शनिवार, 17 सितंबर 2011

तेरी रहमत,मेरी आँखों से दिल में यूँ उतरती है

श्री राधा म्रदुभाषिणी मृगदृगी  माधुर्यसन्मूर्ती थीं .
''प्रियप्रवास'' महाकाव्य में श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध'
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तेरी रहमत,मेरी आँखों से दिल में यूँ उतरती है 

कि जैसे शम्स की किरनें उतरती हैं खलाओं में .
कि जैसे खुश्क मौसम में कोई राही परेशां हो,
मगर,बस यूँ अचानक,इत्र घुल जाए हवाओं में.
कि जैसे आसमां में हो कोई आवारा सा तारा .
मगर मिल जाए उसको ताज कोई कहकशाओं में 

तेरी रहमत , मेरी आँखों से दिल में यूँ उतरती है ,
कि चिड़िया का कोई बच्चा ज्यूँ हो माँ की पनाहों में.


अरविंद  पाण्डेय  

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

उदय-अस्त दोनों ही स्थिति में प्रणय-पूर्ण जो होता है.



तरणि  , उदित हो, रंग देते हैं प्रणय-वर्ण में नीलाकाश.
और अस्त होने पर भी वितरित करते अरुणाभ प्रकाश.
उदय-अस्त दोनों ही स्थिति में प्रणय-पूर्ण जो होता है.
कृष्णचन्द्र  को वही भक्त सबमें ,सबसे प्रिय होता है.

The Sun rises. adorned with candid color of Love,
And, sets with the grand  glow of  fragrant rose.
While  being crushed down or being placed above,
Who puts on the same color, God embraces those.


-- अरविंद पाण्डेय  

प्रणय-वर्ण = लाल  रंग 

रविवार, 11 सितंबर 2011

ईश्वर ऩे है दिया सभी को,दिव्य गगन का राज्य प्रशस्त.


ईश्वर ऩे है दिया सभी को,
दिव्य गगन का  राज्य प्रशस्त.
किन्तु,लोग कलुषित,क्षण-भंगुर
क्षुद्र  वस्तु  में  हैं  आसक्त. 

प्रतिदिन सविता सस्मित,सादर 
जिसे  बुलाता  अम्बर में 
वही मनुज है अविश्वस्त में 
व्यस्त, न्यस्त  आडम्बर में.

-- अरविंद पाण्डेय 

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मंगलवार, 6 सितंबर 2011

श्री राधाष्टमी:तुम अगर साथ देने का वादा करो : मेरे स्वर में



जय जय श्री राधे : श्री  राधाष्टमी  :

तुम अपनी बांसुरी के सुर मुझे जब जब सुनाते हो .
कोई  नगमा  अनूठा दिल से मेरे बह निकलता है.
मेरी हस्ती नहीं कुछ, पर,मुझे मालूम है इतना -
मेरे नगमों से भी कुछ पल,तुम्हारा दिल बहलता है. 

I feel fortunate to learn and sing this song from the Music Director of this song , Shri Ravi .. I was posted as City S.P. Ranchi , Jharkhand..(1994 ) He visited my house , stayed with us, told so many unheard stories about Rafi sahab , Lata ji , Mukesh ji , Kishor Da and other legends of Hindi Film Music Industry .. 



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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

हरतालिका तृतीया के महापर्व पर : मैं तो बनूगी शिव की पुजारन:नंदिता पाण्डेय के स्वर में.



हरतालिका तृतीया :

सकल विश्व की माताओं को सतत प्रणाम !!!

कालिदास का यह छंद मुझे अत्यंत प्रिय है और मेरे द्वारा किया गया  इसका अनुवाद भी  मुझे अतिशय प्रिय है..आप सभी इसे ज़रूर पढ़ें और अपने विचार लिखें .

कुमार संभव में कालिदास :

तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसांगयष्टिः
निक्षेपणाय पदमुद्ध्रितमुद्वहन्ती
मार्गाचलव्यतिकराकुलितेवसिन्धु:
शैलाधिराजतनया न ययौ न तस्थौ.

मेरा अनुवाद:

उन्हें देखकर पुलक-सुगन्धित,कम्पितदेह शिवानी.
तत्पर जो अन्यत्र गमन को,शिव-सरसांग भवानी.
पथ-स्थित-अचलारुद्ध नदी सी आकुल,पर,आनंदित.
न तो स्थित रहीं न तो कहीं अन्यत्र हो सकीं प्रस्थित.

यह दृश्य उस समय का है जब शिव-प्राप्ति हेतु किया जा रहा जगन्माता पार्वती का तप पूर्णप्राय हो चुका होता है.भगवान शिव, वटु-वेश में वहां आते हैं और शिव-निंदा करते हुए पार्वती को तप से निवारित करने का प्रयास करते हैं..पहले तो माता उन्हें तर्क से परास्त करने का प्रयास करतीं हैं.किन्तु, वे रुकते नहीं..पुनः कुछ कहना चाह रहे होते हैं..माता अपनी सखियों से कहती हैं-

निवार्यतामालि किमप्ययं वटु: 
पुनः विवक्षु: स्फुरितोत्ताराधर:
न केवलं यो महतोSपभाशते
शृणोति तस्मादपि यः स पापभाक.

इतना कह कर वे अपना पैर वहां से हट जाने के लिए उठाती ही हैं कि वटु-वेशधारी सदाशिव उनके सामने प्रकट हो जाते हैं..उस समय माता की जो स्थिति होती है उसी का वर्णन कालिदास ने उक्त छंद मे किया है जो सम्पूर्ण विश्व-साहित्य के सर्वोत्तम काव्य में माना जाता है.भारतीयों द्वारा ही नहीं , भारतविद्या के जर्मन, अंग्रेज,आदि विद्वानों द्वारा भी.

कुमारसंभवं का यह प्रसंग मेरे पिता जी बचपन से ही मुझे सुनाया करते थे.

इतना सरस प्रसंग -- वह भी अपनी माता और पिता का प्रेम प्रसंग ..कितना समाधिकारक है यह..

आज माता के पर्व पर यह प्रस्तुत करने की इच्छा हुई






अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन .
.
अलिफ़ लाम मीम 

सर्वेश्वर, बस तुम्हीं प्रणम्य.
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हर शब ही शब-ए-कद्र सी आती है मेरे पास.
अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

हिन्दू  हो, मुसल्मां  हो, ईसाई  या   यहूदी .
हर  शख्स  को  ईमान  सिखाती है मेरी ईद.

शुभ शुक्र हो, होली हो , दिवाली हो या पोंगल,
इंसान की खुशियों में ही मनती है मेरी ईद.

मज़हब मेरा इस्लाम , मुसल्मां है मेरा नाम.
हंसते हुए बच्चे में, पर,  हंसती है  मेरी  ईद.

जब दिल में दूरियां हों, मज़हबों में दुश्मनी .
फिर, अम्न का इक चाँद ले आती है मेरी ईद

तुमको भी अगर इश्क की ख्वाहिश हो मेरे दोस्त.
आना  मेरे  घर ,  तुमको  बुलाती  है मेरी ईद.

-- अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 20 अगस्त 2011

आदमी बस चल रहा है.


आदमी बस चल रहा है.

यह बिना जाने
 कि जाना है कहाँ , कैसे , किधर,

वक़्त उसका बेवजह ही ढल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

खुद उसी की आरजू ने 
आग दिल में जो लगाईं,

वह उसी दोज़ख में बेबस ,
रात दिन बस जल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

-- अरविंद पाण्डेय 

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दोज़ख = नरक  

सोमवार, 15 अगस्त 2011

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


जो लाखों लोग हिफाज़त तुम्हारी करते हैं.
कड़कती धूप, ठण्ड, शीतलहर सहते हैं.
तुम जिनके दम पे अब लेते हो दम आज़ादी का.
उन्हें भी देखना किस हाल में वो रहते हैं.

अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे,
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे.
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है.
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है.

अगर बारिश हो तो हर शख्स नाच नाच उठे .
अगर जो शाम ढले, सबके दिल में गीत उठे.
सभी बेख़ौफ़ घूमते हों रात , राहों में.
हर एक दिल हो यहाँ इश्क की पनाहों में.

हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.

हर एक शख्स में जब शायराना मस्ती हो.
हर एक शय खुद अपने आपमें जब हस्ती हो.
तभी आज़ादी का सपना मेरा पूरा होगा.
ज़रा भी कम जो मिले, लक्ष्य अधूरा होगा.

अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

 
रक्षाबंधन विजयते

स्वारथ के संसार में , देखी अद्भुत रीत.
एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

कृष्ण सुभद्रा राम का, आज करूं अभिषेक .
ब्रज की प्रेमकथा सुनी, हुए पिघल कर एक.


मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल बुलाती है.



ॐ आमीन :

नशीली सी फिजाएं देख  मुझको ,मुस्कुराती  हैं.
बहुत मीठे सुरों में  मस्त  कोयल  गीत गाती है.
बड़ा  ही  खूबसूरत  है  मेरी राहो का हर गुलशन.
मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल  बुलाती है.

अरविंद पाण्डेय