बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

गान्धी की मूर्तिपूजा


महापुरुष प्रतिमा सम्मान और सुरक्षा अधिनियम :
प्रतिमाओं की स्थापना के संबंध में सनातन धर्म में एक विशेष प्रक्रिया विहित की गई है. सभी जानते हैं कि जब हम किसी देवता या देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं तो उसमें शास्त्रीय विधि के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. उसके लिए गर्भगृह का निर्माण होता है.प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसे जीवंत माना जाता है. सजीव माना जाता है.
     देव प्रतिमा के सम्मान की दृष्टि से उन्हें स्नान कराने के लिए, उन्हें भोग लगाने के लिए, उनकी आरती के लिए एक पुजारी की विधिवत नियुक्ति की जाती रही है.
     भारत, यूनान, रोम और मिश्र तथा यूरोप के अन्य देशों की तरह नहीं है जहां किसी भी देवता या महापुरुष की प्रतिमा चौराहों पर या अन्य पार्को में स्थापित कर दी जाए.
     यूरोप और अन्य देशों के अनुकरण में भारत में भी महापुरुषों की प्रतिमाएं चौराहों पर और अन्य स्थलों पर स्थापित करने की एक परंपरा तो प्रारंभ हुई किंतु उन प्रतिमाओं की दैनिक देखभाल, स्वच्छता आदि कार्य के लिए अथवा उनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया.
     अब आवश्यकता है कि इस तरह का कानून बनाया जाए कि यदि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी सार्वजनिक स्थल पर किसी महापुरुष की प्रतिमा स्थापित करे तो उस प्रतिमा की देखभाल के लिए, उस प्रतिमा को निरंतर स्वच्छ बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति भी करे और प्रतिमा की सुरक्षा का भी उपाय करे तभी ऐसी प्रतिमाएं स्थापित किए जाने की अनुमति सरकार द्वारा दी जानी चाहिए.
     यदि कोई इन शर्तों को पूरा नहीं करता है कोई तो उसे प्रतिमा स्थापित करने का अधिकार नहीं होना चाहिए       
      बिहार के चंपारण जिले में जहां बैरिस्टर गांधी 1917 में आए थे और अपने अद्भुत, अप्रतिम, अभूतपूर्व सत्याग्रह के प्रयोग का प्रारंभ किया था  और उसके सफल प्रयोग के बाद बैरिस्टर गांधी संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी कहे जाने लगे थे, उसी चंपारण के मोतिहारी जिले में दो जगहों पर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ अपमानजनक व्यवहार कुछ अपराधियों द्वारा किया गया.
     यह एक प्रस्तर मूर्ति को अपमानित करने की घटना नहीं है बल्कि अत्यंत गंभीर आपराधिक घटना है. 
     पुलिस तत्परता पूर्वक इन मामलों में अनुसंधान भी कर रही है किंतु अब महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक हो गया है क्योंकि महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ आंबेडकर आदि की प्रतिमाएं सार्वजनिक स्थलों पर लगाई जाती हैं और इन प्रतिमाओं के अपमान के बाद लोक व्यवस्था तथा विधि व्यवस्था भंग होने की संभावना भी बलवती होती है. इस अप्रिय स्थिति से मुक्ति के लिए कानून बनाया जाना आवश्यक है.
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

पंडित दीनदयाल उपाध्याय - एक राहुग्रस्त सूर्य

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुस्तक "राष्ट्र चिंतन" और "राष्ट्र जीवन की दिशा" मैंने हाई स्कूल के विद्यार्थी के रूप में पढी थी...
    अनेक विस्मयकारी और मौलिक चिंतन से समृद्ध इन पुस्तकों में "मैं और हम" शीर्षक लेख मुझे आजतक हर सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या और उनके समाधान के अन्वेषण के समय एक सम्पूर्ण समाधान के रूप में दिखाई देता है..यह लेख शाश्वत और सार्वभौम चिंतन का एक उच्छल सागर है..इस लेख को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं... 
     1967 के संसदीय निर्वाचन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पवित्र नेतृत्व में भारतीय जनसंघ को 35 संसदीय क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई थी जो अभूतपूर्व और अप्रत्याशित मानी गयी थी किन्तु इससे यह सिद्ध हो गया था कि भारतीय जनमानस राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति से अनुप्राणित है और यदि उसकी इस प्रसुप्त राष्ट्रवादी चेतना को जागृत किया जाय तो भारतीय राष्ट्रीय चेतना का महजागरण सम्भव है..
    1967 में उनके प्रखर नेतृत्व को यह सफलता प्राप्त होती है और 1968 की फरवरी में ही उनकी अतिरहस्यमय रूप से हत्या कर दी जाती है..
    उनकी हत्या के बाद उनका शव तत्समय मुगलसराय सराय नामक रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों पर पाया गया था जब वे पटना के लिए रेलयात्रा पर थे..
    इस प्रकरण में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उन्हें उस दिन लखनऊ से दिल्ली जाना था किंतु पटना से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति ने फोन कर उन्हें पटना के किसी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया और उन्होंने लखनऊ से दिल्ली की यात्रा की जगह लखनऊ से पटना के लिए प्रस्थान किया और उनकी हत्या कर दी गयी..
     इस रहस्यमयी हत्या का अनुसंधान सीबीआई ने किया और आश्चर्यजनक रूप से सीबीआई, इस अतिमहत्वपूर्ण हत्या के षड्यंत्र पक्ष पर कोई साक्ष्य संकलित नहीं कर सकी..
    "एकात्म मानववाद" उनका एक अभूतपूर्व चिंतनपरक ग्रंथ है जिसमें उनकी एक और सार्वभौम शाश्वत चिंतन की मंदाकिनी है जिसमे स्नान करके कोई भी व्यक्ति अपने सामाजिक व्यक्तित्व को शुद्ध और पवित्र कर सकता है.. 
    बाद में उन्हीं के अनुयायियों द्वारा "गांधीवादी समाजवाद" शब्द द्वारा कुछ नया करने की वासना में इस एकात्म मानववाद के विचार को प्रतिस्थापित कर दिया गया.
      दीनदयाल जी की अनेक पुस्तकों में से एक अतिशय रोचक और प्रेरक पुस्तक  "सम्राट चंद्रगुप्त" भी है जो उन्होंने चुनार के किले में प्रवास करते हुए 24 घण्टे के अंदर ही लिखकर पूर्ण की थी..
     दीनदयाल जी यद्यपि भारतीय जनसंघ नामक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष थे किन्तु उनकी पुस्तकों और उनके दर्शन का अवगाहन प्रत्येक भारतीय को स्वयं को बौद्धिक रूप से समृद्ध करने हेतु किया जा सकता है... 
     आज ऐसे तपस्वी को उनके महाप्रयाण दिवस पर विनत श्रद्धांजलि 🌹
🇮🇳 अरविन्द पाण्डेय 🇮🇳

बुधवार, 13 मई 2020

सभ्यता की विचित्र कालावधि : कोरोना काल

सभ्यता की विचित्र कालावधि है यह .. कोरोना के लॉक डाउन में हज़ार किलोमीटर दूर अपने गांव देस की ओर  पैदल चलता हुआ राष्ट्रनिर्माता, अन्नप्रदाता श्रमिक थककर अचेतन होकर गिर जाता और अपने प्राण त्यागता है...वह अपने गांव इसलिए जाना चाहता था कि अगर कोरोना से ही मरेंगे तो अपने गांव में ही मरेंगे ...उसकी ये छोटी सी इच्छा भी यह विराट शक्तिसम्पन्न समाज पूरी नहीं करता ...
....उसकी मृत्यु इस सभ्यता के लिए कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं बनती...इस सभ्यता की वाहक सोशल मीडिया में उसे कोई श्रद्धांजलि नहीं देता...ये विचित्र सभ्यता है जहां के अधिकांश सभ्य लोग, किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके चर्चित होने की शक्ति के आधार पर श्रद्धांजलि देते हैं..सभ्यता का विचित्र काल-खण्ड है यह !
.... तो मेरी ओर से उन सभी अन्नप्रदाता , राष्ट्रनिर्माता श्रमिकों को सादर विनम्र क्षमायुक्त श्रद्धांजलि जिन्होंने इस कोरोना-काल में अपनी जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम के कारण उसी की ओर चलते चलते मार्ग में ही अपने प्राण त्याग दिए !

रविवार, 10 मई 2020

लेकिन उस पेड़ के पास न जाना !

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस्लाम के अनेक विद्वानों के अनुसार कुरआन में वर्णित हज़रत आदम स्वर्ग से धरती पर भेजे जाने के बाद पर भारतभूमि पर ही अवतरित हुए थे.उनके स्वर्ग से अवतरण की कथा को इस तरह से समझा जा सकता है.खुदा सभी को बेरोक-टोक खाने पीने की इजाज़त तो देता है मगर उस पेड़ के पास जाने की इजाज़त नहीं देता जिसके पास जाने से इंसान क्या आदम को भी खुदा के गुस्से को झेलना पडा था.
ये पेड़ क्या है ? ये पेड़ उन हसरतों के गुच्छे का  नाम है  जिन्हें पूरी करने की इजाज़त नहीं है.ऐसी हसरतें जो इंसान को इंसानियत से नीचे गिरा देती हैं.जो एक इंसान को दूसरे इंसान का हक छीन लेने के लिए उकसाती हैं .. जो इंसान को अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी करने की वजह बनती हैं.
..जब खुदा ने ज़मीन में आपना नायब बनाने की बात फरिश्तों को बताई और उन्हें और शैतान को आदम को सजदा करने का हुक्म दिया....तब फरिश्तों ने तो आदम को सजदा किया मगर शैतान ने  नहीं किया.इस पर , अल्लाह ने आदम से कहा कि तुम अपनी बीबी के साथ जन्नत में रहो..बेरोक-टोक खाओ पिओ मगर उस पेड़ के पास न जाना.मगर, शैतान के असर की वजह से आदम फिसल गए और उन्हें ज़मीन में आना पडा ...जन्नत से ज़मीन पर आने की नौबत सिर्फ इसलिए आई क्योकि आदम ने अल्लाह की नेमतों को तो अपना लिया मगर उसकी पाबंदियों को नहीं माना.
इसलिए हर मुसलमान को इस बात पर गौर करना  चाहिए कि जब अल्लाह हमको बेरोक-टोक खाने पीने की इजाज़त देता है और हम खुदा की इनायत से खुशहाल ज़िंदगी जी रहे होते हैं तब, अल्लाह की पाबंदियों पर भी हमें गौर रखे रहना चाहिए.और जो पाबंदिया हमारे लिए लगाईं गईं हों उस ओर रुख नहीं करना चाहिए.क्योकि,अल्लाह,बेशक,रहम करनेवाला और माफ़ करने वाला है मगर वह जानबूझ कर कुफ्र और शिर्क करने वालों को सज़ा भी देता है.
ॐ 
- अरविन्द पाण्डेय 
पुलिस महानिदेशक सह नागरिक सुरक्षा आयुक्त, बिहार.

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

Poor Economics : अभिजीत बनर्जी

#Esther_Duflo और #अभिजीत_बनर्जी ने विश्व के 7 महाद्वीपों में से 5 महाद्वीपों  ( कितने देशों में - यह पता चलते ही लिखूंगा ) में उन उन देशों के राजनीतिज्ञों+ शासकों द्वारा गरीबी उन्मूलन हेतु किए गए उपायों का अध्ययन किया और उन उपायों का गरीबों पर क्या असर हुआ - यह भी लिखा ! 
इन दोनों लेखकों के महाप्रयास के बाद लिखी गई महापुस्तक है  #Poor_Economics  जिसकी समीक्षाएं लंदन, अमेरिका के बड़े बड़े अखबारों में  प्रकाशित कराईं गयीं.....
... पुस्तक को प्रसिद्धि दी गयी और अंततः नोबेल समिति द्वारा पुरस्कार दिलाया गया !
... हाँ, गरीबी ऐसा विषय है जो बीसवीं शताब्दी में लोकतांत्रिक देशों में चुनाव जीतने का मुख्य शस्त्र और शास्त्र बन चुकी है ...मैंने सुना है कि इसी गरीबी-शास्त्र के एक सूत्र का उपदेश श्री बनर्जी ने 2019 के प्रारम्भ में भारत के कुछ लोगों को दिया था जिसके अनुसार 25 करोड़ परिवारों को 72 हज़ार रुपए वार्षिक दान दिया जाना था जो भारत सरकार के कुल बजट का 13% होता ! 
.... इस दान की महाघोषणा करने वाले महानुभाव से जब लोगों ने पूछा कि ये पैसा आप लाएगें कहां से ? 
तो उन्होंने ने बड़ा आसान सा उत्तर दिया था कि अम्बानी और अडानी से पैसे लेकर यह दान-योजना पूरी की जाएगी ! श्री बनर्जी ने शायद उन्हें इस योजना के लिए पैसे जुटाने की तकनीक नहीं बताई होगी तो उन्हें जो समझ में आया, बोल गए !
... मगर, इतना सुनते ही भारत के गरीब, जो पैसे से गरीब हैं किंतु बुद्धि विवेक में Esther Duflo से भी अमीर हैं, ने इस पूरी योजना को नकार दिया ... क्योंकि उनके सामने 16 करोड़ शौचालय निर्माण, 
6 करोड़ गैस सिलिंडर का वितरण, 
15 करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री आवास और 
आयुष्मान योजना में 5लाख तक का इलाज खर्च दिए जाने और इन जैसी 80% सफल अनेक योजनाएं मुस्कुराती हुई दीख रही थीं जिनका उन्हें 5 सालों से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा था..
.....मैं मानता हूँ कि इन योजनाओं का भी 20% हिस्सा भ्रष्टाचार का शिकार हुआ होगा किन्तु जितना हिस्सा क्रियान्वित हुआ वह भारत के गरीबों के इस विश्वास को प्रबलता के साथ सशक्त कर गया था कि भविष्य में ये योजनाएं 100%सफल होगीं क्योंकि इन योजनाओं के साथ साथ ताकतवर भ्रष्टों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना भी चलाई जा रही थी ..
.... भारत और दूसरे महाद्वीपों की गरीबी और उन गरीबों के साथ निम्नमध्यवर्ग, मध्यवर्ग का व्यवहार भिन्न है ....यहां भूखा व्यक्ति भी यदि #श्रीहनुमान जी के मंदिर के पास बैठा रहे तो उसे कोई न कोई भोजन कराएगा ही और देने के भाव के साथ नहीं पुण्य लेने के भाव से भोजन कराएगा... #गुरुद्वारा में जाकर कोई भी भूखा व्यक्ति लंगर में सम्मानसाहित पूर्ण भोजन प्राप्त कर सकता है...#मस्जिद के पास कोई भी किसी भी निष्ठावान मुस्लिम द्वारा इज़्ज़त के साथ #जकात पा सकता है ! यह अफ्रीका में, अमरीका में, यूरोप में नहीं है जहां भोजन, शिक्षा , स्वास्थ्य की भूख से तड़पते हुए व्यक्ति को मारकर दूसरा भूखा व्यक्ति अपनी सत्ता, संपत्ति, समृद्धि की भूख मिटाता है...
... बनर्जी और Esther Duflo के चिंतन और क्रियान्वयन का अंतर्विरोध भी समझना जरूरी है... बनर्जी यह मानते हैं कि किसी गरीब को शतप्रतिशत दवा या कोई अन्य सहायता देना ठीक नहीं क्योंकि तब उस सहायता का मूल्य उसे नहीं समझ में नहीं आएगा और इस तरह वे अनुदान=सब्सिडी को बेहतर मानते हैं किन्तु भारत में उनकी प्रस्तावित न्याय योजना में सरकार के लिए बिना कुछ काम किए ही वार्षिक रूप से 72 हज़ार रुपए, 25करोड़ लोगों को देने की चर्चा कैसे की गई - यह आश्चर्यजनक है... ख़ैर, यह सब तो सिद्धांतों की बात है .... इन दोनों लेखकों को नोबेल मिला जिसमें पैसे के अलावा आभासी यश भी भरपूर मिलता ही है ... इन दोनों लेखकों को संयुक्त बधाई 👍💐💐
🇮🇳 अरविंद पांडेय 🇮🇳

शनिवार, 31 अगस्त 2019

मंदी, भ्रष्टाचार में

मंदी,  भ्रष्टाचार  में, भ्रष्ट  हुए  हैं  मंद.
कुछ रिमांड पर रहे,कुछ जेलों में बन्द.
🇮🇳🇮🇳

रविवार, 9 जून 2019

अलीगढ़ कांड और निर्भया फण्ड

अलीगढ़ कांड और  निर्भया फण्ड
निर्भया कांड के बाद भारत सरकार ने निर्भया कोष बनाया जिसके लिए आवंटित राशि से महिलाओं के विरुद्ध अपराध के निवारण-निरोध के लिए काम किया जाना था... क्या आपको पता है कि आपके अपने अपने राज्यों में उस कोष का कहां किस तरह का प्रयोग किया गया ?? नहीं ! तो उसे जानने की कोशिश कीजिए !
....उस कोष के प्रयोग के लिए  मैंने IG  कमज़ोर वर्ग के रूप में एक प्रस्ताव भारत सरकार के गृह मंत्रालय को 2013 में ही भेजा और वीडियो कॉन्फ्रेंस में भी उस प्रस्ताव की उपयोगिता पर विस्तृत रूप से बताया था !
... वह प्रस्ताव था -
1. महिला अपराधों से प्रभावित प्रत्येक थाना में एक अलग "महिला एवं बच्चों के लिए कक्ष" संस्थापित हो जो महिला अपराधों के संबंध में त्वरित कार्रवाई केंद्र
और
परामर्श केंद्र
के रूप में कार्य करेगा !
2. उस कक्ष में केवल महिला अधिकारी और महिला सिपाही प्रतिनियुक्त रहेगीं जिन्हें बच्चों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के संबंध में नियमित रूप से विशेष प्रशिक्षण दिया जाता रहेगा !
3. थाना में इस कक्ष के लिए एक अलग वाहन रहेगा जिसका प्रयोग उस कक्ष में पदस्थापित प्रभारी महिला अधिकारी द्वारा महिला या बच्चों के विरुद्ध अपराध के  संबंध में ही किया जाएगा !
.... उनकी योजना क्या थी ?
जिले में एक one stop centre स्थापित किया जाएगा जहां पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, मनोचिकित्सक आदि रहेगे जो किसी भी महिला के विरुद्ध अपराध के बाद कानूनी कार्रवाई आदि करेगें !
... मैंने विमर्श में कहा कि यदि पटना के  मोकामा के किसी गांव में 12 बजे रात कोई इस तरह का अपराध होता है तो वह पीड़ित महिला पटना ज़िला मुख्यालय में स्थापित centre में कैसे आ पाएगी ??  उसे तुरंत सहायता चाहिए तो रात में उसे 30 किलोमीटर दूर आने के लिए विवश करना उचित है कि 2 किलोमीटर दूर उसके अपने थाना में लाकर महिला कक्ष के माध्यम से उसकी सहायता करनी उचित है ??
... मैंने कहा कि पीड़ित के रूप में सोचते हुए ही हमें कोई योजना क्रियान्वित करनी होगी...
... तो निर्भया फण्ड को गूगल में सर्च कीजिए पता कीजिए कि आपके अपने अपने राज्यों में उसका क्या उपयोग हुआ और कृपया टिप्पणी में लिखिए भी !
... 21 सदी में 18 वीं सदी की सोच रखने वाले नौकरों के कारण ही इस तरह की समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं हो पा रहा !
- अरविंद पांडेय
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शुक्रवार, 17 मई 2019

गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू

गांधी जी की हत्या के उपेक्षित पहलू :
महात्मा गांधी ने भारत विभाजन के प्रकरण पर कहा था कि बटवारा मेरी लाश पर होगा..
.... 14 अगस्त 1947 के बाद वे अपने इस संकल्प और अभीप्सा के साथ ही श्वास ले रहे थे...विभाजन की असह्य वेदना उन्हें पल पल मार रही थी...उनका सारा राजनीतिक दर्शन उन्हें स्वयं इस रक्तरंजित विभाजन के साथ ही झूठा लग रहा था .....
.......वे भारत_पाकिस्तान के विभाजन और इस क्रम में जिन्ना और उसके गिरोह द्वारा किये गए नरसंहारों से मर्माहत थे और अपनी जिजीविषा को वे स्वेच्छया तिलांजलि दे चुके थे.....
...… और इसलिए जब मदनलाल पहवा ने 20 जनवरी 1948 को दिल्ली में गांधी निवास बन चुके बिरला हाउस पर बम चलाया और गांधी जी की सुरक्षा बढ़ा दी गयी तो उन्होंने गृहमंत्री सरदार पटेल को बुलाकर कहा कि उन्हें सुरक्षा नहीं चाहिए और अगर सुरक्षा हटाई नहीं गयी तो वे अनशन करेगें..... सरदार पटेल गांधी जी को जानते थे कि वे सुरक्षा नही हटाने पर आमरण अनशन करेगें... उन्हें दो स्थिति बनती दिख रही थी उन्हें -
1. सुरक्षा नही हटी तो गांधी जी अनशन करेगें और उनका वह अनशन उनकी मृत्यु का कारण बन सकता था .
2. सुरक्षा हटाने पर पाकिस्तान से दिल्ली में आये शरणार्थियों से गांधी जी पर आसन्न प्राण संकट था क्योंकि मदनलाल पहवा 20 जनवरी को गांधी जी पर असफल हमला कर चुका था...
..... गृहमंत्री सरदार पटेल ने दूसरा विकल्प चुना और गांधी जी को अनशन से बचाने के लिए उनकी  सुरक्षा को  हटा देने का आदेश दिया...
..... मैं पुलिस अधिकारी के रूप में हमेशा से सोचता रहा  हूँ कि गृहमंत्री के उस अनुचित आदेश को दिल्ली पुलिस प्रमुख ने क्यों मान लिया ? दिल्ली पुलिस प्रमुख कह सकते थे कि ---
"जबतक मैं पुलिस प्रमुख हूँ सुरक्षा नहीं हटाई जाएगी क्योंकि गांधी जी पर हमले की संभावना है..आप चाहें तो मुझे हटा दें.."
.... किन्तु दिल्ली पुलिस प्रमुख ने गृहमंत्री सरदार पटेल के अनुचित आदेश का पालन किया और गांधी जी की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी सभी लोगों द्वारा गांधी जी को असुरक्षित छोड़ दिया गया...
....30 जनवरी 1948 को सरदार पटेल गांधी जी  की हत्या के 15 मिनट पहले तक उनके साथ बिरला हाउस में थे......वे बिरला हाउस से निकलते हैं और गांधी जी प्रार्थना सभा की ओर बढ़ते हैं.... नाथूराम ने स्वयं भी देखा कि भारत के गृहमंत्री यहां हैं.... और प्रार्थना स्थल पर गांधी जी के पहुँचने के पहले ही  नाथूराम ने बड़ी आसानी से गांधी की हत्या कर दी...
.... गांधी जी वास्तव में अपने "ईश्वर अल्ला तेरो  नाम" के राजनीतिक दर्शन के साथ जिन्ना और उसके नरसंहारी गिरोह द्वारा किए गए विश्वासघात के बाद जीवित रहना ही नहीं चाहते थे...उन्होंने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा और इस वचन पर अडिग रहते हुए उन्होंने स्वयं को इतना असुरक्षित हो जाने दिया कि उनकी जीवित देह को लाश में बदल देने में पागल हत्यारे को कोई अवरोध या असुविधा नहीं हुई....
..... स्वतंत्र भारत में पुलिस कर्तव्यों में यह पहला राजनीतिक हस्तक्षेप था जिस कारण महात्मा गांधी जी की हत्या संभव हो पाई....
.... नाथूराम ने कोर्ट के सामने दिए गए अपने बयान में यह कहा था कि गांधी जी की सुरक्षा हटाकर वास्तव में उन्हें हमले का शिकार बन जाने के लिए छोड़ दिया गया था... और अगर सुरक्षा बनी रहती तो उन्हें मारना संभव नहीं था...
..... महात्मा गांधी के प्रति और इस देश के प्रति भक्ति रखने वालों को उनकी हत्या के इन उपेक्षित पहलुओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए...

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