बुधवार, 26 दिसंबर 2012

माताएं बुला रहीं हैं तुमको सिहर - सिहर



ॐ : आमीन 

हे  शुभ्र- वर्ण, शुभ्राम्बर, सुन्दर,  शुभ्र - नयन
अविरल-अनुकम्पा-अनुरंजित,अपराजित-मन
आओ , अपराधों से कलुषित  अब   धरती पर 
माताएं  बुला  रहीं  हैं   तुमको  सिहर - सिहर

कोलाहल  में   है  दबी  हुई   ॐ कार - ध्वनि
आकुल , अविरल आँसू  से भीगी आज अवनि


अरविंद पाण्डेय 

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे

कृष्णं वन्दे जगदगुरुं : 

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन 

.............भारत में प्राचीन काल से ही शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा को प्रसन्नता-पूर्ण जीवन जीने के आवश्यक उपायों में बताया गया था .... पञ्च-ऋण से मुक्त होने और प्रतिदिन पञ्च-महायग्य करने का विधान प्रत्येक गृहस्थ के लिए किया गया है...किन्तु अज्ञानता के कारण आज अधिकाँश लोग इन उपायों का अवलंबन नहीं करते..... किन्तु सच ये है कि 

हंसी  हो लब पे तो दुनिया हसीन सजती है .
खिजां, बहार सी ताज़ातरीन लगती है.
मगर, जो दूसरों के लब पे तबस्सुम रख दे,
ज़मीं , फिरदौस से भी बेहतरीन लगती है.

........................अमरीका के मनोवैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह पाया है कि जो लोग शुद्ध और वास्तविक समाज-सेवा में स्वयं को व्यस्त रखते है वे अन्य समान-स्थिति वाले व्यक्तियों से अधिक प्रसन्न और तनावमुक्त जीवन जीते हैं......
........................अब पश्चिमी देशों में भी स्वयं को प्रसन्न रखने के लिए समाजसेवा को एक औषधि के रूप में प्रयोग किये जाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है .....

सभी मित्रों को सुप्रभात और नमस्कार...

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अरविंद पाण्डेय
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..




...... मलाला यूसुफजई एक ऐसे प्रकाश-पुंज का नाम है जो न स्त्री है न पुरुष ..क्योकिं प्रकाश-पुंज का न तो लिंग होता , न जाति होती है, न धर्म होता है..
और न ही वह पूर्वाग्रह के कारण प्रकाश का वितरण करता है..
...प्रकाश समानभाव से अपनी सीमा में आने वाली सभी वस्तुओं को मुक्त रूप से आलोकित करता है..
...........मलाला को लडकी के रूप में वर्गीकृत करके, उसे शिक्षा से वंचित करने के असफल प्रयास को नहीं देखा जा सकता .. जो अशक्त और असमर्थ होगा उसके साथ यह संभावित होगा...
..........आज भी भा
रत और विश्व के अनेक देशों में करोड़ों पुरुष ऐसे हैं जो शिक्षा से वंचित किये गए हैं,, जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही .. जिन्हें मज़दूरी कराने के बाद न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं देकर क़ानून का खुला उल्लंघन किया जाता है.. 
..............इसलिए मलाला एक स्त्री नहीं है ... उसने शिक्षा-शत्रुओं के विरुद्ध कुछ किया नहीं ..बल्कि , शिक्षा-शत्रुओं ने उसके द्वारा वितरित हो रहे प्रकाश को उसी तरह धूल फेंक कर ढकने की कोशिश की जैसे कोई मूर्ख , सूर्य की ओर धूल फेंक कर उनके प्रकाश को अवरुद्ध करने का प्रयास करता है...
आप इस कविता को ज़रूर पढ़ें...


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अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

पुलिस द्वारा आयोजित कार्यशाला

राष्ट्रीय सहारा , पटना , ४ दिसंबर.२०१२ 


मल्टी मीडिया मोबाइल फोन आपका बहुत अच्छा दोस्त साबित हो सकता है मगर यह आपका खतरनाक दुश्मन भी बन सकता है... कुछ दिन पहले बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को मैंने महिला महाविद्यालयों तथा विद्यालयों में कार्यशाला आयोजित करने को कहा था जिससे छात्र
छात्राओं  में मल्टी मीडिया सेल फोन और इंटरनेट की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सके..
राज्य के दो जिलों -- सुपौल तथा शिवहर में छात्राओं के बीच यह कार्यशाला पुलिस द्वारा आयोजित की गई जिसके अत्यंत सकारात्मक प्रभाव देखे गए..आगामी कुछ दिनों में पटना सहित एनी जिलों में भी यह कार्यशाला आयोजित की जायेगी.. इस हेतु अपने सुझाव और सलाह यदि आप सभी मित्र देगे तो हमें खुशी होगी 





अरविंद पाण्डेय 

सोमवार, 26 नवंबर 2012

इस खून की हर बूँद पे वतन का क़र्ज़ है.


26 नवंबर :
संविधान-दिवस
और
संविधान पर आक्रमण का दिवस



हमने तो बहाया है खून बस ये  सोचकर.
इस खून की हर बूँद  पे वतन का क़र्ज़ है.
राहों में बनाएँ हैं शहादत के  कुछ निशाँ, 
उनको तो बचाना अब तुम्हारा भी फ़र्ज़ है.

-- अरविंद पाण्डेय



अरविंद पाण्डेय www.biharbhakti.com

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

एकमेव है चन्द्र किन्तु शत - शत बन इतराता है,



महाकाश,  उत्फुल्ल - धवल  सागर  सा लहराता  है.
एकमेव  है चन्द्र किन्तु  शत - शत  बन  इतराता है.

रात्रि गहन, कल-कल, छल-छल चेतना बही जाती है.
है   सुषुप्ति  का  द्वार खुला  निद्रा  अब  गहराती है.

स्वप्न-हीन हो निशा, दिवस  में  स्वप्न  बनें साकार.
आओ  ,  ऐसा  ही  अद्भुत   हम ,   रचें    एक संसार.



अरविंद पाण्डेय 

रविवार, 18 नवंबर 2012

आओ ! षष्ठी - उत्सव पर प्रार्थना करें हम


आओ  षष्ठी - उत्सव  पर  प्रार्थना  करें हम.



सृष्टि - प्रसविता महासूर्य को नमन करें हम.
नयनों से शुभ-दृश्य अमृत-आचमन करें हम.
कर्णों में बस साम-गान की ध्वनि  गुंजित हो.
आओ ! षष्ठी - उत्सव  पर  प्रार्थना  करें हम.

कण - कण में हंसते ईश्वर का हो अब दर्शन.
द्वेष-अमर्ष मिटे , बस  प्रेयस का  हो वर्षण.
ह्रदय सदा पूरित हो छलके  प्रेम - अमृत से.
रहे मनीषा अभिषिन्चित अविरल बस ऋत से.


अरविंद पाण्डेय 
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शनिवार, 17 नवंबर 2012

मिले या ना मिले मंजिल तो भी हंसते रहना.



हर  एक  शख्स  यहाँ  वक्त पर ही चलता है. 
अगर रुक जाय वक्त भी तो तुम चलते रहना. 
ये  जिंदगी  है तो  बस आबशार खुशियों का.
मिले या ना मिले मंजिल तो भी हंसते रहना.



अरविंद पाण्डेय

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शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

वो भी मजहब के रिवाजों की बात करते हैं..





जिन्हें कुरआन  से,गीता से वास्ता  न रहा, 
वो भी मजहब के रिवाजों की बात करते हैं.
कभी मज़ार पे,मस्जिद में,कभी मन्दिर में,
कभी मोमिन,कभी पंडित का स्वांग भरते हैं.

हर एक सर,जो  है सज़दे में, ज़रूरी तो नहीं.
कि वो झुका हो इबादत में,बस,खुदा के लिए.
हमने देखा है कि मछली की ताक में अक्सर,
यहाँ  बगले  भी  इबादत  सा किया  करते हैं.


अरविंद पाण्डेय


यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है



हमारे लिए वैयक्तिक-उपनिवेशों के रूप में उपलब्ध ब्रिटेन और अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों में बेरोजगारी तथा उससे उत्पन्न अपराध आदि अन्य समस्याओं में निरंतर वृद्धि हो रही है इसलिए चीन, जापान , कोरिया आदि को छोड़कर अन्य एशियाई देशों को आगा
मी कुछ वर्षों में ही उस विकल्प के लिए तैयारी करनी होगी जिसमें कि हम अपने युवाओं को यथायोग्य काम दे सकें अन्यथा इन देशों में एक द्वेषाधारित राष्ट्रवाद का उदय होगा जिसकी तीव्र-तरंगों का आधात इतना भयावह होगा कि वहाँ काम करने वाले हमारे लोग सीधे अपने - अपने देशों में आकर गिरेंगें .
अपने देश में प्रौद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम में होने के कारण हम एक वैज्ञानिक-समाज का निर्माण नहीं कर पाए..किन्तु चीन , जापान , कोरिया आदि एशियाई देशों में प्रद्योगिकी और विज्ञान की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा होने के कारण वहाँ वैद्यानिक समाज का विकास हुआ और आज इन देशों के गावों में कुटीर-उद्योग में बनाए जा रहे इलेक्ट्रानिक सामानों से हमारा बाज़ार भरा पड़ा है.. 
खुली वैश्विक अर्थनीति जिस समय प्रवर्तित हुई उस समय हम प्रतियोगिता के मंच पर अपनी सशक्त भूमिका के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि यहाँ के योग्य युवा यूरोपीय देशों में ही अपना भविष्य देख रहे थे..किन्तु , चीन , जापान आदि ने उस भूमिका को बहुत पहले ही पहचान लिया था और उसके लिए तैयारी भी कर चुके थे.. वास्तव में भारत में खुली अर्थव्यवस्था का समय-पूर्व प्रसव हो गया और परिणाम था कि हम चीन आदि के पुष्ट अर्थ-शिशु के समक्ष कुपोषित शिशु जैसे रह गये और आज भी वह कुपोषण बना हुआ है.. कोरिया की सैमसंग कंपनी का गैलेक्सी अब इस समय अमेरिका के आई फोन से आगे बढ़ने का सफल प्रयास करता हुआ देख रहा और हम इस ऐतिहासिक अर्थ-युद्ध में बाज़ार बन कर मात्र युद्ध-भूमि ही उपलब्ध करा रहे हैं.


इस समाचार क्लिपिंग से स्पष्ट संकेत मिलता है कि भविष्य में आर्थिक-अतृप्ति के कारण उत्पन्न सामाजिक-संकट से ग्रस्त ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश, हम भारत की युवा-प्रतिभाओं का उसी प्रकार स्वागत नहीं कर पायेगे जैसा वे पहले करते रहे हैं..
यह समय सुचिन्तन और सचिंत होने का है और शायद हमारे यहाँ अधिकांश लोगो का ध्यान इस ओर नहीं है ..

अरविंद पाण्डेय