शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

''अस्त'' ''व्यस्त' ''आसक्त''



''अस्त'' किसी के लिए  वहीं  पर, 
किसी के लिए अतिशय ''व्यस्त''
है ''सन्यस्त'' किसी के प्रति,पर, 
किसी के लिए अति  ''आसक्त'' 

एक व्यक्ति में व्यक्त हो रहे,
एक समय ही कितने रूप.
सतत परिणमन-शील जगत में 
माया की है शक्ति अनूप. 



----अरविंद पाण्डेय

जम्हूरियत में ताज को समझो न तुम जागीर


ये सच है कि ये ताज तुम्हें दे रहा ठंडक.
सेहरा के सहर सा मगर होगा ये जल्द गर्म.

सब कुछ भुला दिया करो ,पर याद ये रखो.
देना पडेगा हर जवाब आखिरत के दिन.


अपने ही फैसले से क्यों खुरच रहे हो तुम.
चहरे पे चढ़ा है जो सफेदी का मुलम्मा.

ताकत है बेशुमार दिया जिस अवाम ने.
उसके ही बर-खिलाफ लिख रहे हो फैसले..

जम्हूरियत में ताज को समझो न तुम जागीर.
इस मुल्क में अवाम का नौकर है हर वजीर.

करते हुए भी जुर्म जब कांपें न तेरे हाथ.
बस जान लो अल्लाह का अज़ाब आ गया.

अजाज़ को माथे पे भी रखा करो कभी.
आखिर,तुम्हारा ताज भी होगा सुपुर्द-ए-खाक.
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अजाज़=मिट्टी.
अज़ाब= ईश्वरीय दंड 

----अरविंद पाण्डेय