रविवार, 26 अप्रैल 2015

पृथिवी शान्तिः


भूकंप सदृश संकट में निर्भय-चित्त और अक्षत-विवेक बने रहने से आप उस संकट से बचने में और दूसरों को बचाने में सफल होंगें .......
.............. इसलिए चित्त और अभिव्यक्ति के स्तर पर निर्भय बनें रहें और स्वयं को तथा अन्य संकटग्रस्त लोगों को बचाने हेतु भौतिक, संकल्पात्मक,बौद्धिक, मानसिक, आध्यात्मिक प्रयास करते रहें ............
............. अपने निजी स्वार्थ में पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा करने वाले लोगों पर इस संकट का सीधा प्रभाव नहीं पड़ रहा है वे बचकर भी निश्चिन्त न रहें............
............... उन्हें भी उनकी नियति ले जायेगी उस गर्त में जहां गिर कर वे अपने द्वारा किये गए प्राकृतिक अपराधों के प्रति पश्चात्ताप करेंगें .........



मनु हैं तो मानवता है

बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर यदि आज अपने द्वारा लिपिबद्ध भारत के संविधान का अवलोकन करें तो वे आश्चर्यान्वित रह जायेगे क्योकिं उनके द्वारा लिपिबद्ध संविधान में इतने परिवर्तन हो चुके हैं जितने परिवर्तनों की उन्होंने कभी कल्पना भी न की थी ! उन्होंने स्पष्ट कहा था कि यदि इस संविधान से देश की सभी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो यह संविधान के कारण नहीं बल्कि संविधान को लागू कराने के लिए उत्तरदायी लोगों के कारण होगा
................................उसी तरह ,महाराज मनु ने जिस संहिता का निर्माण किया था उसे मानव धर्मसूत्र के रूप में वर्तमान मनुस्मृति के लिपिबद्ध होने के हज़ारों साल पहले से जाना जाता रहा है..........किन्तु, मानव धर्मसूत्र का लिपिबद्ध संस्करण अब अप्राप्त है............
.............. वर्तमान मनुस्मृति में लिपिबद्ध अनेक प्रावधान और नियम, परवर्ती राजनीतिक-सत्ताओं द्वारा अपनी विशिष्ट शासन-नीतियों को संपोषित करने के लिए महाराज मनु के नाम पर अंतःस्थापित कर दिए गए...........
.............. जैसे डॉ. अम्बेडकर, भारत के संविधान के लिपिकार के रूप में सर्वज्ञात होने के बावजूद उन सारे संशोधनों के लिपिकार नहीं हैं जो उनके समय में संविधान में अंतर्विष्ट नहीं थे किन्तु आज हैं, इसीतरह महाराज मनु वर्तमान मनुस्मृति के उन नियमों और प्रावधानों के लिपिकार नहीं हैं जो मानव-धर्म अर्थात मानवता के विरुद्ध हैं...
..................... अपने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए मानव-अधिकार आयोग की शरण लेने वाले भी आज महाराज मनु के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर अपने द्विधाग्रस्त चित्त का प्रमाण देते हैं........... जिन मानव अधिकारों की बात लोग करते हैं वे मानव अधिकार भी महाराज मनु ने ही दिए हैं.......मनु समाप्त होंगें तो मानवता कहाँ बचेगी ..............
............... मनु हैं तो मानवता है....