शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

मेरे स्वर में- Ek Tha Gul aur Ek Thi Bulbul- Aravind Pandey




Dedicated to Respected Nanda Ji , 

The Famous '' Bulbul " of Hindi Film - Jab Jab Phool Khile....

In My Voice - Ek Tha Gul aur Ek Thi Bulbul ....

Singing is the best way to worship God...
My voice follows Mukesh ji, Rafi Sahab , Kishor KUmar Ji and other legends of Hindi and other Indian Music World... So, I sing my favorite singers and pay my salute to them,,,,,,,

Aravind Pandey

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

Aravind Pandey recites William Wordsworth and Sings Kishor

ईस्टर पर ईश्वर-पुत्र ईसा की स्मृति में उन्हीं को समर्पित :

Aravind Pandey recites William Wordsworth : 
The Poem : By the Sea..... 

यह सुहासिनी सुन्दर संध्या , शान्तिमान एवं स्वतंत्र है...........

and Sings Kishor .................

आ चल के तुझे ............

रविवार, 20 अप्रैल 2014

भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें ..

23 मार्च 
इन्कलाब जिंदाबाद 

दिया जला के शहादत का हमको छोड़ चले
हुए फना पर आँधियों का भी रुख मोड़ चले 
मगर सोचा न था-ऐसा भी वक़्त आएगा
बस एक दिन ही भगत याद हमें आयेगा 

हर एक बाप ये सोचेगा कि उसका बेटा 
कहीं अशफाक,भगत सा न ज़िन्दगी दे लुटा 
हर एक नौजवाँ सलमान की तस्वीर लिए
बस,उस जैसा ही बन के जीने के लिए ही जिए 

किया है हमने जो सलूक शहीदों से,सुनो
उसे न माफ़ ये तारीख करेगी , सुन लो 
जो लूटते हैं मुल्क को वो मुस्कुराएगें 
भगत, सुखदेव अब कभी न यहाँ आएगें 

-- अरविन्द पाण्डेय


रविवार, 13 अप्रैल 2014

Ek Tera Sundar Mukhada Aravind Pandey

मेरे स्वर में रफ़ी साहब का मधुरतम गीत ,
हिन्दी फिल्म : भाई भाई

इक तेरा सुन्दर मुखड़ा , इक तेरा प्यार से भरा दिल,
मिलना मुश्किल ....


शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

प्रकृति का श्रृंगार तब तक रहेगा बिल्कुल अधूरा


प्रकृति का श्रृंगार तब तक रहेगा बिल्कुल अधूरा.
जब तलक प्रत्येक जन का स्वप्न हो जाए न पूरा.
गिरि, नदी, पर्वत सभी में चेतना है सुप्त, तन्द्रिल,
किन्तु, प्राणी में प्रकट है प्रकृति का संकल्प पूरा.


अरविंद पाण्डेय 
 www.biharbhakti.com

भारत के जन जन में अब तुम प्रकट बनो, हे राम

दासोऽहं कोशलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः 

राम, तुम्हारी रावण-जय का अब हो नहीं विराम.
भारत के जन जन में अब तुम प्रकट बनो, हे राम.

शुद्ध-बुद्ध-प्रतिबद्ध विभीषण का हो अब अभिषेक 
स्वर्णमयी लंका का शासक हो सम्बुद्ध - विवेक .

............ प्रत्येक मनुष्य का हृदय स्वर्णमयी लंका है जिस पर अशुद्ध-राग, निजी-द्वेष, विश्वासघात, छल-छद्म, धर्म-विरुद्ध वासनाओं जैसे विकृत दश-मुख रावण का नियंत्रण बहुधा पाया जाता है...
............. स्वर्णिम लंका पर वास्तव में धर्म-सम्मत राग, अखंड विश्वास, धर्म-सम्मत कामना रूपी विभीषण का राज्याभिषेक किया जाना ही महाप्रकृति की इच्छा होती है....

...... श्री रामभद्र का धरा-अवतरण इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ ..........

............. कलिकाल में अमिताभ बुद्ध, ईश्वर-पुत्र जीसस और पैगम्बर मुहम्मद के माध्यम से उनकी वाणी पुनः अवतरित हुई और संसार को मार्ग-दर्शित किया ..........

श्री रामनवमी इसी ऋत के स्मरण का महापर्व और शुभ अवसर है.....

आप सभी मित्रों को श्री राम नवमी की शुभ कामनाएं ......... 

ईश्वर , सभी को अशुद्ध-राग, निजी-द्वेष, विश्वासघात, छल-छद्म, धर्म-विरुद्ध वासनाओं से मुक्त करें और 
असतो मा सद्गमय की अनुकम्पा करें.....

अरविंद पाण्डेय 
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बुधवार, 9 अप्रैल 2014

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

श्री माँ के श्री चरणों में


यो माम् जयति संग्रामे, यो मे दर्पं व्यपोहति.
यो मे प्रतिबल: अस्ति, स मे भर्ता भविष्यति : 

श्री दुर्गा सप्तशती मे भगवती चंडिका का संवाद 

मैं वही शक्ति, जिसने शैशव में शपथ लिया 
नारी-गरिमा का प्रतिनिधि बन, हुंकार किया -- 

'' जो करे दर्प-भंजन, जो मुझसे बलवत्तर 
जो रण में करे परास्त मुझे, जो अविजित नर । 

वह पुरूष-श्रेष्ठ ही कर सकता मुझसे विवाह 
अन्यथा, मुझे पाने की, नर मत करे चाह । 

आज महानिशा-पूजन के अवसर पर श्री माँ के श्री चरणों में 
मेरा वर्ण-पुष्प :

अरविंद पाण्डेय 
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रविवार, 23 मार्च 2014

भगत ! बचो फांसी से,कर दो इनका काम तमाम.


23 मार्च !! 

भगत ! बचो फांसी से,कर दो इनका काम तमाम................

नहीं शहादत देना है,  अब  तो  शहीद  करना है.
हिन्दुस्तां के रखवालों अब खुद न कभी मरना है.
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की फांसी को भूल,
कुछ  काले  अँगरेज़  भोंकते हैं भारत  को  शूल. 

इन्कलाब  का नारा  लेकिन इरविन  जैसा काम.
भगत ! बचो फांसी से,कर दो इनका काम तमाम.

अरविंद पाण्डेय www.biharbhakti.com

शनिवार, 22 मार्च 2014

इस ज़मीं से कोई खुशबू ले रहा, काँटा कोई.


दो तरह के पेड़ इक काँटों भरा, इक फूल का.
इस ज़मीं से कोई खुशबू ले रहा, काँटा कोई.
दो तरह के लोग हैं दुनिया के दस्तरख्वान में,
एक लगता मिर्च सा, दूजा लज़ीज़ इफ्तार सा .


अरविंद पाण्डेय 
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