मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

Poor Economics : अभिजीत बनर्जी

#Esther_Duflo और #अभिजीत_बनर्जी ने विश्व के 7 महाद्वीपों में से 5 महाद्वीपों  ( कितने देशों में - यह पता चलते ही लिखूंगा ) में उन उन देशों के राजनीतिज्ञों+ शासकों द्वारा गरीबी उन्मूलन हेतु किए गए उपायों का अध्ययन किया और उन उपायों का गरीबों पर क्या असर हुआ - यह भी लिखा ! 
इन दोनों लेखकों के महाप्रयास के बाद लिखी गई महापुस्तक है  #Poor_Economics  जिसकी समीक्षाएं लंदन, अमेरिका के बड़े बड़े अखबारों में  प्रकाशित कराईं गयीं.....
... पुस्तक को प्रसिद्धि दी गयी और अंततः नोबेल समिति द्वारा पुरस्कार दिलाया गया !
... हाँ, गरीबी ऐसा विषय है जो बीसवीं शताब्दी में लोकतांत्रिक देशों में चुनाव जीतने का मुख्य शस्त्र और शास्त्र बन चुकी है ...मैंने सुना है कि इसी गरीबी-शास्त्र के एक सूत्र का उपदेश श्री बनर्जी ने 2019 के प्रारम्भ में भारत के कुछ लोगों को दिया था जिसके अनुसार 25 करोड़ परिवारों को 72 हज़ार रुपए वार्षिक दान दिया जाना था जो भारत सरकार के कुल बजट का 13% होता ! 
.... इस दान की महाघोषणा करने वाले महानुभाव से जब लोगों ने पूछा कि ये पैसा आप लाएगें कहां से ? 
तो उन्होंने ने बड़ा आसान सा उत्तर दिया था कि अम्बानी और अडानी से पैसे लेकर यह दान-योजना पूरी की जाएगी ! श्री बनर्जी ने शायद उन्हें इस योजना के लिए पैसे जुटाने की तकनीक नहीं बताई होगी तो उन्हें जो समझ में आया, बोल गए !
... मगर, इतना सुनते ही भारत के गरीब, जो पैसे से गरीब हैं किंतु बुद्धि विवेक में Esther Duflo से भी अमीर हैं, ने इस पूरी योजना को नकार दिया ... क्योंकि उनके सामने 16 करोड़ शौचालय निर्माण, 
6 करोड़ गैस सिलिंडर का वितरण, 
15 करोड़ से अधिक प्रधानमंत्री आवास और 
आयुष्मान योजना में 5लाख तक का इलाज खर्च दिए जाने और इन जैसी 80% सफल अनेक योजनाएं मुस्कुराती हुई दीख रही थीं जिनका उन्हें 5 सालों से प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा था..
.....मैं मानता हूँ कि इन योजनाओं का भी 20% हिस्सा भ्रष्टाचार का शिकार हुआ होगा किन्तु जितना हिस्सा क्रियान्वित हुआ वह भारत के गरीबों के इस विश्वास को प्रबलता के साथ सशक्त कर गया था कि भविष्य में ये योजनाएं 100%सफल होगीं क्योंकि इन योजनाओं के साथ साथ ताकतवर भ्रष्टों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना भी चलाई जा रही थी ..
.... भारत और दूसरे महाद्वीपों की गरीबी और उन गरीबों के साथ निम्नमध्यवर्ग, मध्यवर्ग का व्यवहार भिन्न है ....यहां भूखा व्यक्ति भी यदि #श्रीहनुमान जी के मंदिर के पास बैठा रहे तो उसे कोई न कोई भोजन कराएगा ही और देने के भाव के साथ नहीं पुण्य लेने के भाव से भोजन कराएगा... #गुरुद्वारा में जाकर कोई भी भूखा व्यक्ति लंगर में सम्मानसाहित पूर्ण भोजन प्राप्त कर सकता है...#मस्जिद के पास कोई भी किसी भी निष्ठावान मुस्लिम द्वारा इज़्ज़त के साथ #जकात पा सकता है ! यह अफ्रीका में, अमरीका में, यूरोप में नहीं है जहां भोजन, शिक्षा , स्वास्थ्य की भूख से तड़पते हुए व्यक्ति को मारकर दूसरा भूखा व्यक्ति अपनी सत्ता, संपत्ति, समृद्धि की भूख मिटाता है...
... बनर्जी और Esther Duflo के चिंतन और क्रियान्वयन का अंतर्विरोध भी समझना जरूरी है... बनर्जी यह मानते हैं कि किसी गरीब को शतप्रतिशत दवा या कोई अन्य सहायता देना ठीक नहीं क्योंकि तब उस सहायता का मूल्य उसे नहीं समझ में नहीं आएगा और इस तरह वे अनुदान=सब्सिडी को बेहतर मानते हैं किन्तु भारत में उनकी प्रस्तावित न्याय योजना में सरकार के लिए बिना कुछ काम किए ही वार्षिक रूप से 72 हज़ार रुपए, 25करोड़ लोगों को देने की चर्चा कैसे की गई - यह आश्चर्यजनक है... ख़ैर, यह सब तो सिद्धांतों की बात है .... इन दोनों लेखकों को नोबेल मिला जिसमें पैसे के अलावा आभासी यश भी भरपूर मिलता ही है ... इन दोनों लेखकों को संयुक्त बधाई 👍💐💐
🇮🇳 अरविंद पांडेय 🇮🇳

1 टिप्पणी:

  1. इस विषय पर कुछ और चिन्तन और समीक्षा की ज़रुरत है, ताकि स्पष्टता से हम समझ सकें. अच्छा आलेख. शुभकामनाएँ.

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