मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --


सत्ता के पौरुष का पर्याय पुलिस है.
पर,कौन घोलता इस अमृत में विष है.
यह शक्ति-पुंज कैसे असहाय हुआ है.
यह एवरेस्ट क्यों झुक सा अभी गया है.

षड्यंत्र घृणित दिखता जो,वह किसका है.
है सूत्रधार वह कौन, सूत्र किसका है.
विधि के शासन की गरिमा कौन लुटाता.
मर्यादा की रेखा है कौन मिटाता.

दावा करता है कौन न्याय का,नय का.
सारे समाज के शुभ का और अभय का.
वह कौन कि जिसने स्वर्णिम स्वप्न दिखाया.
पर,कर्म किया प्रतिकूल,मात्र भरमाया.

जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है.
तब तब ललनाओं का सुहाग लुटता है.
जब कर्म-कुंड की अग्नि शांत होती है.
तब दुष्टों से धरती अशांत होती है.

जब उच्छृंखल,अपवाचक लोग अभय हों.
जब सत्यनिष्ठ जन को सत्ता का भय हो.
जब श्रेष्ठ,श्रेष्ठता से मदांध सोता है.
वर्चस्व तब अनाचारी का होता है.

विधि के शासन की गरिमा तब लुटती है.
मर्यादा की सब रेखाएं मिटती हैं.
पौरुष का पर्वत भी झुक सा जाता है.
सारा समाज आतंक तले आता है.

इसलिए,अगर सम्मान सहित है जीना 
आतंक का न अब और गरल है पीना .
तब नपुंसकों का बहिष्कार करना है.
क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है.

छः दिसंबर कल था और वाराणसी के पवित्रतम प्रसिद्द घाटों - दशाश्वमेध घाट शीतला घाट पर श्री गंगा जी की आरती के समय बम विस्फोट किया गया जिसमें श्री गंगा-भक्त हताहत हुए.. इस देश के एक अरब से अधिक लोग उन कर्णधारों से सलीके से, सही तरीके से यह नहीं पूछ रहे कि तुमने इस बम विस्फोट से पहले जो विस्फोट हुए थे उनके अपराधियों को सज़ा दिलाने कि ज़िम्मेदारी क्यों नहीं निभाई.. कंदहार जाकर उन राक्षसों को क्यों मुक्त किया जो भारत पर हमले के अपराधी थे..?? और , जब तक उनसे सही तरीके से यह नहीं पूछा जाएगा तब तक आतंक का यह सिलसिला शायद निश्चिन्त होकर चलाया जाता रहेगा.. !! 

----अरविंद पाण्डेय

5 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े ही प्रभावशाली तरीके से विचारों प्रस्तुत किया है आपने........साधुवाद.

    आपके अपने ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत रहेगा,

    http://arvindjangid.blogspot.com/

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  2. Kitna Sach hai Lakin Yeh sawarthi neta ko apni padi hai Janta ki Nahi agar Janta Khamosh rahengi aisa hota rehanega

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  3. परम आदरणीय सर, बहुत ही अच्छी और शानदार अभिव्यक्ति आपने इस पोस्ट के माध्यम से की हैं ..... और यह तो सच ही हैं कि मरना तो एक बार ही हैं .......जय हिंद !!!!!

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  4. बहुत सुंदर ढंग से आप ने दर्द को कविता का रुप दिया, मेने कल ही इस खबर को नेट पर पढा था. ध्न्यवाद

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  5. नेताओं की भ्रष्ट राजनीती और उनके निचले स्तर की कमज़ोर नीतियां जिम्मेदार हैं देश में हो रहे आतंकवाद , अलगाववाद और अपराधीकरण की.
    जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है..इन सिर्फ ७ -८ शब्दों में आपने मूल कारण बता दिया है....
    सत्ता के पौरुष का पर्याय पुलिस है.पर,कौन घोलता इस अमृत में विष है..मात्र या एक पंक्ति भ्रस्टाचार के जनक का सटीक उल्लेख करा देती है....

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