मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,.


प्रीस्ट वैलेंटाइन का मृत्यु-दिवस ! 



मैं खुद भी साथ चल रहा होता तुम्हारे, प्रीस्ट,
खुल कर जो खड़े होते क्लाडिअस के तुम खिलाफ.
ज़ालिम हो सल्तनत तो ज़रा जोर से कहो.
छुप छुप के इन्कलाब कोई इन्कलाब है.


© अरविंद पाण्डेय




सभी मित्रों का स्वागत और नमस्कार ..

मैं प्रीस्ट वैलेंटाइन द्वारा क्लादिअस के मानवता-विरोधी क़ानून का छुप कर उल्लंघन किये जाने को नापसंद करता हूँ.. उन्हें गांधी जी की तरह खुल कर सिविल नाफरमानी -- सविनय अवज्ञा करनी चाहिए थी..

 अरविंद पाण्डेय 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बात तो आपकी सही है ये थोड़ा करने से सब नहीं होता
    फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही कुछ न करने से कुछ नहीं होता!

    अन्याय से लड़ने का सबका अपना-अपना तरीका है जो व्यक्तित्व के अलावा देश-काल-संस्कृति पर भी निर्भर करता है। गान्धी जी अहिंसा की बात करते हैं, चन्द्रशेखर आज़ाद का मार्ग भिन्न है। सरदार पटेल देश में रहकर विरोध करते हैं, नेताजी बाहर जाकर। उद्देश्य सबका एक ही है और शायद अपने-अपने तरीके से वे सब ही सही हैं।

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  2. अजब परम्परायें थीं, टूटनी भी आवश्यक थीं...

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