बुधवार, 13 मई 2020

सभ्यता की विचित्र कालावधि : कोरोना काल

सभ्यता की विचित्र कालावधि है यह .. कोरोना के लॉक डाउन में हज़ार किलोमीटर दूर अपने गांव देस की ओर  पैदल चलता हुआ राष्ट्रनिर्माता, अन्नप्रदाता श्रमिक थककर अचेतन होकर गिर जाता और अपने प्राण त्यागता है...वह अपने गांव इसलिए जाना चाहता था कि अगर कोरोना से ही मरेंगे तो अपने गांव में ही मरेंगे ...उसकी ये छोटी सी इच्छा भी यह विराट शक्तिसम्पन्न समाज पूरी नहीं करता ...
....उसकी मृत्यु इस सभ्यता के लिए कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं बनती...इस सभ्यता की वाहक सोशल मीडिया में उसे कोई श्रद्धांजलि नहीं देता...ये विचित्र सभ्यता है जहां के अधिकांश सभ्य लोग, किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके चर्चित होने की शक्ति के आधार पर श्रद्धांजलि देते हैं..सभ्यता का विचित्र काल-खण्ड है यह !
.... तो मेरी ओर से उन सभी अन्नप्रदाता , राष्ट्रनिर्माता श्रमिकों को सादर विनम्र क्षमायुक्त श्रद्धांजलि जिन्होंने इस कोरोना-काल में अपनी जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम के कारण उसी की ओर चलते चलते मार्ग में ही अपने प्राण त्याग दिए !

रविवार, 10 मई 2020

लेकिन उस पेड़ के पास न जाना !

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस्लाम के अनेक विद्वानों के अनुसार कुरआन में वर्णित हज़रत आदम स्वर्ग से धरती पर भेजे जाने के बाद पर भारतभूमि पर ही अवतरित हुए थे.उनके स्वर्ग से अवतरण की कथा को इस तरह से समझा जा सकता है.खुदा सभी को बेरोक-टोक खाने पीने की इजाज़त तो देता है मगर उस पेड़ के पास जाने की इजाज़त नहीं देता जिसके पास जाने से इंसान क्या आदम को भी खुदा के गुस्से को झेलना पडा था.
ये पेड़ क्या है ? ये पेड़ उन हसरतों के गुच्छे का  नाम है  जिन्हें पूरी करने की इजाज़त नहीं है.ऐसी हसरतें जो इंसान को इंसानियत से नीचे गिरा देती हैं.जो एक इंसान को दूसरे इंसान का हक छीन लेने के लिए उकसाती हैं .. जो इंसान को अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी करने की वजह बनती हैं.
..जब खुदा ने ज़मीन में आपना नायब बनाने की बात फरिश्तों को बताई और उन्हें और शैतान को आदम को सजदा करने का हुक्म दिया....तब फरिश्तों ने तो आदम को सजदा किया मगर शैतान ने  नहीं किया.इस पर , अल्लाह ने आदम से कहा कि तुम अपनी बीबी के साथ जन्नत में रहो..बेरोक-टोक खाओ पिओ मगर उस पेड़ के पास न जाना.मगर, शैतान के असर की वजह से आदम फिसल गए और उन्हें ज़मीन में आना पडा ...जन्नत से ज़मीन पर आने की नौबत सिर्फ इसलिए आई क्योकि आदम ने अल्लाह की नेमतों को तो अपना लिया मगर उसकी पाबंदियों को नहीं माना.
इसलिए हर मुसलमान को इस बात पर गौर करना  चाहिए कि जब अल्लाह हमको बेरोक-टोक खाने पीने की इजाज़त देता है और हम खुदा की इनायत से खुशहाल ज़िंदगी जी रहे होते हैं तब, अल्लाह की पाबंदियों पर भी हमें गौर रखे रहना चाहिए.और जो पाबंदिया हमारे लिए लगाईं गईं हों उस ओर रुख नहीं करना चाहिए.क्योकि,अल्लाह,बेशक,रहम करनेवाला और माफ़ करने वाला है मगर वह जानबूझ कर कुफ्र और शिर्क करने वालों को सज़ा भी देता है.
ॐ 
- अरविन्द पाण्डेय 
पुलिस महानिदेशक सह नागरिक सुरक्षा आयुक्त, बिहार.

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

Poor Economics : अभिजीत बनर्जी

#Esther_Duflo और #अभिजीत_बनर्जी ने विश्व के 7 महाद्वीपों में से 5 महाद्वीपों  ( कितने देशों में - यह पता चलते ही लिखूंगा ) में उन उन देशों के राजनीतिज्ञों+ शासकों द्वारा गरीबी उन्मूलन हेतु किए गए उपायों का अध्ययन किया और उन उपायों का गरीबों पर क्या असर हुआ - यह भी लिखा ! 
इन दोनों लेखकों के महाप्रयास के बाद लिखी गई महापुस्तक है  #Poor_Economics  जिसकी समीक्षाएं लंदन, अमेरिका के बड़े बड़े अखबारों में  प्रकाशित कराईं गयीं.....
... पुस्तक को प्रसिद्धि दी गयी और अंततः नोबेल समिति द्वारा पुरस्कार दिलाया गया !
... हाँ, गरीबी ऐसा विषय है जो बीसवीं शताब्दी में लोकतांत्रिक देशों में चुनाव जीतने का मुख्य शस्त्र और शास्त्र बन चुकी है ...मैंने सुना है कि इसी गरीबी-शास्त्र के एक सूत्र का उपदेश श्री बनर्जी ने 2019 के प्रारम्भ में भारत के कुछ लोगों को दिया था जिसके अनुसार 25 करोड़ परिवारों को 72 हज़ार रुपए वार्षिक दान दिया जाना था जो भारत सरकार के कुल बजट का 13% होता ! 
.... इस दान की महाघोषणा करने वाले महानुभाव से जब लोगों ने पूछा कि ये पैसा आप लाएगें कहां से ? 
तो उन्होंने ने बड़ा आसान सा उत्तर दिया था कि अम्बानी और अडानी से पैसे लेकर यह दान-योजना पूरी की जाएगी ! श्री बनर्जी ने शायद उन्हें इस योजना के लिए पैसे जुटाने की तकनीक नहीं बताई होगी तो उन्हें जो समझ में आया, बोल गए !
... मगर, इतना सुनते ही भारत के गरीब, जो पैसे से गरीब हैं किंतु बुद्धि विवेक में Esther Duflo से भी अमीर हैं, ने इस पूरी योजना को नकार दिया ... क्योंकि उनके सामने 16 करोड़ शौचालय निर्माण, 
6 करोड़ गैस सिलिंडर का वितरण, 
15 करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री आवास और 
आयुष्मान योजना में 5लाख तक का इलाज खर्च दिए जाने और इन जैसी 80% सफल अनेक योजनाएं मुस्कुराती हुई दीख रही थीं जिनका उन्हें 5 सालों से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा था..
.....मैं मानता हूँ कि इन योजनाओं का भी 20% हिस्सा भ्रष्टाचार का शिकार हुआ होगा किन्तु जितना हिस्सा क्रियान्वित हुआ वह भारत के गरीबों के इस विश्वास को प्रबलता के साथ सशक्त कर गया था कि भविष्य में ये योजनाएं 100%सफल होगीं क्योंकि इन योजनाओं के साथ साथ ताकतवर भ्रष्टों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना भी चलाई जा रही थी ..
.... भारत और दूसरे महाद्वीपों की गरीबी और उन गरीबों के साथ निम्नमध्यवर्ग, मध्यवर्ग का व्यवहार भिन्न है ....यहां भूखा व्यक्ति भी यदि #श्रीहनुमान जी के मंदिर के पास बैठा रहे तो उसे कोई न कोई भोजन कराएगा ही और देने के भाव के साथ नहीं पुण्य लेने के भाव से भोजन कराएगा... #गुरुद्वारा में जाकर कोई भी भूखा व्यक्ति लंगर में सम्मानसाहित पूर्ण भोजन प्राप्त कर सकता है...#मस्जिद के पास कोई भी किसी भी निष्ठावान मुस्लिम द्वारा इज़्ज़त के साथ #जकात पा सकता है ! यह अफ्रीका में, अमरीका में, यूरोप में नहीं है जहां भोजन, शिक्षा , स्वास्थ्य की भूख से तड़पते हुए व्यक्ति को मारकर दूसरा भूखा व्यक्ति अपनी सत्ता, संपत्ति, समृद्धि की भूख मिटाता है...
... बनर्जी और Esther Duflo के चिंतन और क्रियान्वयन का अंतर्विरोध भी समझना जरूरी है... बनर्जी यह मानते हैं कि किसी गरीब को शतप्रतिशत दवा या कोई अन्य सहायता देना ठीक नहीं क्योंकि तब उस सहायता का मूल्य उसे नहीं समझ में नहीं आएगा और इस तरह वे अनुदान=सब्सिडी को बेहतर मानते हैं किन्तु भारत में उनकी प्रस्तावित न्याय योजना में सरकार के लिए बिना कुछ काम किए ही वार्षिक रूप से 72 हज़ार रुपए, 25करोड़ लोगों को देने की चर्चा कैसे की गई - यह आश्चर्यजनक है... ख़ैर, यह सब तो सिद्धांतों की बात है .... इन दोनों लेखकों को नोबेल मिला जिसमें पैसे के अलावा आभासी यश भी भरपूर मिलता ही है ... इन दोनों लेखकों को संयुक्त बधाई 👍💐💐
🇮🇳 अरविंद पांडेय 🇮🇳

शनिवार, 31 अगस्त 2019

मंदी, भ्रष्टाचार में

मंदी,  भ्रष्टाचार  में, भ्रष्ट  हुए  हैं  मंद.
कुछ रिमांड पर रहे,कुछ जेलों में बन्द.
🇮🇳🇮🇳