शुक्रवार, 23 मार्च 2012

महाकाल को भी मथकर जो महाप्रलय में करतीं नृत्य.

प्रथमं शैलपुत्री च !

जागृत-जन के लिए सतत जो प्रतिकण में हैं प्रतिपल दृश्य.
कितु,  वही  कालिका , सुप्त को अप्रतीत हैं और  अदृश्य.
महाकाल को  भी  मथकर  जो महाप्रलय में  करतीं नृत्य.
मुझे बोध है मैं उनका प्रिय - पुत्र, और  अनुशासित भृत्य.

© अरविंद पाण्डेय

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