रविवार, 15 फ़रवरी 2009

इश्क था, बस इश्क था, बस इश्क था उस पल वहाँ..


आज मैनें ख्वाब में देखा तुझे
फूल सी पलकें तेरी भीगी हुई

मैं तेरी जानिब ये घुटने टेक कर
हाथ को कदमों पे तेरे रख दिया

फ़िर करम तूने किया कुछ इस तरह
हाथ में अपने , मेरे हाथों को ले

खींच कर हलके से, मुझको प्यार में
बाजुओं में इस तरह कुछ, भर लिया

मैं तेरे रुखसार के नज़दीक था
देखता पलकें तेरी भीगी हुई

तेज़ साँसों से तेरी खुशबू निकल
मेरे तनमन में समाई जा रही

सुर्ख गालों पर तेरे ढलते हुए
शबनमी उन आंसुओं को पी गया

क्या कहूं उस एक पल के दौर में
इश्क की लाखों सदी मैं जी गया

फ़िर तेरा आगोश, बस, कसता गया
और कुछ बाकी न था उस पल वहाँ

मैं नही था, तू न थी , ना ये ज़मीन , ना आसमां
इश्क था, बस इश्क था, बस इश्क था उस पल वहाँ

----अरविंद पाण्डेय