हमने समझा दोस्त उन्हें
वे दुश्मन हमें समझते हैं
नही फिक्र है उन्हें अमन की
बारम्बार उलझते हैं ।
जब जब हमने हाथ मिलाया
उनसे सरल दोस्त बनकर
तब तब उनने घात किया है
सदा पीठ पीछे हम पर ।
नही याद है उन्हें इखत्तर
का वह अमर युद्ध - संदेश
जो टकराएगा हमसे
हो जायेगा वह खंडित देश ।
क्षमा किया था हमने उनको
धूल चटाने के ही बाद
यही सोच कर कि अब उन्हें
आयेगी बुद्धि , न हों बरबाद ।
पर उनकी तो बुद्धि भ्रष्ट है
चढ़ आए फ़िर सीमा पर
फ़िर ललकार रहे हैं हमको
विगत पराजय विस्मृत कर ।
विश्व-शाँति अब रहे सुरक्षित -
यही सोच कर हम सबने
संयम से संघर्ष किया है
बलि दी हैं कितनी जानें।
न लो परीक्षा अब वर्ना,
इच्छा सुन लो यह जन जन की
मिट जाए वह झूठी रेखा
वर्षों पूर्व विभाजन की ।
सौ करोड़ कंठों ने अब यह
घोर नाद हुंकारा है
कारगिल से गिलगित तक
सारा कश्मीर हमारा है ।