मंगलवार, 26 जनवरी 2010

मैं भारत हूँ, मैं भा - रत हूँ , मैं प्रतिभा - रत ...



 १.
 मैं भारत हूँ, वसुधा   की प्रज्ञा का प्रकाश .
मैं ज्ञान-यज्ञ  की भूमि,प्रणव का पुरोडाश .

परमर्षि भरत ,राजर्षि  भरत  मेरे सुपुत्र .
जिनके चरित्र का स्मरण,चित्त करता पवित्र .

मैं  भरत  नाम के  दो  पुत्रों से, हूँ भारत .
मैं भारत हूँ, मैं  भा- रत  हूँ , मैं प्रतिभा - रत


2
मैं युद्धभूमि के मध्य,  ज्ञान का दाता हूँ .
मैं महानाश के क्षण का सृजन-विधाता हूँ.

मैं अग्निकुंड से शशिमुख - रमणी प्रकट करूं
मैं शशि-शीतल भ्रूमध्य-विन्दु से अग्नि झरूँ .

मैं घटाकाश का महाकाश में विलय करू..
मैं भारत हूँ , नव-सृजन हेतु मैं  प्रलय करूं...

क्रमशः 
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आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं..
आपके लिए मैंने ये कविता लिखी है
..
महाशक्ति बन रहे अपने पड़ोसी
के साथ नियति द्वारा ली जाने वाली परीक्षा निकट भविष्य में ही होनी है..

आइए हम सभी उसकी भी तैयारी करें.

कल मेरे प्रिय मित्र आमोद  जी ने मुझे मेरे जन्म दिन के अवसर पर
एक सुन्दर सुनहरी कलम का दान किया..

वैसे मैं जन्म दिन पर ईश्वर का विशेष ध्यान  करता हूँ  ..
कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं करता..
और  मैं उपहार के रूप में या अन्य किसी भी रूप में कभी कोई वस्तु स्वीकार नहीं करता क्योकि
मुझे अखंड विश्वास है कि ली हुई वस्तु अनिवार्य रूप से दाता को देनी पड़ती है..

किन्तु कलम और वह भी भारत-भक्त आमोद जी के द्वारा प्राप्त -- मैं अस्वीकार न कर सका ..
ये ऋण चुकाने का भावी दायित्व मैंने स्वीकार किया ..

उसी कलम से यह कविता मैंने लिखी..
''मैं भारत हूँ, मैं  भा- रत  हूँ , मैं प्रतिभा - रत''

मुझे यह संक्षिप्त लेखन अति प्रिय लगा ..
आपको कैसा लगा --कृपया ब्लॉग पर टिप्पणी लिखना न भूलियेगा ..

----अरविंद पाण्डेय