ध है जिसे डाउन लोड किया जा सकता है । जिसका लिंक नीचे दिया गया है ।
पवित्र नवरात्र के अवसर पर यह भक्ति - गीत सभी मित्रों को सादर समर्पित है ॥

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----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी




तुम कर दो अब कल्याण,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


तुमने ही तो कृष्ण -रूप में ब्रज में रास रचाया
युगों युगों तक भक्त जनों के मन की प्यास बुझाया
शिव ही तो राधा बनकर ब्रज की धरती पर आए
इस प्यासी धरती पर मीठी रसधारा बरसाए

हम रस के प्यासे लोग, न चाहे भोग, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


सारे ज्ञानी-जन कहते हैं तुम करुणा की सागर
फ़िर कैसे संसार बना है दुःख की जलती गागर
तुम हो स्वयं शक्ति जगजननी फ़िर ये कैसी माया
इस धरती पर पाप कहाँ से किसने है फैलाया

हे माता हर लो पीर, बंधाओ धीर ,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी



बिना तुम्हारे शिव शंकर भी शव जैसे हो जाते
तुमसे मिलकर शिव इस जग को पल भर में उपजाते
तुमने स्वयं कालिका बनाकर मधु-कैटभ को मारा
दुःख में डूबे ब्रह्मा जी को तुमनें स्वयं उबारा

हम आए तेरे द्वार, छोड़ संसार, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी
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यह गीत मेरे द्वारा लिखा गया और इसकी धुन तैयार की गयी । वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा इसे अन्य भक्ति गीतों के साथ २००३ में एक एलबम के रूप में रिलीज़ किया गया ।
इस गीत में शिव के श्री राधा रानी के रूप में अवतार लेने तथा महाकालिका के श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेने के रहस्य का वर्णन है ।



----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 24 मार्च 2009

बहके हुए इस दिल को तुम चुनो या ना चुनो ..





कुछ तो कहेगा दिल ये ,गर तलब इसे हुई
ये बात और है कि तुम सुनो या ना सुनो
मस्ती फिजां की देख के बहकेगा दिल ज़ुरूर
बहके हुए इस दिल को तुम चुनो या ना चुनो
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कुछ मित्रों ने मेरे इस विचार पर प्रतिकूल मत दिया है कि कविता को छंद-मुक्त होना चाहिए । वे तर्क संगत एवं संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुसरण में ही यह कह रहे --ऐसा मेरा मानना है। यहाँ उल्लेखनीय है कि संस्कृत-काव्यशास्त्र में छंदोबद्ध लेखन मात्र को काव्य नही कहा गया अपितु कहा गया कि -रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द काव्य है (पंडित राज जगन्नाथ ) अथवा -काव्यं रसात्मकं वाक्यम् अर्थात् रस युक्त वाक्य ही काव्य है। परन्तु संस्कृत-काव्यशास्त्रीय सिद्धांत के आलोक में यदि शब्द और वाक्य रमणीयार्थ प्रतिपादक या रसात्मक हों तब तो ठीक किंतु इसका सहारा लेकर कुछ भी लिखे जाने और उसे काव्य कहे जाने के प्रवाह को रोकना होगा-ऐसा मेरा मानना है --यदि हिन्दी साहित्य को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाने का संकल्प हो।



----अरविंद पाण्डेय