सोमवार, 15 अगस्त 2011

मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.


जो लाखों लोग हिफाज़त तुम्हारी करते हैं.
कड़कती धूप, ठण्ड, शीतलहर सहते हैं.
तुम जिनके दम पे अब लेते हो दम आज़ादी का.
उन्हें भी देखना किस हाल में वो रहते हैं.

अगर अवाम के तन पर नहीं कपडे होंगे,
अगर गरीब हिन्दुस्तान के भूखे होंगे.
समझ लो फिर ये आज़ादी अभी अधूरी है.
अभी मंजिल में और हममे बहुत दूरी है.

अगर बारिश हो तो हर शख्स नाच नाच उठे .
अगर जो शाम ढले, सबके दिल में गीत उठे.
सभी बेख़ौफ़ घूमते हों रात , राहों में.
हर एक दिल हो यहाँ इश्क की पनाहों में.

हर एक दिल में ही जब ताजमहल सजता हो.
हर एक शख्स ही जब शाहजहां लगता हो.
हर एक दिल में हो खुदा-ओ-कृष्ण का ईमां.
मुझे तो चाहिए बस आज वही हिन्दुस्तां.

हर एक शख्स में जब शायराना मस्ती हो.
हर एक शय खुद अपने आपमें जब हस्ती हो.
तभी आज़ादी का सपना मेरा पूरा होगा.
ज़रा भी कम जो मिले, लक्ष्य अधूरा होगा.

अरविंद पाण्डेय 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

 
रक्षाबंधन विजयते

स्वारथ के संसार में , देखी अद्भुत रीत.
एक हुए भाई बहन , धन्य धन्य यह प्रीत.

कृष्ण सुभद्रा राम का, आज करूं अभिषेक .
ब्रज की प्रेमकथा सुनी, हुए पिघल कर एक.


मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल बुलाती है.



ॐ आमीन :

नशीली सी फिजाएं देख  मुझको ,मुस्कुराती  हैं.
बहुत मीठे सुरों में  मस्त  कोयल  गीत गाती है.
बड़ा  ही  खूबसूरत  है  मेरी राहो का हर गुलशन.
मगर,मै रुक नहीं सकता, मुझे मंजिल  बुलाती है.

अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 6 अगस्त 2011

मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.

(26 जनवरी २००५ . समादेष्टा .बिहार सैन्य पुलिस .पटना )


वन्दे मातरं ..

किसी में आरजू होगी कि चाँद पर जाए.
किसी में जुस्तजू होगी कि चाँद खुद आए.
मगर, मेरी तो बस इतनी सी एक ख्वाहिश है.
कि जान जाय तो बस मुल्क के लिए जाए..




अरविंद पाण्डेय 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप..


श्री मैथिलीशरण गुप्त.
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3 अगस्त :

धन्य राम चरित्र का यह प्रबल पूत प्रताप.
कवि बने अल्पग्य कोई आप से ही आप.


कक्षा ८ में अध्ययन के समय ही मैंने श्री मैथिलीशरण गुप्त में महाकाव्य '' साकेत '; ''पंचवटी'' चिरगांव, झांसी से मंगाया था.साकेत के प्रथम पृष्ठ पर एक प्रसिद्द छंद अंकित था-

राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है.
कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है.

उसी छंद के नीचे ही मैंने अपनी उपर्युक्त दो पंक्तियाँ अंकित कर दी थीं.मेरे पास उपलब्ध साकेत की प्रति आज मेरे सामने है और आज पुनः वह छंद मेरे समक्ष समुज्ज्वल है


अरविंद पाण्डेय

रविवार, 31 जुलाई 2011

काश, रफ़ी साहब इन पंक्तियों को गाते :


काश, रफ़ी साहब इन पंक्तियों को गाते :

तेरे रुखसार के दोनों तरफ बिखरें हैं जो गेसू.
हैं कुछ उलझे हुए,फिर भी ज़रा मदहोश से भी हैं.
तेरी इन अधखुली आँखों की मस्ती घुल गई इनमे 
या तेरे दिल की उलझन ही कहीं उलझा रही इनको.


रफ़ी साहब को ये पंक्तियाँ समर्पित.आज उनकी पुण्यतिथि है.इस देश के लोगों को उन्हें इसलिए भी याद करना चाहिए क्योकि वे पाकिस्तान गए.वहाँ उन्होंने प्रसिद्द भजन - ओ दुनिया के रखवाले-- गाया.और कुछ इस तरह से गाया कि हमारे पाकिस्तानी भाइयों ऩे मज़हब का भेद भूलकर, Once More - का नारा लगाया .और रफ़ी साहब को वो गीत दुबारा गाना पडा. जो हमारे पुरोधा आज तक नहीं कर सके और शायद न कर पाएगें, उसे रफ़ी के दिव्य स्वर ऩे सहजता से कर दिया था..वे होते और मैं इन चार पंक्तियों को गीत का रूप देता और वे गाते इसे..ये स्वप्न धरती पर कभी यथार्थ बन पाए तो .....










शनिवार, 30 जुलाई 2011

किया संतरण सतत शून्य में,मिला न यात्रा-पथ का छोर.


भासस्तस्य महात्मनः 

दुनिया के युद्धों से थक कर, कल मैं उड़ा गगन की ओर.
किया संतरण सतत शून्य में,मिला न यात्रा-पथ का छोर.
महासूर्य का लोक दिखा फिर, देश-काल था जहाँ अनंत.
बस,प्रकाश का एकमेव अस्तित्व,तमस का अविकल अंत.

स्वप्रकाशमानंदं ब्रह्म .. 

कुरुक्षेत्र में विराटरूप दर्शन में अर्जुन ऩे श्री कृष्ण को देखा था - मानों आकाश में करोड़ों सूर्य एक साथ उदित हो उठे हों..जय श्री कृष्ण..वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष में एक ऐसे प्रकाश-पुंज का संकेत मिला है जो हमारे सूर्य से १४० अरब गुना बड़ा हैं एवं जिसका प्रकाश, हम तक आने में, १४० अरब प्रकाश वर्ष का समय लगता है..


अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

लोध्र पुष्प-रज से राधा का करते केशव श्रृंगार.


वृन्दावन के निभृत कुञ्ज में श्री राधा-वनमाली .
स्वच्छ शिला पर बैठे थे , छाया करती थी डाली.
लोध्र पुष्प-रज से राधा का करते केशव श्रृंगार.
योगी थे साश्चर्य , देख , योगेश्वर का व्यापार .


प्राचीन काल में लाल रंग के लोध्र पुष्प के पराग के लेप से मुख का श्रृंगार किया जाता था.
कालिदास ऩे मेघदूत में लिखा है:

नीता लोध्रप्रसवरजसा पांडुतामानने श्री: 


निभृत = एकांत.
साश्चर्य = आश्चर्य से युक्त. 







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शनिवार, 23 जुलाई 2011

मैं देव और पशु साथ साथ, मैं हूँ मनुष्य .


ॐ.आमीन .
मै  अणु बनता हूँ कभी ,कभी  बनता विराट .
अनुभव करता परतंत्र कभी,  बनता  स्वराट.
मैं कभी क्रोध-प्रज्वाल, कभी श्रृंगार शिखर ,
मैं नियति-स्वामिनी का बस हूँ सेवक,अनुचर.

 मैं देव और पशु साथ साथ, मैं  हूँ  मनुष्य .

अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 20 जुलाई 2011

संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ ...



संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ 
यं यं व्यतीयाय पतिंवरा  सा.
नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपेदे 
विवर्णभावं स स भूमिपालः

 
राजमार्ग-संचरण  कर  रही  दीप शिखा सी, इंदुमती.
वरण हेतु आए जिस वर को छोड़,बढ़ चली, मानवती.
उस नरेंद्र का हुआ मुदित मुखमंडल,सद्यः कांति-विहीन.
दीपशिखा-रथ बढ़ जाने से पथ-प्रासाद हुआ ज्यों दीन.

कालिदास की सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वरमणीय उपमा का उदाहरण- 
यह देवी इंदुमती के स्वयंवर का वर्णन है रघुवंश का. 
वे वरमाला लेकर वर के वरण हेतु संचरण कर रही हैं..............................शेष आप दृश्य को अपनी चेतना में रूपायित करें और  सहृदय-हृदय-संवेद्य रस-स्वरुप होकर , अलौकिक आनंद का भोग करे..