शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है



हमारे लिए वैयक्तिक-उपनिवेशों के रूप में उपलब्ध ब्रिटेन और अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों में बेरोजगारी तथा उससे उत्पन्न अपराध आदि अन्य समस्याओं में निरंतर वृद्धि हो रही है इसलिए चीन, जापान , कोरिया आदि को छोड़कर अन्य एशियाई देशों को आगा
मी कुछ वर्षों में ही उस विकल्प के लिए तैयारी करनी होगी जिसमें कि हम अपने युवाओं को यथायोग्य काम दे सकें अन्यथा इन देशों में एक द्वेषाधारित राष्ट्रवाद का उदय होगा जिसकी तीव्र-तरंगों का आधात इतना भयावह होगा कि वहाँ काम करने वाले हमारे लोग सीधे अपने - अपने देशों में आकर गिरेंगें .
अपने देश में प्रौद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम में होने के कारण हम एक वैज्ञानिक-समाज का निर्माण नहीं कर पाए..किन्तु चीन , जापान , कोरिया आदि एशियाई देशों में प्रद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा होने के कारण वहाँ वैद्यानिक समाज का विकास हुआ और आज इन देशों के गावों में कुटीर-उद्योग में बनाए जा रहे इलेक्ट्रानिक सामानों से हमारा बाज़ार भरा पड़ा है.. 
खुली वैश्विक अर्थनीति जिस समय प्रवर्तित हुई उस समय हम प्रतियोगिता के मंच पर अपनी सशक्त भूमिका के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि यहाँ के योग्य युवा यूरोपीय देशों में ही अपना भविष्य देख रहे थे..किन्तु , चीन , जापान आदि ने उस भूमिका को बहुत पहले ही पहचान लिया था और उसके लिए तैयारी भी कर चुके थे.. वास्तव में भारत में खुली अर्थव्यवस्था का समय-पूर्व प्रसव हो गया और परिणाम था कि हम चीन आदि के पुष्ट अर्थ-शिशु के समक्ष कुपोषित शिशु जैसे रह गये और आज भी वह कुपोषण बना हुआ है.. कोरिया की सैमसंग कंपनी का गैलेक्सी अब इस समय अमेरिका के आई फोन से आगे बढ़ने का सफल प्रयास करता हुआ देख रहा और हम इस ऐतिहासिक अर्थ-युद्ध में बाज़ार बन कर मात्र युद्ध-भूमि ही उपलब्ध करा रहे हैं.


इस समाचार क्लिपिंग से स्पष्ट संकेत मिलता है कि भविष्य में आर्थिक-अतृप्ति के कारण उत्पन्न सामाजिक-संकट से ग्रस्त ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश, हम भारत की युवा-प्रतिभाओं का उसी प्रकार स्वागत नहीं कर पायेगे जैसा वे पहले करते रहे हैं..
यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है और शायद हमारे यहाँ अधिकांश लोगो का ध्यान इस ओर नहीं है ..

अरविंद पाण्डेय 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

अहं ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है

महाशक्ति पीठ विन्ध्याचल 

लिए मिठास कुछ अमरित सा अपने पानी में.
मेरी  गंगा  यहाँ  मस्ती   में   बही   जाती   है.

बहुत   हंसीन  सी   आवाज़   हवाओं  में   है,
कि  ज्यों  कोई  परी वेदों  की  रिचा  गाती है.

खुद   अपने  तन  के ही करीब हुआ  तो पाया. 
मेरे  इस  गाँव  की मिट्टी की महक आती है.

यहाँ  रमजान की रानाइयां भी  नाजिल हैं .
यहाँ   नवरात्र  के  मन्त्रों  की सदा आती है.

अहं  ब्रह्मास्मि,अनलहक की गूँज रूह में है,
न जाने फिर भी  क्यूँ, ये रूह  कसमसाती है.

-- अरविंद पाण्डेय 


बुधवार, 7 नवंबर 2012

नीरज जी के साथ एक काव्य मंच पर



यह वीडियो एक मई २००८ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुई कवि-गोष्ठी का है .. हिन्दी दैनिक समाचारपत्र दैनिक जागरण द्वारा आयोजित  इस गोष्ठी में मैंने अपने सवक्तव्य  काव्य-पाठ से श्रोताओं से संवाद किया ... श्री गोपालदास नीरज इस गोष्ठी के अध्यक्ष थे तथा उन्होंने भी अपनी कविताओं गीतों के सुरस से श्रोताओं को रस-सिक्त किया ... नीरज जी के साथ यह दूसरा मंच था जहाँ मैंने काव्य-पाठ किया ..इस हेतु मैं  मुजफ्फरपुर के श्री अमरेंद्र तिवारी जी का आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे अनुरोध पर यह वीडियो अथक-प्रयास के बाद पहले स्वयं प्राप्त किया फिर मुझे उपलब्ध कराया...

अरविंद पाण्डेय 


शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

मेरे आँगन में ही,मुफलिस सा,चाँद आया है !

गौर्यै धात्र्यै नमो नमः
-------------
करवा चौथ .

सभी व्रती-नारियों के सम्मान में .आज माँ गौरी का स्मरण करते हुए.
-------------------------

मेरे सनम ! मेरे महबूब ! आज की शब् तो,
मेरे आँगन में ही , मुफलिस सा चाँद आया है.

बड़ा  बेनूर  सा  दिखता  है चौथ का ये  चाँद.
तुझी  को  देख, लग रहा है, ये शरमाया है.

तेरी नज़रों का नूर , दीद में मेरी, हरदम,
मेरे  हमनूर !  जो चारो  पहर  समाया है. 

उसी नज़र-ए-करम की भीख माँगने शायद,
मेरे  आँगन में  ही,मुफलिस सा, चाँद आया है.




-- अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

..फिर दोनों का था रखा नाम-इंदिरा और लक्ष्मी बाई.


31 अक्तूबर

ये क्या रहस्य-उन्नीस नवम्बर को दोनों ऩे जन्म लिया.
ये क्या रहस्य है-दोनों की माँ  ऩे बचपन में छोड़ दिया.
दोनों के नामों का मतलब है एक ,एक सा  जीवन  था.
वैधव्य, पुत्र की मृत्यु,देश के लिए समर्पित तन-मन था.

बचपन में एक छबीली ,  प्रियदर्शिनी  दूसरी  कहलाई.
फिर दोनों  का  था रखा नाम इंदिरा  और लक्ष्मी बाई.


1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध आधुनिक विश्व इतिहास की एक ऐसी सशक्त घटना है जिसमें भारत ने श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में यह दिखाया कि वह सामरिक स्तर भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका से मोर्चा लेने का संकल्प ले सकता है और भारत के इस पौरुष के शंखनाद में अमेरिका की पाकितान के लिए निकल रही आह दब कर रह गई .. बस यही एक घटना श्रीमती इंदिरा गांधी को विश्व इतिहास की सबसे सशक्त महिलाओं में से एक रूप में स्थापित करती है..भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि हम ऐसे व्यक्तित्वों को भी दल-गत कुदृष्टि से देखते रहे हैं.. मैंने इस कविता में उन समानताओं का उल्लेख किया है जो श्रीमती इंदिरागांधी और महारानी लक्ष्मीबाई में थीं..यहाँ तुलना नहीं की जा रही ..बस उस संयोग को बताया गया है जो विलक्षण है और भारत की इन दो स्त्री रत्नों में पाया जाता है..
-- अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

रामदूत रक्षा करो , जय जय श्री हनुमान



हरिः  ॐ तत्सत् महाभटचक्रवर्ती रामदूताय नमः

जब संकट आए कोई , हों व्याकुल मन प्राण.
शत्रु  शक्तिशाली  करे   मारक शर - संधान .
स्मरण करे एकाग्र हो , करे  बस  यही गान -
" रामदूत  रक्षा  करो ,  जय जय श्री हनुमान "

-- अरविंद पाण्डेय 



रविवार, 7 अक्टूबर 2012

शैशव के ही सन्निकट स्वर्ग हँसता है



स्वप्न और विस्मृति  है  अपना जीवन.
है  सुदूर ,  आत्मा  का  मूल - निकेतन. 
तारक सा ज्योतित नभ से यहाँ उतरता.
आकर वसुधा पर,कुछ विस्मृति में रहता.

गरिमा के जलद-सदृश हम विचरण करते.
ईश्वर   के   शाश्वत  सन्निवास में  रहते.  
शैशव के  ही सन्निकट  स्वर्ग   हँसता  है.
तब,  सार्वभौम शासक  सा शिशु सजता है.

पर,जब यह शिशु, विकसित किशोर में होता.
तब, सघन कृष्ण - छाया  परिवेष्टित  होता.
यह,  किन्तु,  किया करता प्रकाश का दर्शन.
जब   होता   है   उन्मुक्त   हर्ष  का  वर्षण.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

अब अपनों से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे..




बहुत  कर लिया बंद, अब ज़रा भारत खोलो.
कहा खड़े हो  दुनिया  में अब खुद  को  तोलो.
बाजारों   में  कब्ज़ा  है  जापान ,  चीन   का.
कितनी  दौलत  वहाँ  जा  रही ,यह तो बोलो.


एक  वक़्त  था  जब  यूनानी, रोमन सारे.
खूब   खरीदा  करते  थे  सामान   हमारे.
वही  सुनहरी  सदी आज फिर कोई दे दे-
अब  अपनों  से आकुल हिन्दुस्तान पुकारे.

-- अरविंद पाण्डेय 




रविवार, 12 अगस्त 2012

रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र !


रामदेव जी और अन्ना जी के लिए पांच सूत्र 
------------------------------


समस्या भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण की है: कुछ सूत्र हैं जो उन्हें आंदोलन के रूप में शुरू करना चाहिए जो भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के निर्माण के पक्षधर हैं..

१.सभी नागरिक संकल्प लें कि वे हानि उठायेगे किन्तु अपना काम साधने के लिए रिश्वत नहीं देगे..

२.विद्यालयों में विशेषरूप से दून स्कूल और अन्य तथाकथित अच्छे विद्यालयों में '' रिश्वत न लेने के फायदे '' विषय पर पाठ्यक्रम शुरू किया जाय.

३.स्कूलों में डोनेशन देकर प्रवेश देने के कार्य को रिश्वत का अपराध घोषित करने के लिए क़ानून बनाया जाय.

४.स्कूलों में उपहार लेने और देने की सीमा भी निर्धारित की जाय जिससे उपहार आदि के आधार पर स्टेटस का मूल्यांकन होना बंद हो.

५.एक १० करोड या ऊपर के साबित भ्रष्टाचार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान हो..जिससे २००० रुपये की रिश्वत और २०० करोड की रिश्वत में फर्क हो सके...
                  आप सहमत हैं ..यदि हाँ तो अभी --- राजनीति के मोह से बचकर ये सब कीजिये ..
                     वरना जीतने के लिए '' व्यावहारिक '' Practical होना पडेगा फिर क्या होगा उन सपनों का जिन्हें बाँटते हुए यहाँ तक की मंजिल तय की है.

-- अरविंद पाण्डेय 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुं 


हैं सौम्य,शुद्ध,सुप्रसन्न दश दिशाएँ दीपित.
योगी के चित्त-सदृश निर्मल आकाश अमित .
नक्षत्र,ग्रह,उपग्रह,तारक-गण हैं  प्रमुदित.
धरती के ग्राम,नगर,वन-प्रांतर हैं हर्षित.

कल कल निनादमय तटिनी हो होकर उच्छल.
तट का आलिंगन कर, प्रसन्न होती अविरल.
मधुरिम-सुगंध-परिपूर्ण पवन कर रहा गान.
वन में प्रफुल्ल,पुष्पित वृक्षावलि का वितान.

है स्वतः प्रज्ज्वलित, अग्निहोत्र की अग्नि प्रखर.
जो क्रूर कंस के अनाचार से थी अज्वल .
नक्षत्र रोहिणी, भाद्र-कृष्ण-अष्टमी  दिव्य.
है महाकाल के कृष्ण-नमन से निशा भव्य.

कण कण में व्यापक परब्रह्म,सात्वत,विराट.
स्वरराट, स्वयंभू ,स्वप्रकाश,शाश्वत,स्वराट.
देव-स्वरुप देवकी-गर्भ से प्रकट हुए .
दानव-विदलित मानवता के प्रति अभय लिए.

नभ-सदृश वर्ण,मधुरस्मित,अलकावलि कुंचित.
वक्षस्थल है विद्युन्मय स्वर्णिम-रेखांकित.
कौस्तुभ-संदीपित कंठ ,चतुर्भुज ,चतुर्व्यूह .
कटि पर मधुरिम-गुंजित चंचल किंकिणि-समूह.

स्वर्णिम-पीताम्बर-श्रृंगारित था उच्च स्कंध .
चरणों  में सजती  थी पायल ज्यों वेद-छंद.
नयनों से थी बह रही प्रेम की दिव्य-धार.
साकार हो उठा था अब निर्गुण, निराकार.

अक्षर, अनंत श्री कृष्ण सांत में व्यक्त हुए.
वसुदेव, देवकी,देख उन्हें अनुरक्त हुए.
थी देह पुलक-परिपूर्ण,ह्रदय प्रार्थना-पूर्ण.
स्तुति, पूर्ण-तत्त्व की करती थी वाणी अपूर्ण.



----अरविंद पाण्डेय