परावाणी : The Eternal Poetry
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सोमवार, 28 मार्च 2011
रहता ज़मीं पे, दास्ताँ, आस्मां की लिखता हूँ.
ॐ:आमीन:
शायर हूँ मैं , गुज़रे बिना भी देख सकता हूँ.
रहता ज़मीं पे, दास्ताँ, आस्मां की लिखता हूँ.
चलते हैं सूरज ,चाँद भी मेरे इशारों पर.
तुमको मगर इंसान का हमशक्ल दिखता हूँ.
- अरविंद पाण्डेय
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