२६ जनवरी २००९
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१
संयम का अविजित खड्ग लिए
विधि , संविधान का अमृत पिए
प्रज्वलित अग्नि सी प्रज्ञा हो
मणि सी संदीप्त प्रतिज्ञा हो
ऐसा भारत निर्माण करें
आओ जग में आलोक भरें
२
वसुधा का वैभव क्षीण न हो
मानवता शक्ति-विहीन न हो
कुसुमों में वर्ण सुगंध बढे
वृक्षों पर विकसित बेल चढ़े
शीतल सुरभित पवमान बहे
अब प्राणि -मात्र में प्रेम रहे
३
गौरव से मस्तक उन्नत हो
श्रद्धा से , किंतु , सदा, नत हो
करुणा से ह्रदय प्रकाशित हो
शुभ,शील,सत्य से प्रमुदित हो
जन-गण में नव-उत्साह भरे
गण-तंत्र सदा ही विजय करे
४
हम भारत की संतान धन्य
मानवता की महिमा अनन्य
जब भी संसार हुआ व्याकुल
जब बढ़ा धरा पर कंटक-कुल
हमने रक्षित की विश्व-शाँति
प्रज्ञा बल से की दिव्य-क्रांति
----अरविंद पाण्डेय
१
संयम का अविजित खड्ग लिए
विधि , संविधान का अमृत पिए
प्रज्वलित अग्नि सी प्रज्ञा हो
मणि सी संदीप्त प्रतिज्ञा हो
ऐसा भारत निर्माण करें
आओ जग में आलोक भरें
२
वसुधा का वैभव क्षीण न हो
मानवता शक्ति-विहीन न हो
कुसुमों में वर्ण सुगंध बढे
वृक्षों पर विकसित बेल चढ़े
शीतल सुरभित पवमान बहे
अब प्राणि -मात्र में प्रेम रहे
३
गौरव से मस्तक उन्नत हो
श्रद्धा से , किंतु , सदा, नत हो
करुणा से ह्रदय प्रकाशित हो
शुभ,शील,सत्य से प्रमुदित हो
जन-गण में नव-उत्साह भरे
गण-तंत्र सदा ही विजय करे
४
हम भारत की संतान धन्य
मानवता की महिमा अनन्य
जब भी संसार हुआ व्याकुल
जब बढ़ा धरा पर कंटक-कुल
हमने रक्षित की विश्व-शाँति
प्रज्ञा बल से की दिव्य-क्रांति
----अरविंद पाण्डेय