शनिवार, 14 अगस्त 2010

जिसके सौ करोड़ मस्तक हैं और भुजाएं द्विशत करोड़...

महाशक्ति भारत और चीन 
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जिसके सौ करोड़ मस्तक हैं और भुजाएं द्विशत करोड़.
उस भारत को नहीं समझना जन-धन-हीन और कमज़ोर.

महाशक्ति  तुम अगर बन रहे, फिर इतना तो रख लो याद.
अगर ''एशिया के सिंहों'' में स्थापित नहीं हुआ संवाद.

नियति-नटी फिर शक्ति-केंद्र अन्यत्र करेगी विस्थापित.
काल-पुरुष तब  ''तुम्हें''  करेंगे सदा सदा को अभिशापित.
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नीचे मैंने भारत के प्रथम और अद्वितीय प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू तथा हिंदी फिल्मोद्योग के  भारत-भक्त, धीरोदात्त नायक  श्री मनोज कुमार को याद करते हुए उनकी फिल्म ''पूरब और पश्चिम'' का गीत-''भारत का रहने वाला हूँ , भारत की बात सुनाता हूँ''--अपनी आवाज़ में प्रस्तुत किया है .
यह गीत आज भारत की स्वतन्त्रता की आलोकित रात्रि मे, उन सभी भारत-भक्तों को समर्पित करता हूँ जो भारत के  स्वर्णिम अतीत पर गर्व करते हुए उसे स्वर्णिम वर्तमान मे रूपांतरित करने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं.
BHARAT KA RAHNE WA...


































----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

सिंध ही तो है हमारी सभ्यता की दास्तान....


Aazadi Mubarak to All Brothers in Pakistan !!

सिंध ही तो है हमारी सभ्यता की दास्तान.
बँट गयी ज़मीन,पर तारीख तो अपनी ही है.
है किसी में हैसियत जो कह सके ये बात अब-
सिन्धु-घाटी है अलग तारीखे-हिन्दुस्तान से.

Pakistan will never be Problem for Us.
If will be, Only Bihar&Panjab will Solve it.
We have to switch over to Think about China-How to '' BEFRIEND ''

----अरविंद पाण्डेय

सोमवार, 26 जुलाई 2010

श्रावण के इस प्रथम दिवस पर , आओ शिव को नमन करें


सुख हो दुःख हो,यश अपयश हो ,मान हो या अपमान .
झूठा सारा खेल है जग का करले शिव का ध्यान.
सब कुछ करदे शिव को अर्पण ,माया मोह बिसार.
मेरे शिव हैं दीनदयाल.

नीचे प्रस्तुत शिव-भजन मैंने आज से ५ वर्ष पहले लिखकर साम्ब सदाशिव को अर्पित किया था..यह हिन्दी फिल्म --१. प्रेमरोग के गीत -- सुख दुःख आये , जाए, २.काजल के गीत के तोरा मन दर्पन कहलाये ,३.संत ज्ञानेश्वर के गीत जोत से जोत -- की धुनों पर संगीतबद्ध किया गया था..
किन्तु इसकी रिकार्डिंग का अवसर २०१० मे तब मिला जब तनुसागर ने अपना एक रिकार्डिंग स्टूडियो अंतरा -- पटना मे बनाया..इस भजन की रिकार्डिंग और मिक्सिंग उन्होंने की है और मेरा विश्वास है यह भजन साम्ब-सदाशिव को प्रिय है ..
आज श्रावण के प्रथम दिवस पर यह पुनः शिवार्पित -- लोकार्पित है.. 
नीचे का लिंक क्लिक करें --


---अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 14 जुलाई 2010

कीट्स हों दिल में तो फिर इस ज़िंदगी में क्या कमी.

जॉन कीट्स 
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हों अगर ग़ालिब जेहन में , हों जुबां पर कालिदास  .
कीट्स हों दिल में तो फिर इस ज़िंदगी में क्या कमी.
----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 15 जून 2010

मुझे, रह रह के मेरी माँ की याद आती है..


सुखन, जुबान से निकले तो भला क्यूँ निकले .
मेरे इक दोस्त के यहाँ साया-ए-मातम है.
दगा-गरों के सितम का है वो शिकार हुआ.
भरोसा कौन करे, किसपे , बस यही गम है.

बहुत उदास हो गयीं हैं वादियाँ , ये चमन .
नई बारिश भी जाने क्यूँ मुझे रुलाती है.
कोई पनाह, सहारा न अब तो दिखता है .
मुझे, रह रह के मेरी माँ की याद आती है.


मैंने रफ़ी साहब द्वारा गया हुआ गीत '' जब भी ये दिल उदास होता है..जाने कौन आसपास होता है..'' अपनी आवाज़ मे रिकॉर्ड कराया है..आप इसे ज़रूर सुनें और बाताये कि क्या मैं इस गीत में अपना दर्द भर पाया..


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----अरविंद पाण्डेय


( सुखन = कविता . दगा-गर = विश्वासघाती )

शनिवार, 8 मई 2010

तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे-गुरुदेव रवींद्रनाथ के प्रति


तुम प्रकृति-कांति में मिले मुझे ,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

रश्मिल-शैय्या पर शयन-निरत,
चंचल-विहसन-रत अप्रतिहत,
परिमल आलय वपु,मलायागत,

तुम अरुण-कांति में मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

जब विहंस उठा अरविंद-अंक,
अरुणिम-रवि-मुख था निष्कलंक,
पतनोन्मुख  था पांडुर मयंक,

तुम काल-क्रांति में मिले मुझे ,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन .

जब ज्वलित हो उठा दिव्य-हंस,
सम्पूर्ण हो गया ध्वांत-ध्वंस,
गतिशील हो उठा मनुज-वंश,

तुम कर्म-क्लान्ति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

आभा ले मुख पर पीतारुण,
धारणकर, कर में कुमुद तरुण,
जब संध्या होने लगी करुण,

तुम निशा-भ्रान्ति में मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

जब निशा हुई परिधान-हीन,
शशकांत हो गया प्रणय-लीन,
चेतनता  जब हो गई दीन,

तुम स्वप्न-शान्ति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन.

तुम प्रकृति-कांति मे मिले मुझे,
जब नहीं हुआ प्रत्यक्ष मिलन..

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यह गीत मैंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रति हुई अपनी वास्तविक अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए लिखा था दिनांक ०८.१०.१९८३ को .. रवीन्द्रनाथ का जीवन मुझे अपना सा लगता है..मुझे लगता है मैं उनके साथ रहा हूँ.या मैं वही था ..बड़ी गहन अनुभूतियाँ हैं ..कभी विस्तृत रूप मे व्यक्त होंगी ही..
यह गीत मैंने ७ मई के अवसर पर आपके लिए प्रस्तुत किया  है..
ब्लॉग में अपनी टिप्पणी अवश्य लिखे आप..

----अरविंद पाण्डेय

रविवार, 2 मई 2010

मैं हूँ अनंत,अविकल,अपराजित,अखिल,शेष


भगवान  अनंत   शेष के इन पार्थिव प्रतीक के चित्र का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे इंटरनेट  पर प्राप्त हुआ..
भगवान शेष , महाविष्णु को अपनी कुण्डली पर एवं  समस्त पञ्चभूतात्मक सृष्टि को अपने सहस्र फणो पर धारण करते हुए अपने परमानंदस्वरुप मे स्थित रहते हैं..
इस चित्र के दर्शन से उनकी स्तुति करने की इच्छा हुई इसलिए ये पंक्तियाँ प्रस्तुत हुईं..
आप इसे पढ़ने के बाद , ब्लॉग मे अपनी टिप्पणी लिखने की कृपा करें..
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सम्पूर्ण सृष्टि   की सत्ता  का   मैं  अधिष्ठान 
मैं  पंचभूत  के विस्तृत वैभव का वितान.

मेरे सहस्रफण की मणि का प्रज्ज्वल प्रकाश.
संसृति को देता जन्म,पुनः करता विनाश.


मुझमें  ही  भास   रही  देखो   संसृति अशेष.
मैं हूँ अनंत,अविकल,अपराजित,अखिल,शेष 

-----अरविंद पाण्डेय

रविवार, 11 अप्रैल 2010

आज शाम वक्त मेरे साथ था . ..





आज शाम वक्त मेरे साथ था . 

मैं अपने मित्र तनुसागर के स्टूडियो ''अंतरा '' गया और एक गीत अपनी आवाज़ मे रिकार्ड कराया जिसकी इच्छा मुझे वर्षों से थी..
मेरे साथ मेरे मित्र आमोद जी भी थे जिन्होंने रिकार्डिंग मे सहयोग किया..
तनुसागर ने अपनी रिकार्डिंग और मिक्सिंग प्रतिभा का ऐसा प्रयोग इस गीत मे किया कि मुझे अब इसे सुनते हुए लग रहा है कि मैंने इस गीत को गाकर अपने आतंरिक सौन्दर्य से इसे कुछ और भी मोहक बनाया है..
यह मेरा अनुभव है आप का अनुभव क्या होगा - मुझे नहीं पता ..
यह गीत शर्मीली फिल्म का है .
शशि कपूर ने इस गीत को गाते हुए जितने सुन्दर सम्मोहक दृश्यों का सृजन अपने अभिनय से किया था वैसे सुन्दर सम्मोहक दृश्य का सृजन आज का कोई भी अभिनेता नहीं कर सकता ..
'' कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का.
कल रुके ना रुके डोला बहार का.
चार पल मिले जो आज,प्यार मे गुजार दे.
खिलते हैं गुल यहाँ ,खिल के बिखरने को..........''
आप इसे ज़रूर सुने.. और बताये कैसा लगा आपको ..






----अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ये जिस्म है लिबास,इस लिबास से क्या इश्क


ये  जिस्म  है लिबास , इस लिबास से क्या इश्क .
ये आज साफ़ है तो कल हो जाएगा खराब.
जो इसको पहनता है वो है रूहे   - कायनात ,
मुझको तो मुहब्बत , बस उसी रूह से हुई.. 


----अरविंद पाण्डेय

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

कृष्ण हाथ उसके बिकते,संसार गया जो हार .



कामशून्य ही पा सकता है परमात्मा का प्यार.
कृष्ण हाथ उसके बिकते संसार गया जो हार 
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समः शत्रौ च मित्रे च ,तथा मानापमानयो:
शीतोष्णसुखदु:खेषु, समः संगविवर्जितः 

गीता के द्वादश अध्याय मे श्री भगवान ने उन गुणों का व्याख्यान किया है जिन गुणों के कारण वे स्वयं किसी मनुष्य से प्रेम करने लगते हैं..हम सभी श्री भगवान से प्रेम करने की चेष्टा करते हैं किन्तु इस बात पर बहुत कम लोगो का ध्यान जाता है कि वे कौन से गुण हैं जिनके कारण श्री भगवान् किसी से प्रेम करते हैं.

इस श्लोक मे श्री भगवान कहते कि जो व्यक्ति शत्रु और मित्र - दोनों मे समान दृष्टि रखता है ..जो मान और अपमान - दोनों स्थितियों मे समान रहता है अर्थात चित्त के स्तर पर अविचल रहता है .. सुख और दुःख तथा प्रतिकूल और अनुकूल - दोनों परिस्थितियों मे मन की तटस्थता बनाए रखते हुए भौतिक अर्थात विनाशवान पदार्थों के प्रति राग-मुक्त रहता है वह उन्हें प्रिय है.. 

इस अध्याय मे श्री भगवान द्वारा वर्णित गुणों से संपन्न व्यक्ति का एक विशिष्ट नामकरण श्री भगवान ने स्वयं द्वितीय अध्याय मे किया है .. वह नाम है - स्थितप्रग्य.. जिसका मूल लक्षण है काम शून्यता की स्थिति ..

----अरविंद पाण्डेय