सोमवार, 28 जुलाई 2014

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

यह एवरेस्ट क्यों झुक सा अभी गया है..



सत्ता के पौरुष का पर्याय पुलिस है.
पर,कौन घोलता इस अमृत में विष है.
यह शक्ति-पुंज कैसे असहाय हुआ है.
यह एवरेस्ट क्यों झुक सा अभी गया है.


षड्यंत्र घृणित दिखता जो, वह किसका है.
है सूत्रधार वह कौन, सूत्र किसका है.
विधि के शासन की गरिमा कौन लुटाता.
मर्यादा की रेखा है कौन मिटाता.


दावा करता है कौन न्याय का, नय का.
सारे समाज के शुभ का और अभय का.
वह कौन कि जिसने स्वर्णिम स्वप्न दिखाया.
पर, कर्म किया प्रतिकूल, मात्र भरमाया.


जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है.
तब तब ललनाओं का सुहाग लुटता है.
जब कर्म-कुंड की अग्नि शांत होती है.
तब दुष्टों से धरती अशांत होती है.


जब उच्छृंखल,अपवाचक लोग अभय हों.
जब सत्यनिष्ठ जन को सत्ता का भय हो.
जब श्रेष्ठ,श्रेष्ठता से मदांध सोता है.
वर्चस्व तब अनाचारी का होता है.


विधि के शासन की गरिमा तब लुटती है.
मर्यादा की सब रेखाएं मिटती हैं.
पौरुष का पर्वत भी झुक सा जाता है.
सारा समाज आतंक तले आता है.


इसलिए,अगर सम्मान सहित है जीना 
आतंक का न अब और गरल है पीना .
तब नपुंसकों का बहिष्कार करना है.
क्यों बार बार, बस,एक बार मरना है.

---  अरविन्द पाण्डेय 

रविवार, 27 अप्रैल 2014

हमला वही करता है जो जीता है खौफ में.

हमला वही करता है जो जीता है खौफ में.
बेख़ौफ़ कलंदर है सिकंदर सुकून का. 
--   अरविन्द पाण्डेय 

गांधी जी कहते थे कि हिंसा वही करता है  जो भयभीत होता है.....
............... अनेक अपराधों विशेषतः डकैती के अपराध की पूरी घटना के विश्लेषण में मैंने यह पाया है कि लूटते समय अपराधी पकडे जाने के भय से अत्यंत काँप रहा होता है और उस वक्त यदि किसी ने ज़रा भी प्रतिरोध किया तो उसका भय और बढ़ जाता है और वह तुरंत अपने सामने वाले पर प्राणघातक हमला कर बैठता है....
............ महात्मा गांधी की अहिंसा  का दर्शन मूलतः भगवान पतंजलि के योगसूत्र की अहिंसा के संप्रत्यय से निःसृत था..... और उनका प्रत्येक कथन शुद्ध मनोवैज्ञानिक अनुप्रयोगों पर आधारित होता था....
............ कल,अपने विरुद्ध दर्ज अनेक मामलों से भयाक्रांत रामदेव नें एक व्यक्ति के विरुद्ध  ऐसी वाचिक-हिंसा कर दी है जो मूलतः मानवता के विरुद्ध अपराधों की श्रेणी में परिगणित किया जाना चाहिए और जो भारत के महान संविधान के मूलाधारों के विपरीत है.....

इस पोस्ट पर कृपया राजनीतिक टिप्पणी न करें..

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

मेरे स्वर में- Ek Tha Gul aur Ek Thi Bulbul- Aravind Pandey




Dedicated to Respected Nanda Ji , 

The Famous '' Bulbul " of Hindi Film - Jab Jab Phool Khile....

In My Voice - Ek Tha Gul aur Ek Thi Bulbul ....

Singing is the best way to worship God...
My voice follows Mukesh ji, Rafi Sahab , Kishor KUmar Ji and other legends of Hindi and other Indian Music World... So, I sing my favorite singers and pay my salute to them,,,,,,,

Aravind Pandey

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

Aravind Pandey recites William Wordsworth and Sings Kishor

ईस्टर पर ईश्वर-पुत्र ईसा की स्मृति में उन्हीं को समर्पित :

Aravind Pandey recites William Wordsworth : 
The Poem : By the Sea..... 

यह सुहासिनी सुन्दर संध्या , शान्तिमान एवं स्वतंत्र है...........

and Sings Kishor .................

आ चल के तुझे ............

रविवार, 20 अप्रैल 2014

भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें ..

23 मार्च 
इन्कलाब जिंदाबाद 

दिया जला के शहादत का हमको छोड़ चले
हुए फना पर आँधियों का भी रुख मोड़ चले 
मगर सोचा न था-ऐसा भी वक़्त आएगा
बस एक दिन ही भगत याद हमें आयेगा 

हर एक बाप ये सोचेगा कि उसका बेटा 
कहीं अशफाक,भगत सा न ज़िन्दगी दे लुटा 
हर एक नौजवाँ सलमान की तस्वीर लिए
बस,उस जैसा ही बन के जीने के लिए ही जिए 

किया है हमने जो सलूक शहीदों से,सुनो
उसे न माफ़ ये तारीख करेगी , सुन लो 
जो लूटते हैं मुल्क को वो मुस्कुराएगें 
भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें 

-- अरविन्द पाण्डेय