बुधवार, 16 फ़रवरी 2022
गान्धी की मूर्तिपूजा
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022
पंडित दीनदयाल उपाध्याय - एक राहुग्रस्त सूर्य
शनिवार, 5 सितंबर 2020
बुधवार, 19 अगस्त 2020
बुधवार, 13 मई 2020
सभ्यता की विचित्र कालावधि : कोरोना काल
रविवार, 10 मई 2020
लेकिन उस पेड़ के पास न जाना !
मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019
Poor Economics : अभिजीत बनर्जी
शनिवार, 31 अगस्त 2019
मंदी, भ्रष्टाचार में
मंदी, भ्रष्टाचार में, भ्रष्ट हुए हैं मंद.
कुछ रिमांड पर रहे,कुछ जेलों में बन्द.
🇮🇳🇮🇳
रविवार, 9 जून 2019
अलीगढ़ कांड और निर्भया फण्ड
अलीगढ़ कांड और निर्भया फण्ड
निर्भया कांड के बाद भारत सरकार ने निर्भया कोष बनाया जिसके लिए आवंटित राशि से महिलाओं के विरुद्ध अपराध के निवारण-निरोध के लिए काम किया जाना था... क्या आपको पता है कि आपके अपने अपने राज्यों में उस कोष का कहां किस तरह का प्रयोग किया गया ?? नहीं ! तो उसे जानने की कोशिश कीजिए !
....उस कोष के प्रयोग के लिए मैंने IG कमज़ोर वर्ग के रूप में एक प्रस्ताव भारत सरकार के गृह मंत्रालय को 2013 में ही भेजा और वीडियो कॉन्फ्रेंस में भी उस प्रस्ताव की उपयोगिता पर विस्तृत रूप से बताया था !
... वह प्रस्ताव था -
1. महिला अपराधों से प्रभावित प्रत्येक थाना में एक अलग "महिला एवं बच्चों के लिए कक्ष" संस्थापित हो जो महिला अपराधों के संबंध में त्वरित कार्रवाई केंद्र
और
परामर्श केंद्र
के रूप में कार्य करेगा !
2. उस कक्ष में केवल महिला अधिकारी और महिला सिपाही प्रतिनियुक्त रहेगीं जिन्हें बच्चों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के संबंध में नियमित रूप से विशेष प्रशिक्षण दिया जाता रहेगा !
3. थाना में इस कक्ष के लिए एक अलग वाहन रहेगा जिसका प्रयोग उस कक्ष में पदस्थापित प्रभारी महिला अधिकारी द्वारा महिला या बच्चों के विरुद्ध अपराध के संबंध में ही किया जाएगा !
.... उनकी योजना क्या थी ?
जिले में एक one stop centre स्थापित किया जाएगा जहां पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, मनोचिकित्सक आदि रहेगे जो किसी भी महिला के विरुद्ध अपराध के बाद कानूनी कार्रवाई आदि करेगें !
... मैंने विमर्श में कहा कि यदि पटना के मोकामा के किसी गांव में 12 बजे रात कोई इस तरह का अपराध होता है तो वह पीड़ित महिला पटना ज़िला मुख्यालय में स्थापित centre में कैसे आ पाएगी ?? उसे तुरंत सहायता चाहिए तो रात में उसे 30 किलोमीटर दूर आने के लिए विवश करना उचित है कि 2 किलोमीटर दूर उसके अपने थाना में लाकर महिला कक्ष के माध्यम से उसकी सहायता करनी उचित है ??
... मैंने कहा कि पीड़ित के रूप में सोचते हुए ही हमें कोई योजना क्रियान्वित करनी होगी...
... तो निर्भया फण्ड को गूगल में सर्च कीजिए पता कीजिए कि आपके अपने अपने राज्यों में उसका क्या उपयोग हुआ और कृपया टिप्पणी में लिखिए भी !
... 21 सदी में 18 वीं सदी की सोच रखने वाले नौकरों के कारण ही इस तरह की समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं हो पा रहा !
- अरविंद पांडेय
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शुक्रवार, 17 मई 2019
गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू
गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू :
महात्मा गांधी ने भारत विभाजन के प्रकरण पर कहा था कि बटवारा मेरी लाश पर होगा..
.... 14 अगस्त 1947 के बाद वे अपने इस संकल्प और अभीप्सा के साथ ही श्वास ले रहे थे...विभाजन की असह्य वेदना उन्हें पल पल मार रही थी...उनका सारा राजनीतिक दर्शन उन्हें स्वयं इस रक्तरंजित विभाजन के साथ ही झूठा लग रहा था .....
.......वे भारत_पाकिस्तान के विभाजन और इस क्रम में जिन्ना और उसके गिरोह द्वारा किये गए नरसंहारों से मर्माहत थे और अपनी जिजीविषा को वे स्वेच्छया तिलांजलि दे चुके थे.....
...… और इसलिए जब मदनलाल पहवा ने 20 जनवरी 1948 को दिल्ली में गांधी निवास बन चुके बिरला हाउस पर बम चलाया और गांधी जी की सुरक्षा बढ़ा दी गयी तो उन्होंने गृहमंत्री सरदार पटेल को बुलाकर कहा कि उन्हें सुरक्षा नहीं चाहिए और अगर सुरक्षा हटाई नहीं गयी तो वे अनशन करेगें..... सरदार पटेल गांधी जी को जानते थे कि वे सुरक्षा नही हटाने पर आमरण अनशन करेगें... उन्हें दो स्थिति बनती दिख रही थी उन्हें -
1. सुरक्षा नही हटी तो गांधी जी अनशन करेगें और उनका वह अनशन उनकी मृत्यु का कारण बन सकता था .
2. सुरक्षा हटाने पर पाकिस्तान से दिल्ली में आये शरणार्थियों से गांधी जी पर आसन्न प्राण संकट था क्योंकि मदनलाल पहवा 20 जनवरी को गांधी जी पर असफल हमला कर चुका था...
..... गृहमंत्री सरदार पटेल ने दूसरा विकल्प चुना और गांधी जी को अनशन से बचाने के लिए उनकी सुरक्षा को हटा देने का आदेश दिया...
..... मैं पुलिस अधिकारी के रूप में हमेशा से सोचता रहा हूँ कि गृहमंत्री के उस अनुचित आदेश को दिल्ली पुलिस प्रमुख ने क्यों मान लिया ? दिल्ली पुलिस प्रमुख कह सकते थे कि ---
"जबतक मैं पुलिस प्रमुख हूँ सुरक्षा नहीं हटाई जाएगी क्योंकि गांधी जी पर हमले की संभावना है..आप चाहें तो मुझे हटा दें.."
.... किन्तु दिल्ली पुलिस प्रमुख ने गृहमंत्री सरदार पटेल के अनुचित आदेश का पालन किया और गांधी जी की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी सभी लोगों द्वारा गांधी जी को असुरक्षित छोड़ दिया गया...
....30 जनवरी 1948 को सरदार पटेल गांधी जी की हत्या के 15 मिनट पहले तक उनके साथ बिरला हाउस में थे......वे बिरला हाउस से निकलते हैं और गांधी जी प्रार्थना सभा की ओर बढ़ते हैं.... नाथूराम ने स्वयं भी देखा कि भारत के गृहमंत्री यहां हैं.... और प्रार्थना स्थल पर गांधी जी के पहुँचने के पहले ही नाथूराम ने बड़ी आसानी से गांधी की हत्या कर दी...
.... गांधी जी वास्तव में अपने "ईश्वर अल्ला तेरो नाम" के राजनीतिक दर्शन के साथ जिन्ना और उसके नरसंहारी गिरोह द्वारा किए गए विश्वासघात के बाद जीवित रहना ही नहीं चाहते थे...उन्होंने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा और इस वचन पर अडिग रहते हुए उन्होंने स्वयं को इतना असुरक्षित हो जाने दिया कि उनकी जीवित देह को लाश में बदल देने में पागल हत्यारे को कोई अवरोध या असुविधा नहीं हुई....
..... स्वतंत्र भारत में पुलिस कर्तव्यों में यह पहला राजनीतिक हस्तक्षेप था जिस कारण महात्मा गांधी जी की हत्या संभव हो पाई....
.... नाथूराम ने कोर्ट के सामने दिए गए अपने बयान में यह कहा था कि गांधी जी की सुरक्षा हटाकर वास्तव में उन्हें हमले का शिकार बन जाने के लिए छोड़ दिया गया था... और अगर सुरक्षा बनी रहती तो उन्हें मारना संभव नहीं था...
..... महात्मा गांधी के प्रति और इस देश के प्रति भक्ति रखने वालों को उनकी हत्या के इन उपेक्षित पहलुओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए...
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