मंगलवार, 6 सितंबर 2011

श्री राधाष्टमी:तुम अगर साथ देने का वादा करो : मेरे स्वर में



जय जय श्री राधे : श्री  राधाष्टमी  :

तुम अपनी बांसुरी के सुर मुझे जब जब सुनाते हो .
कोई  नगमा  अनूठा दिल से मेरे बह निकलता है.
मेरी हस्ती नहीं कुछ, पर,मुझे मालूम है इतना -
मेरे नगमों से भी कुछ पल,तुम्हारा दिल बहलता है. 

I feel fortunate to learn and sing this song from the Music Director of this song , Shri Ravi .. I was posted as City S.P. Ranchi , Jharkhand..(1994 ) He visited my house , stayed with us, told so many unheard stories about Rafi sahab , Lata ji , Mukesh ji , Kishor Da and other legends of Hindi Film Music Industry .. 



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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

हरतालिका तृतीया के महापर्व पर : मैं तो बनूगी शिव की पुजारन:नंदिता पाण्डेय के स्वर में.



हरतालिका तृतीया :

सकल विश्व की माताओं को सतत प्रणाम !!!

कालिदास का यह छंद मुझे अत्यंत प्रिय है और मेरे द्वारा किया गया  इसका अनुवाद भी  मुझे अतिशय प्रिय है..आप सभी इसे ज़रूर पढ़ें और अपने विचार लिखें .

कुमार संभव में कालिदास :

तं वीक्ष्य वेपथुमती सरसांगयष्टिः
निक्षेपणाय पदमुद्ध्रितमुद्वहन्ती
मार्गाचलव्यतिकराकुलितेवसिन्धु:
शैलाधिराजतनया न ययौ न तस्थौ.

मेरा अनुवाद:

उन्हें देखकर पुलक-सुगन्धित,कम्पितदेह शिवानी.
तत्पर जो अन्यत्र गमन को,शिव-सरसांग भवानी.
पथ-स्थित-अचलारुद्ध नदी सी आकुल,पर,आनंदित.
न तो स्थित रहीं न तो कहीं अन्यत्र हो सकीं प्रस्थित.

यह दृश्य उस समय का है जब शिव-प्राप्ति हेतु किया जा रहा जगन्माता पार्वती का तप पूर्णप्राय हो चुका होता है.भगवान शिव, वटु-वेश में वहां आते हैं और शिव-निंदा करते हुए पार्वती को तप से निवारित करने का प्रयास करते हैं..पहले तो माता उन्हें तर्क से परास्त करने का प्रयास करतीं हैं.किन्तु, वे रुकते नहीं..पुनः कुछ कहना चाह रहे होते हैं..माता अपनी सखियों से कहती हैं-

निवार्यतामालि किमप्ययं वटु: 
पुनः विवक्षु: स्फुरितोत्ताराधर:
न केवलं यो महतोSपभाशते
शृणोति तस्मादपि यः स पापभाक.

इतना कह कर वे अपना पैर वहां से हट जाने के लिए उठाती ही हैं कि वटु-वेशधारी सदाशिव उनके सामने प्रकट हो जाते हैं..उस समय माता की जो स्थिति होती है उसी का वर्णन कालिदास ने उक्त छंद मे किया है जो सम्पूर्ण विश्व-साहित्य के सर्वोत्तम काव्य में माना जाता है.भारतीयों द्वारा ही नहीं , भारतविद्या के जर्मन, अंग्रेज,आदि विद्वानों द्वारा भी.

कुमारसंभवं का यह प्रसंग मेरे पिता जी बचपन से ही मुझे सुनाया करते थे.

इतना सरस प्रसंग -- वह भी अपनी माता और पिता का प्रेम प्रसंग ..कितना समाधिकारक है यह..

आज माता के पर्व पर यह प्रस्तुत करने की इच्छा हुई






अरविंद पाण्डेय 

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन .
.
अलिफ़ लाम मीम 

सर्वेश्वर, बस तुम्हीं प्रणम्य.
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हर शब ही शब-ए-कद्र सी आती है मेरे पास.
अल्लाह की नेमत से हर इक सांस मेरी ईद.

हिन्दू  हो, मुसल्मां  हो, ईसाई  या   यहूदी .
हर  शख्स  को  ईमान  सिखाती है मेरी ईद.

शुभ शुक्र हो, होली हो , दिवाली हो या पोंगल,
इंसान की खुशियों में ही मनती है मेरी ईद.

मज़हब मेरा इस्लाम , मुसल्मां है मेरा नाम.
हंसते हुए बच्चे में, पर,  हंसती है  मेरी  ईद.

जब दिल में दूरियां हों, मज़हबों में दुश्मनी .
फिर, अम्न का इक चाँद ले आती है मेरी ईद

तुमको भी अगर इश्क की ख्वाहिश हो मेरे दोस्त.
आना  मेरे  घर ,  तुमको  बुलाती  है मेरी ईद.

-- अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 20 अगस्त 2011

आदमी बस चल रहा है.


आदमी बस चल रहा है.

यह बिना जाने
 कि जाना है कहाँ , कैसे , किधर,

वक़्त उसका बेवजह ही ढल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

खुद उसी की आरजू ने 
आग दिल में जो लगाईं,

वह उसी दोज़ख में बेबस ,
रात दिन बस जल रहा है.

आदमी बस चल रहा है.

-- अरविंद पाण्डेय 

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दोज़ख = नरक  

सोमवार, 15 अगस्त 2011

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


जो लाखों लोग हिफाज़त तुम्हारी करते हैं.
कड़कती धूप, ठण्ड, शीतलहर सहते हैं.
तुम जिनके दम पे अब लेते हो दम आज़ादी का.
उन्हें भी देखना किस हाल में वो रहते हैं.

अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे,
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे.
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है.
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है.

अगर बारिश हो तो हर शख्स नाच नाच उठे .
अगर जो शाम ढले, सबके दिल में गीत उठे.
सभी बेख़ौफ़ घूमते हों रात , राहों में.
हर एक दिल हो यहाँ इश्क की पनाहों में.

हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.

हर एक शख्स में जब शायराना मस्ती हो.
हर एक शय खुद अपने आपमें जब हस्ती हो.
तभी आज़ादी का सपना मेरा पूरा होगा.
ज़रा भी कम जो मिले, लक्ष्य अधूरा होगा.

अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

 
रक्षाबंधन विजयते

स्वारथ के संसार में , देखी अद्भुत रीत.
एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

कृष्ण सुभद्रा राम का, आज करूं अभिषेक .
ब्रज की प्रेमकथा सुनी, हुए पिघल कर एक.


मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल बुलाती है.



ॐ आमीन :

नशीली सी फिजाएं देख  मुझको ,मुस्कुराती  हैं.
बहुत मीठे सुरों में  मस्त  कोयल  गीत गाती है.
बड़ा  ही  खूबसूरत  है  मेरी राहो का हर गुलशन.
मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल  बुलाती है.

अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 6 अगस्त 2011

मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.

(26 जनवरी २००५ . समादेष्टा .बिहार सैन्य पुलिस .पटना )


वन्दे मातरं ..

किसी में आरजू होगी कि चाँद पर जाए.
किसी में जुस्तजू होगी कि चाँद खुद आए.
मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.
कि जान जाय तो बस मुल्क के लिए जाए..




अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप..


श्री मैथिलीशरण गुप्त.
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3 अगस्त :

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप.
कवि बने अल्पग्य कोई आप से ही आप.


कक्षा ८ में अध्ययन के समय ही मैंने श्री मैथिलीशरण गुप्त में महाकाव्य '' साकेत '; ''पंचवटी'' चिरगांव, झांसी से मंगाया था.साकेत के प्रथम पृष्ठ पर एक प्रसिद्द छंद अंकित था-

राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है.
कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है.

उसी छंद के नीचे ही मैंने अपनी उपर्युक्त दो पंक्तियाँ अंकित कर दी थीं.मेरे पास उपलब्ध साकेत की प्रति आज मेरे सामने है और आज पुनः वह छंद मेरे समक्ष समुज्ज्वल है


अरविंद पाण्डेय

रविवार, 31 जुलाई 2011

काश, रफ़ी साहब इन पंक्तियों को गाते :


काश, रफ़ी साहब इन पंक्तियों को गाते :

तेरे रुखसार के दोनों तरफ बिखरें हैं जो गेसू.
हैं कुछ उलझे हुए,फिर भी ज़रा मदहोश से भी हैं.
तेरी इन अधखुली आँखों की मस्ती घुल गई इनमे 
या तेरे दिल की उलझन ही कहीं उलझा रही इनको.


रफ़ी साहब को ये पंक्तियाँ समर्पित.आज उनकी पुण्यतिथि है.इस देश के लोगों को उन्हें इसलिए भी याद करना चाहिए क्योकि वे पाकिस्तान गए.वहाँ उन्होंने प्रसिद्द भजन - ओ दुनिया के रखवाले-- गाया.और कुछ इस तरह से गाया कि हमारे पाकिस्तानी भाइयों ऩे मज़हब का भेद भूलकर, Once More - का नारा लगाया .और रफ़ी साहब को वो गीत दुबारा गाना पडा. जो हमारे पुरोधा आज तक नहीं कर सके और शायद न कर पाएगें, उसे रफ़ी के दिव्य स्वर ऩे सहजता से कर दिया था..वे होते और मैं इन चार पंक्तियों को गीत का रूप देता और वे गाते इसे..ये स्वप्न धरती पर कभी यथार्थ बन पाए तो .....