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तुझे सुना तो बहुत दूर से, मगर ये लगा.
बहुत करीब से आवाज़ कोई आई है.
किसी बिहिश्त की बहकी हुई फिजा जैसे,
या कि खिलते हुए चमन की तू रानाई है.
मैं जानता हूँ तुम नहीं हो , मगर फिर भी मैं.
तुम्हें तलाश किया करता हूँ यहाँ से वहां .
वो तुम नहीं हो जो तुम दीख रहे,फिर भी मैं,
तुम्हें , तुम्हीं सा देखने को ढूढता हूँ यहाँ .
दश्क़ सेहरा में कभी,खो सी गयी थी जो सेहर .
मुद्दतों के बाद फ़ैलाने लगी है रोशनी.
आओ, हम इसको भिगो दें आब-ए-उल्फत से अभी,
ये सेहर थम जाय, इसकी शब न आए अब कभी..
-- अरविंद पाण्डेय
उर्दू में हाथ तंग है पर पसन्द आयी।
जवाब देंहटाएंदेश भक्ति , मातृभक्ति के बाद अलग अंदाज़ की कविता ...
जवाब देंहटाएंहर प्रकार से कलम चलती है आपकी ...
शुभकामनायें !
इस बार नए अंदाज़ में ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव लिए हुए सुंदर अभिव्यक्ति ...!!